बसंत पंचमी के बाद मौसम बदलेगा: शत्रुघ्न सिन्हा

Edited By Seema Sharma,Updated: 07 Feb, 2019 09:02 AM

the weather will change after basant panchami shatrughan sinha

अभिनेता व भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने पंजाब केसरी और नवोदय टाइम्स के साथ साक्षात्कार के दौरान आगामी लोकसभा चुनाव से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र तक अपनी बात और विचारों को खुलकर रखा।

नेशनल डेस्कः अभिनेता व भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने पंजाब केसरी और नवोदय टाइम्स के साथ साक्षात्कार के दौरान आगामी लोकसभा चुनाव से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र तक अपनी बात और विचारों को खुलकर रखा। 2019 में उनकी रणनीति क्या होगी, इसारों-इशारों में यह भी बता गए। साथ ही भाजपा के प्रति उनके तीखे तेवरों पर भी उन्होंने चर्चा की। वहीं वे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तारीफ करने से नहीं चूके।
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इतने लंबे समय का साथ और भाजपा से नाराजगी की वजह क्या है?
मेरी नाराजगी के कई कारण हैं। मैं कहता रहा हूं कि भाजपा मेरी पहली और आखिरी पार्टी है। लेकिन, आज पार्टी वन मैन शो और टू मैन आर्मी बन चुकी है। पार्टी में लोकशाही नहीं, तानाशाही है। संवाद खत्म हो चुका है। हमने देश को सर्वोच्च माना है और नोटबंदी हो या जी.एस.टी., इन मुद्दों को देश हित में उठाया है। हमें बागी मान लिया गया। मैं हमेशा कहता रहा हूं कि व्यक्ति से बड़ी पार्टी और पार्टी से बड़ा देश। लोग कहते हैं मंत्री नहीं बनाए जाने से मैं नाराज हूं। मैंने खुद पी.एम. से कहा था कि मंत्री नहीं बनाए जाने का मुझे कोई मलाल नहीं। मेरा व्यक्तित्व ही मेरी पहचान है। मंत्री बनाना पी.एम. का विशेषाधिकार है। लेकिन, सवाल खड़ा होता है कि मंत्री के लिए कोई तो मैरिट बनेगी? शायद अडवानी जी का साथ देने की कीमत मुझे चुकानी पड़ी। लेकिन, मैं अडवानी जी का साथ नहीं छोड़ूंगा।
अब क्या- चाह गई, चिंता गई
मनवा बेपरवाह,
जाको कछु न चाहिए, वे शाहन के शाह।।


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अगला चुनाव भाजपा से या फिर कोई और दल चुनेंगे?
मैं अपनी किताब में भी लिख चुका हूं कि इंदिरा गांधी जीवित होतीं तो मैं आज कांग्रेस में होता। आपातकाल में मैंने उनका विरोध किया था, लेकिन जब मुलाकात हुई तो मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ था। भाजपा से मैं भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ हूं। मैंने भाजपा छोड़ी नहीं है और न ही भाजपा ने मुझे छोड़ा है। मेरे लिए यह टर्निंग पीरियड है। पार्टी के खिलाफ न कभी गया हूं और न बोलूंगा। मेरे अच्छे रिश्ते ममता बनर्जी से भी हैं और अरविंद केजरीवाल से भी हैं। मायावती और कांशीराम ने मुझ पर जो अहसान किया है, उसे तो मैं कभी भूल ही नहीं सकता। तेजस्वी बहुत ही अच्छे हैं। लालू यादव जी से मेरे पुराने संबंध हैं। इन सबकी भावनाएं मेरे साथ हैं। इन भावनाओं पर कुठाराघात नहीं कर सकता। मेरी चिंता यह नहीं कि मैं किसे ज्वाइन करूं, चिंता यह है कि मैं किसे न ज्वाइन करूं। वक्त नजदीक आ रहा है। बसंत पंचमी के बाद मौसम बदलेगा। अभी तो मैं भाजपा में हूं।
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सी.बी.आई. और ममता बनर्जी के बीच जो कुछ हुआ, उस पर क्या कहेंगे?
ममता बनर्जी दबंग आयरन लेडी हैं। वह बंगाल टाइगर हैं। उनको क्यों छेड़ रहे हैं? सी.बी.आई. जो कर रही है, उस पर कितना भरोसा किया जाए। सृजन घोटाले में इतनी तत्परता से काम क्यों नहीं किया गया। फिर यह सब ऐसे वक्त क्यों किया जा रहा है, जब चुनाव हैं। कहीं यह बदले की भावना से तो नहीं? लालू यादव, शशि थरूर, पी चिदंबरम, ममता बनर्जी... क्या है। सी.बी.आई. ही क्यों, बाकी संस्थाओं का भी अपने तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। चुनाव आयोग, हिमाचल विधानसभा चुनाव के साथ ही गुजरात चुनाव कराने की बजाय अलग तारीख तय की गई। देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार जजों को आखिर क्यों मीडिया के सामने आना पड़ा।
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अगर मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनते तो अगला पी.एम. चेहरा कौन हो सकता है?
यह तो आने वाले चुनाव के बाद सीटों की स्थिति से तय होगा। लेकिन राहुल गांधी निश्चित रूप से एक बेहतर चेहरा हैं। तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनवा कर राहुल ने अपनी नेतृत्व क्षमता साबित कर दी। राहुल में पी.एम. बनने की पूरी क्षमता है। मायावती भी किसी मायने में कम नहीं हैं। ममता तो हैं हीं। हर तरह से योग्य और अच्छे लोग हैं।

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मोदी ऊर्जावान मगर ओवर एक्सपोजर के शिकार प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी मेरे मित्र हैं और मैं आभारी हूं कि वह मेरे बेटे के विवाह में विशेष तौर पर मुंबई आए। मैं बहुत सकारात्मक तरीके से कह रहा हूं कि मोदी में गजब का जोश और ऊर्जा है। वह बहुत मेहनती हैं। लेकिन, पार्टी में कुछ लोगों की ही चलती है और कभी काबिल लोगों को काम दिया ही नहीं गया। खुद ही पूरे पांच साल हर जगह बने रहे। हालात यह हैं कि लोगों से कैबिनेट के पांच मंत्रियों के नाम पूछें तो शायद ही कोई बता पाएगा। इसके चलते मोदी अब ओवर एक्सपोजर के शिकार हैं। मोदी की सभाओं को सुनें, लोग उनके भाषण से ऊबने लगे हैं। क्योंकि, अब भाषण में न डेप्थ है और न कंटेंट। वे इतना बोल चुके हैं, लोग सुन-सुन कर थक चुके हैं। 2014 में जो स्थिति थी, आज है क्या? लोग परेशान हैं। अब सीनियर्स से चुनाव लड़ने को कहा जा रहा है। पहले 75 साल की सीमा तय करके हाशिए पर डाल दिया था। इसमें भी दोहरा मापदंड अपनाया गया। कलराज मिश्रा को 88 साल की उम्र में भी कैबिनेट दिया। 87 साल की आयु वाले वकील को अटार्नी जनरल बनाया। तो यह सब क्या है?
जाना था हमसे दूर, बहाने बना लिए।
अब तुमने कितनी दूर ठिकाने बना लिए।।

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