नवाज शरीफ के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक ‘राजनीतिक यातना’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Apr, 2018 01:55 AM

the supreme court s decision against nawaz sharif is a  political torture

सरकारी पद लेने पर पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर लगी पाबंदी एक कठोर सजा है और विवादों से घिरी हुई है। अदालत उन्हें दोषी करार दे सकती है

इंटरनेशनल डेस्कः सरकारी पद लेने पर पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर लगी पाबंदी एक कठोर सजा है और विवादों से घिरी हुई है। अदालत उन्हें दोषी करार दे सकती है लेकिन उन्हें सजा देना पाकिस्तान की संसद, जिसमें सीनेट शामिल है, पर निर्भर है। यही वजह है कि सांसदों, खासकर मुस्लिम लीग पार्टी के सांसदों की ओर से विरोध हुआ।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुई पनामा पेपर्स की जांच में नवाज शरीफ को बेटे हुसैन नवाज की दुबई की कम्पनी से मिले धन को जाहिर नहीं करने का दोषी पाया गया और उन्हें जुलाई में अयोग्य करार दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री ने बेटे से कोई धन मिलने से इंकार किया और कोर्ट के फैसले को उन्हें पद से हटाने की ‘साजिश’ बताया।

पिछले सप्ताह, अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा कि देश के संविधान के मुताबिक, एक बार सर्वोच्च अदालत की ओर से अयोग्य करार दिए जाने के बाद कोई भी आदमी फिर से सार्वजनिक पद नहीं ले सकता है। चुनाव लडऩे पर लगी पाबंदी से जुड़े सवालों की व्याख्या और निर्धारण को लेकर जस्टिस उमर अता बंदियाल ने चीफ जस्टिस मियां सकीब निसार की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय ख्ंाडपीठ के फैसले को पढ़ा।

फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस मियां सकीब निसार ने टिप्पणी की कि अच्छे चरित्र वाले नेता पाना लोगों का हक है। ‘‘यह स्थायी है।’’ उसी खंडपीठ में, जस्टिस बंदियाल ने लिखा कि धारा 62 (1)(एफ)के तहत किसी सांसद या सार्वजनिक सेवक का अयोग्य करार होना समय से पहले होगा। ‘‘ऐसा सदस्य चुनाव नहीं लड़ सकता है या संसद का सदस्य नहीं बन सकता है।’’ धारा 62 (1)(एफ) किसी सांसद के लिए ईमानदार और सदाचारी होने की पूर्व शर्त रखती है।

फैसले ने, पिछली जुलाई में, सुप्रीम कोर्ट की ओर से बेईमान घोषित किए जाने के बाद इस्तीफा देेने वाले तीन बार के पूर्व प्रधानमंत्री के लिए पद पर वापस आने की उम्मीदें पूरी तरह से खत्म कर दी हैं। जाहिर है, सत्ताधारी मुस्लिम लीग (नवाज) ने फैसले को अमान्य कर दिया है। उसका कहना है कि फैसला राजनीतिक यातना की मार है।

‘‘कोई राजनेता ईमानदार है या नहीं, इसे घोषित करने का काम अदालत का नहीं है। यह संसद या चुनाव आयोग का काम है’’, सूचना मंत्री मरयम औरंगजेब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसे सबसे अधिक विवादों वाला मामला बताते हुए कहा।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला सत्ताधारी पार्टी के लिए एक बड़े झटके के रूप में आया है, खासकर उस समय, जब कुछ महीने बाद पाकिस्तान में आम चुनाव होने वाले हैं। इसलिए इसका विरोध करना नवाज शरीफ का अधिकार है। वह लोगों के पास दोबारा जाएंगे ताकि लोग तय कर सकें कि उन्हें राजनीति में रहना चाहिए या नहीं।

हाल में भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश, तीनों के सर्वोच्च न्यायालयों की आलोचना हुई है कि वे कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में कदम रख रहे हैं। कुछ प्रधानमंत्रियों ने अतीत में इन फैसलों को नहीं माना है। इंदिरा गांधी, जो सर्वोच्च पद पर आसीन थीं, को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोग्य घोषित कर दिया था।

पद छोडऩे के बदले श्रीमती गांधी ने आपातकाल लगा दिया और खुद ही कानून बदल दिए। ऐसा इसलिए हो पाया कि विपक्षी सदस्यों को हिरासत में ले लिया गया था और श्रीनगर से सांसद शमीम अहमद शमीम को छोड़ कर उनसे सवाल करने वाला कोई नहीं था। शमीम ने अपने बूते सदन में श्रीमती गांधी से मामले पर बहस की। वह शमीम को छूने की हिम्मत नहीं कर पाईं क्योंकि उनके पीछे जवाहर लाल नेहरू के मित्र शेख अब्दुल्ला थे।

पड़ोसी राज्य बांग्लादेश ने लोकतंत्र को बनाया मजाक
पड़ोसी बंगलादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने लोकतंत्र का मजाक बना दिया है। उन्होंने रिवाज के मुताबिक चुनाव आयोग को मिलने वाली वास्तविक शक्ति उसे दिए बगैर चुनाव कराए हैं। बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बायकाट किया लेकिन प्रधानमंत्री हसीना ने उसे शामिल करने की कोशिश नहीं की। व्यावहारिक रूप में, यह हास्यास्पद ही था कि जातीय संसद में कोई विपक्ष नहीं था। जनरल एच.एम. इरशाद की जातीय पार्टी विपक्ष में थी। शेख हसीना ने उसे कैबिनेट में जगह देकर विपक्ष का दिखावा भी नहीं रहने दिया।

चुनाव की सच्चाई का मामला सुप्रीम कोर्ट में पड़ा है और जज इतने डरे हुए हैं कि वे ढाका से बाहर जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, पूर्व प्रधानमंत्री और विपक्षी नेता खालिदा जिया को 5 साल की सजा दिए जाने का मामला ही ले लीजिए। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री हसीना की नाराजगी के कारण जज भागे फिर रहे हैं। एक जज विदेश चले गए हैं और शायद नहीं लौटेंगे क्योंकि कहा जाता है कि प्रधानमंत्री से उनके संबंध खराब हैं।

लोगों को यही लगता है कि बेगम खालिदा जिया के खिलाफ कोर्ट के फैसले के पीछे शेख हसीना का हाथ है। पूर्व प्रधानमंत्री को सजा सुनाते समय विशेष न्यायालय के जस्टिस मोहम्मद अख्तरूजम्मा ने कहा कि उनके ‘स्वास्थ्य और सामाजिक हैसियत’ को ध्यान में रखकर उन्हें कम सजा सुनाई जा रही है। उन पर परिवार की ओर से चलाए जा रहे अनाथालय, जिया आरफनेज ट्रस्ट को विदेशी दानकत्र्ताओं से मिले करीब 1.6 करोड़ रुपए के गबन का आरोप है।

नवाज शरीफ का मामला खालिदा जिया से कुछ मिलता-जुलता है। उन्होंने अपने मामले में आरोप लगाया है कि कोर्ट पर दबाव डालकर उन्हें राजनीति और चुनाव से बाहर करने की शेख हसीना की कोशिश थी। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ मैं कोई भी नतीजा भुगतने को तैयार हूं। मैं जेल और सजा से नहीं डरती। मैं सिर झुकाने नहीं जा रही हूं।’’ लेकिन कानून के विशेषज्ञों का कहना है कि फैसले से जिया का राजनीतिक करियर बर्बाद हो सकता है क्योंकि वह चुनाव नहीं लड़ सकतीं।

नवाज शरीफ अब भी भीड़ आकर्षित करते हैं। वह दुश्मनी रखने वाले पाकिस्तान में भारत के लिए सबसे अच्छे विकल्प हैं। हमने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक किए हैं, फिर भी बातचीत के सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं है। आज या कल, दोनों मुल्कों को आमने-सामने बैठना होगा और अपने मतभेद सुलझाने होंगे।

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