धार्मिक स्वतंत्रता पर USCIRF की रिपोर्ट से भारतीय-अमेरिकी संगठन नाखुश, कहा-कश्मीरी पंडितों का जिक्र नहीं

Edited By Seema Sharma,Updated: 27 Apr, 2022 12:31 PM

uscirf report on religious freedom

प्रतिष्ठित भारतीय-अमेरिकियों के एक समूह ने अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की ताजा वार्षिक रिपोर्ट पर नाखुशी जताई और आरोप लगाया कि यह भारत के खिलाफ पक्षपातपूर्ण है।

नेशनल डेस्क: प्रतिष्ठित भारतीय-अमेरिकियों के एक समूह ने अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग की ताजा वार्षिक रिपोर्ट पर नाखुशी जताई और आरोप लगाया कि यह भारत के खिलाफ पक्षपातपूर्ण है। इस रिपोर्ट में राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन को धार्मिक स्वतंत्रता के दर्जे के संबंध में भारत, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और 11 अन्य देशों को ‘‘खास चिंता वाले देशों'' की सूची में डालने की सिफारिश की गई है। हालांकि, अमेरिकी सरकार इस सिफारिश को मानने के लिए बाध्य नहीं है। अमेरिका स्थित नीति अनुसंधान एवं जागरूकता संस्थान ‘फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज' (FIIDS) के सदस्य खंडेराव कंड ने आरोप लगाया, ‘‘भारत पर USCIRF की रिपोर्ट पक्षपातपूर्ण है....।

 

उन्होंने कहा कि भारत का नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) ऐसा कानून है जो उन शरणार्थियों को नागरिकता देता है जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश से धार्मिक रूप से प्रताड़ित रहे हैं, लेकिन यह मानने के बजाए इसे लोगों की नागरिकता छीनने के तौर पर दिखाया गया। खंडेराव ने कहा कि इसी तरह रिपोर्ट में यह जिक्र नहीं किया गया है कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) भारत की अदालत के आदेश के अनुरूप लागू की जा रही है और लोकतांत्रिक देशों में यह आम है।

 

‘ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा' (GKPD) के संस्थापक सदस्य जीवन जुत्शी ने कहा कि यह निराशाजनक है कि रिपोर्ट में केवल कश्मीर के मुसलमानों का हवाला दिया गया है लेकिन कश्मीरी पंडित हिंदुओं को नजरअंदाज कर दिया गया, जो उनके आतंकवाद के पीड़ित रहे हैं। इसमें यह जिक्र नहीं किया गया कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद स्थिति सामान्य हुई है।

 

कैलिफोर्निया में ‘खालसा टुडे' के मुख्य संपादक सुखी चहल ने कहा कि विदेश में कुछ भारत विरोध ताकतों और खालिस्तानी तत्वों ने किसानों के प्रदर्शनों के जरिए भारत में बाधा उत्पन्न करने के लिए अमेरिकी डॉलर में इनाम देने की खुले तौर पर घोषणा की थी। यह मानने के बजाए कि खालिस्तानी आतंकवादियों ने किसानों के आंदोलन में घुसपैठ की थी, रिपोर्ट में यह गलत तरीके से दिखाया गया है कि सरकार ने सभी सिख किसान प्रदर्शनकारियों को आतंकवादी बताकर उनका अपमान किया।

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