सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण को लेकर जताई नाराजगी, अधिकारियों को दिए यह निर्देश

Edited By Yaspal,Updated: 07 Dec, 2021 07:35 PM

supreme court expressed displeasure over the encroachment on railway land

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रेलवे की जमीन पर हुए अतिक्रमण के कारण सार्वजनिक परियोजनाओं के बाधित होने पर नाखुशी जाहिर की और कहा कि अधिकारियों की ''''राजनीतिक मजबूरियां'''' हो सकती हैं, लेकिन यह करदाताओं के धन की ''''बर्बादी'''' है। शीर्ष अदालत ने...

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रेलवे की जमीन पर हुए अतिक्रमण के कारण सार्वजनिक परियोजनाओं के बाधित होने पर नाखुशी जाहिर की और कहा कि अधिकारियों की ''राजनीतिक मजबूरियां'' हो सकती हैं, लेकिन यह करदाताओं के धन की ''बर्बादी'' है। शीर्ष अदालत ने गुजरात और हरियाणा में रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने से संबंधित मुद्दों को उठाने वाली दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि संबंधित अधिकारियों को इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए।

न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि नगर निगम, राज्यों के साथ-साथ रेलवे इन मामलों को नंजरअंदाज कर रहा है, चूंकि ये जनहित के मामले हैं, ऐसे में परियोजना को तत्काल आगे बढ़ाना चाहिए। पीठ ने कहा, ''आप इस पर कैसे काबू पाएंगे? बिना किसी राजनीतिक बयान के हम चाहते हैं कि आप हमें यह बताएं। तीनों स्तरों पर 'ट्रिपल इंजन' की सरकार है और रेलवे का इंजन इसमें अपना काम नहीं कर पा रहा है।'' मेहता ने पीठ से कहा कि वह इस मुद्दे पर सभी स्तरों पर चर्चा करेंगे और रेल मंत्री से बात करेंगे क्योंकि एक सार्वजनिक परियोजना को रोका नहीं जा सकता।

पीठ ने कहा, '' इस मामले को आपको जल्द से जल्द हल करने की जरूरत है और 15 दिन के भीतर परियोजना शुरू हो जानी चाहिए। जो भी आवश्यक व्यवस्था है उसे युद्धस्तर पर सुनिश्चित करें। हम केंद्र, राज्य या निगम की ओर से कोई बहाना नहीं चाहते हैं।'' शीर्ष अदालत ने मेहता से यह भी कहा कि रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करने वालों के पुनर्वास के मुद्दे पर अलग-अलग मामलों में दिल्ली उच्च न्यायालय सहित विभिन्न अदालतों के समक्ष रेलवे ने इस मुद्दे पर अलग-अलग रुख कैसे अपनाया? रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण को देशभर में फैला मुद्दा करार देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने पीठ को आश्वासन दिया कि इस मुद्दे पर अधिकारियों द्वारा एक संयुक्त रुख अपनाया जाएगा।

पीठ ने कहा, ''यह करदाताओं का पैसा है। आपकी राजनीतिक मजबूरियां हो सकती हैं, लेकिन यह करदाताओं का पैसा है जो हर जगह बर्बाद हो रहा है। आखिरकार, इससे सरकार के खजाने पर बोझ पड़ता है।'' शीर्ष अदालत ने पाया कि रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण एक अपराध है और जमीनी स्तर पर मौजूद अधिकारी इस स्थिति के लिए जवाबदेह और जिम्मेदार हैं। पीठ ने कहा, ''हमें बताओ, आपके विभाग में कितने संपदा अधिकारी हैं। आप उस विभाग को बंद कर दें। आपके पास पुलिस है। रेलवे के पास पुलिस है। इसलिए, यदि आप अपनी संपत्ति की रक्षा नहीं कर सकते तो उस विभाग को बंद कर दें।''

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