Edited By Anu Malhotra,Updated: 12 Mar, 2022 10:36 AM
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने एक बड़ा फैसला लिया है। UGC केंद्रीय विश्वविद्यालयों (Central university) में पढ़ाने के लिए अनिवार्य PhD की अनिवार्यता को खत्म कर रहा है। इसके पीछे मुख्य वजह उद्योग जगत के विशेषज्ञों और पेशेवरों को Central...
नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने एक बड़ा फैसला लिया है। UGC केंद्रीय विश्वविद्यालयों (Central university) में पढ़ाने के लिए अनिवार्य PhD की अनिवार्यता को खत्म कर रहा है। इसके पीछे मुख्य वजह उद्योग जगत के विशेषज्ञों और पेशेवरों को Central university में पढ़ाने का मौका देना है, जिनमें से ज्यादातर अपने क्षेत्र में ज्ञान तो भरपूर रखते हैं, लेकिन पीएचडी की डिग्री न होने की वजह से वह प्रोफेसर नहीं बन सकते, इसके लिए UGC की ओर से प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस और एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस जैसे विशेष पद सृजित किए जा रहे हैं।
एक डिप्लोमैट के अनुसार, UGC के इस फैसले के बाद केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय संबंध पढ़ाने का मौका मिल सकेगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष एम जगदेश कुमार ने कहा कि कई विशेषज्ञ हैं जो पढ़ाना चाहते हैं, कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जिसने बड़ी परियोजनाओं को लागू किया हो और जिसके पास जमीनी स्तर का अनुभव हो, या कोई महान नर्तक या संगीतकार हो सकता है, लेकिन हम उन्हें मौजूदा नियमों के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए नियुक्त नहीं कर सकते।
उन्होंने आगे कहा कि इसलिए, यह फैसला लिया गया कि विशेष पद सृजित किए जाएंगे। PhD की कोई आवश्यकता नहीं होगी, विशेषज्ञों को किसी दिए गए डोमेन में अपने अनुभव का प्रदर्शन करने की आवश्यकता होगी। विशेषज्ञों और संस्थानों की आवश्यकताओं के आधार पर ये पद स्थायी या अस्थायी हो सकते हैं। 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने वाले विशेषज्ञ भी पूर्ण या अंशकालिक फैकल्टी के रूप में शामिल हो सकते हैं और 65 वर्ष की आयु तक पढ़ा सकते हैं।
बता दें कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की यूजीसी चेयरपर्सन एम जगदेश कुमार के साथ बीते गुरुवार को बैठक हुई। इस बैठक में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नियमों में संशोधन पर काम करने के लिए एक समिति गठित करने का फैसला किया गया। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, दिसंबर 2021 तक, केंद्र द्वारा वित्त पोषित संस्थानों में 10,000 से अधिक शिक्षकों के पद खाली थे।