Edited By Seema Sharma,Updated: 06 Aug, 2018 05:07 PM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव 2019 में कड़ी टक्कर देने के लिए विपक्षी दल एक हो गए हैं। सभी विपक्षी किसी भी हाल में मोदी से सत्ता से उतारना चाहते हैं और इसके लिए महागठबंधन की कवायद भी शुरू हो गई है। वहीं महागठबंधन में सबसे बड़ा सवाल जो उठ...
नई दिल्लीः राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने प्रस्ताव रखा कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और वे तीन वरिष्ठ नेता और 2019 की लोकसभा चुनाव में भाजपा को पटखनी देने के लिए सभी विपक्षी दलों को एक कर सकते हैं। पवार ने कहा कि हम तीनों वरिष्ठों नेताओं की पीएम बनने की कोई महत्वकांक्षा नहीं है।
ये कहा पवार ने
- हमने लोकसभा चुनाव 2019 के लिए विपक्षी एकता का रोडमैप बनाया है। आज की स्थिति 1975-1977 जैसी है।
- पीएम मोदी के खिलाफ आज वैसा ही माहौल है जैसा इंदिरा गांधी के खिलाफ था।
- -महागठबंध का नेतृत्व कौन करेगा इसका फैसला चुनाव के बाद होना चाहिए, पहले नहीं।
- हम बसपा को महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में शामिल होने के लिए न्योता देते हैं। अगर मायावती साथ आती हैं तो हमें खुशी होगी और विपक्ष को इसका फायदा भी होगा।
- राहुल गांधी में काफी बदलाव और सुधार हुआ। वे अब एक परिपक्व वक्ता की तरह बात करते हैं। पिछले दिनों उन्होंने सदन में जो बोला वो देश की आवाज थी।
- सभी दलों को साथ लाने के लिए मैं, सोनिया गांधी, एचडी देवगौड़ा पूरे भारत में यात्रा कर सकते हैं। साथ ही लोगों को
- शरद ने राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की बजाए राज्य स्तर पर गठबंधन पर जोर देते हुए कहा कि इससे पार्टियां मजबूत होंगी।
- केरल, पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्य में कांग्रेस को नेतृत्व देना चाहिए क्योंकि यहां अन्य दलों को एक साथ लाना आसान होगा।
- केरल और पश्चिम बंगाल में राहुल को नेताओं से बात करनी होगी।
उल्लेखनीय है कि शरद पवार से पहले ममता बनर्जी भी संकेत दे चुकी हैं कि वे पीएम पद की रेस में नहीं हैं बल्कि पीएम मोदी को हराने के लिए आगे हैं। वहीं हाल ही में राहुल गांदी ने भी कहा था कि वे प्रधानमंत्री उम्मीदवार की घोषणा चुनावों के बाद करेंगे। ऐसे में एक बार राजनीतिक गलियारें में चर्चा शुरू हो गई है कि सभी वरिष्ठ नेताओं ने खुद को पीएम पद से दूर कर लिया है तो क्या राहुल गांधी ही कमान संभालेंगे। हालांकि अभी कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती सभी दलों को अपने साथ बनाए रखने में है।