मंगलवार स्पेशल: हनुमान जी से जुड़ी दिलचस्प बातों का करें श्रवण

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Sep, 2019 07:30 AM

tuesday hanuman ji

अपनी सुख-शांति, भूख-प्यास का कभी भी ध्यान न रखने वाले श्री हनुमान जी का अद्वितीय परोपकारी जीवन सर्वथा चरितार्थ होता रहा है। वह परहित एवं जन-जन का संकट निवारण करने के लिए कुछ भी अजूबा,

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अपनी सुख-शांति, भूख-प्यास का कभी भी ध्यान न रखने वाले श्री हनुमान जी का अद्वितीय परोपकारी जीवन सर्वथा चरितार्थ होता रहा है। वह परहित एवं जन-जन का संकट निवारण करने के लिए कुछ भी अजूबा, आश्चर्यजनक और असंभव कार्य करते रहे हैं। उन्हें अपने विश्राम करने की कोई चिंता नहीं रही है। श्री हनुमान जी वानरराज केसरी और देवी अंजनी के ईश्वरीय अंश पुत्र हैं, जिनके भवन के चहुं ओर फल के वृक्षों की कमी नहीं रही होगी। पास के फलों को अनदेखा कर क्या एक-मात्र फल खाने के लिए उन्होंने एक लम्बी छलांग लगाने का परिश्रम किया होगा? श्री हनुमान जी की चारित्रिक विशेषताओं को स्मरण करने पर इस तथ्य पर विश्वास कर लेना सहज नहीं है।

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माना कि मधुर और स्वादिष्ट फल वानर जाति को जन्मजात प्रिय रहे हैं। सुंदर मधुर और स्वादिष्ट फल खाने के लिए वह उत्पात मचा देते हैं किंतु श्री हनुमान अनुशासन बद्ध होकर उत्तम आदर्शों का पालन करते रहे हैं।

माता श्री सीता की खोज के समय लंका में रावण की वाटिका में लगे फलों को देखकर श्री हनुमान जी के मन में फलों को भक्षण करने की प्रबल इच्छा जाग्रत हो उठी थी, किंतु उन्होंने तुरंत ही फलों को ग्रहण नहीं किया था। उनका आदर्शमय अनुशासन उनके आड़े आ गया। उन्होंने माता सीता का रुख जानने के लिए कहा, ‘‘हे माता! वाटिका के वृक्षों में लगे सुंदर फलों को देखकर मेरी भूख जाग्रत हो उठी है।’’ इस दृश्य का श्रीरामचरितमानस (सुंदरकांड) में बड़ा ही विचित्र चित्रण किया गया है।

सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लाग देखि सुंदर फल रूखा।।

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माता श्री सीता की अनुमति प्राप्त होने पर ही उन्होंने फल ग्रहण किए थे। वैसे तो पूरी वाटिका फलों से लदी पड़ी थी, किंतु श्री हनुमान  जी ने अपना संयम नहीं खोया। 

श्री हनुमान जी द्वारा सूर्य को अपने मुख में धारण करने का यह अर्थ तो नहीं होता कि उन्होंने भक्षण कर लिया, अपितु श्री हनुमान जी का यह अभासित कृत्य परहित को इंगित करता है।

वानर जाति अपनी प्रत्येक प्रिय वस्तु स्वाभावानुसार सुरक्षा के लिए अपने मुंह में धारण करती है। माता सीता की खोज में निकलते समय जब श्री राम ने अपनी मुद्रिका श्री हनुमान को दी तो उन्होंने (श्री हनुमान ने) ‘‘प्रभु मुद्रिका मैलि मुख माहीं।’’ श्री हनुमान द्वारा मुद्रिका सहित विशाल जलाधि लांघने पर गोस्वामी श्री तुलसीदास जी को तनिक भी अचरज नहीं हुआ था, फिर सूर्य देव को राहू की नीयत से बचाव के लिए श्री हनुमान जी द्वारा अपने मुख में धारण करने पर कैसा अचरज? कैसा भ्रम??

प्रश्र उठाया जा सकता है श्री हनुमान जी द्वारा मात्र एक फल के लिए लंबी छलांग लगाई जाने का। वानर तो अपने दैनिक कार्यों के लिए कितनी छलांगें नित्य लगाते रहते हैं, जिसे भी अचरज नहीं माना जा सकता। वानर रूप धारी श्री हनुमान जी भी छलांगें लगाते रहे हैं। श्री हनुमान जी की सभी छलांगें चरम फल दायक रही हैं। मुख्यत: चार छलांगों का वर्णन श्री गोस्वामी जी ने श्री रामचरितमानस में भी किया है, जो शुभ फलदायक रही हैं।

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श्री हनुमान जी ने पहली छलांग लगाई तब सूर्यदेव तक पहुंच गए थे। दूसरी छलांग में वह अथाह विशाल अलंघ्य सागर को लांघ कर लंका में माता सीता तक पहुंच गए। तीसरी छलांग में वह आहत श्री लक्ष्मण जी की औषधि लाने के लिए पर्वत पर पहुंच गए थे और चौथी छलांग लगाने पर वह अयोध्या पहुंच गए थे, जहां श्रीराम के आगमन का संदेश श्री भरत जी को देख कर उनके प्राणों की रक्षा की थी।  राम-रावण युद्ध के समय श्री हनुमान जी द्वारा लगाई गई छलांगें वानर सेना को उत्साहित और रावण की राक्षसी सेना को भयभीत करती रही हैं।

राहू की सभी नकारात्मक शक्तियां सदैव से दुखदायी रही हैं। सूर्य को निगल कर अधिक समय न सही कुछ समय के लिए प्रकाशहीन कर सकता था। श्री हनुमान जी ने समय पर अपनी बुद्धि और विवेक का सही उपयोग कर सूर्य को राहू से बचा लिया। राहू अपनी चेष्टा में विफल होने पर तिलमिला उठा। उसमें इतनी शक्ति तो थी नहीं कि वह श्री हनुमान के सम्मुख आ सके। अत: अपनी दीन-हीन अवस्था लिए इंद्र के समक्ष पहुंचकर उसने अपनी व्यथा कह सुनाई। श्री इंद्र ने राहू की एक वज्र पक्षीय पुकार पर घोर निर्णय लेते हुए अपने वज्र से श्री हनुमान पर प्रहार किया। श्री हनुमान आहत हो गए।

इंद्र द्वारा प्रहार और श्री हनुमान के आहत होने पर श्री पवन देवता क्रोधित हो उठे। उन्होंने (श्री पवन देवता) प्राणवायु की संचारगति को थाम लिया। विश्व में हाहाकार मच गया। प्राण बचाना असम्भव हो गया। देवतागण भी इससे वंचित नहीं रह सके। श्री हनुमान जी की अभाषित, अलौकिक शक्ति से सभी देवगण, ऋषि मुनि, तपस्वी भयभीत हो उठे। सभी ने श्री इंद्र को दोषी ठहराया। सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों ने सामूहिक रूप से श्री पवन देवता एवं श्री हनुमान जी से क्षमा याचना की। देवगणों की दीन याचना पर विचार कर श्री पवन देवता ने प्राणवायु की संचारगति को स्वतंत्र कर दिया। प्राण वायु की गति पुन: प्राप्त होने पर एवं श्री हनुमान द्वारा किए गए सुकृत्य पर प्रसन्न होने पर सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों के आधार पर श्री हनुमान जी को वर दिया। इंद्र ने भी वरदान किया कि मेरा (इंद्र) वज्र भी श्री हनुमान पर प्रभावी नहीं होगा, इसी प्रकार श्री ब्रह्मा जी ने वरदान दिया कि श्री हनुमान को ब्रह्मा-श्राप नहीं लगेगा। एक साथ अनेकानेक वरदान पाकर भी श्री हनुमान जी और भी पराक्रमी, बलशाली और अजेय होकर समस्त कार्यों को सिद्ध करते रहे हैं।

श्री राम की सेवा में पूर्ण समर्पित श्री हनुमान जी का उदात्त चरित्र पग-पग पर उपकारों से भरा पड़ा है। 

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