सिपाही की पत्नी का भावुक खत, बयां किया अकेले रहने का दर्द

Edited By vasudha,Updated: 03 Sep, 2018 03:04 PM

soldier wife pen emotional letter

देश की रक्षा में सीमा पर तैनात हमारे जवान अपने परिवार से कोसों दूर रहते हैं। देश की सेवा में जुटे जांबाजों की सलामती की दुआ में उनके परिवारों का एक-एक दिन कटता है। तीज-त्योहार पर भी फौजी घर नहीं आ पाते हैं...

नेशनल डेस्क: देश की रक्षा में सीमा पर तैनात हमारे जवान अपने परिवार से कोसों दूर रहते हैं। देश की सेवा में जुटे जांबाजों की सलामती की दुआ में उनके परिवारों का एक-एक दिन कटता है। तीज-त्योहार पर भी फौजी घर नहीं आ पाते हैं। इस बीच घाटी में तैनात एक सिपाही की पत्नी ने भावुक पोस्ट लिखा है जिसमें जवानों के परिवार वालों के दर्द को बयां किया है।
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आरिफा तौसिफ ने स्थानीय न्यूज वेबसाइट पर खुले खत में लिखा कि पुलिसकर्मियों की पत्नियां अपने बच्चों को सिंगल पेरेंट्स की तरह पालती हैं। जब पति ड्यूटी पर होते हैं तो मदद करने के लिए कोई साथ नहीं होता। पति के साथ रहना तो सपने जैसा होता है। हमें एक दूसरे के साथ लंच और डिनर किए हुए अरसा बीत जाता है। ये सामान्य सी चीजें हम जैसी औरतों के लिए एक सपने की तरह होता है। हम या तो किसी भी फैमिली फंक्शन में एक साथ शामिल होने के लिए प्लानिंग करते रहते हैं, या फिर किसी जवान की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए। एक साथ कहीं बाहर जाना हमारे लिए दिन में सपने देखने की तरह होता है। 

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आरिफा ने लिखा कि जवानों की पत्नियां सबसे ज्यादा झूठ बोलती हैं। हमें बच्चों से झूठ बोलते हैं कि उनके पिता वीकेंड पर अगले त्यौहार पर या उनके स्कूल फंक्शन में उनके साथ होंगे। ये सब कहकर हम अपने आप से भी झूठ बोलते रहते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे नसीब में बस इंतजार और इंतजार लिखा है। जब कभी उन्हें घर आना भी होता है तो वे बस कुछ घंटों के लिए आते हैं, दिमागी रूप से वे घर पर भी अपनी ड्यूटी कर रहे होते हैं। इस तरह के हालात हम पत्नियों को हाइपरटेंशन से ग्रसित बना रहा है।
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पोस्ट में लिखा कि जवानों पर खतरा दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है। कहीं से भी किसी जवान के शहीद होने की खबर आती है हमारी असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है। स्थानीय प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों की कार्रवाई का आरोप लगता है ये भी बेहद चिंताजनक है। ये चिंता उस समय बढ़ जाती है जब आतंकी हमले होते हैं और हम घर से बाहर होते हैं तो इसके लिए भी लोग हमें जिम्मेदार ठहराते हैं। आरिफा ने अंत में लिखा कि हमारे बच्चे इन सब चीजों को समझते हैं। मैं दुआ करती हूं कि मेरा राज्य इन अंधेरे बादलों से छंटे औऱ हम एक सुखी और शांति कश्मीर को देखें।  

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