इलेक्शन डायरी: वल्लभ भाई पटेल ऐसे बने थे देश के पहले उप प्रधानमंत्री

Edited By Pardeep,Updated: 31 Mar, 2019 05:34 AM

vallabh bhai patel became the first deputy prime minister of the country

हालांकि मौजूदा सरकार में कोई भी उप प्रधानमंत्री नहीं है लेकिन भारत की आजादी के बाद 7 नेता इस पद पर भी विराजमान रहे हैं। इनमें से सबसे पहले उप प्रधानमंत्री वल्लभ भाई पटेल थे जो बिना चुनाव के देश के पहले उप प्रधानमंत्री बने थे। उनके पास इस पद के अलावा...

नेशनल डेस्क: हालांकि मौजूदा सरकार में कोई भी उप प्रधानमंत्री नहीं है लेकिन भारत की आजादी के बाद 7 नेता इस पद पर भी विराजमान रहे हैं। इनमें से सबसे पहले उप प्रधानमंत्री वल्लभ भाई पटेल थे जो बिना चुनाव के देश के पहले उप प्रधानमंत्री बने थे। उनके पास इस पद के अलावा गृह मंत्रालय का भी प्रभार था। वह आजादी के बाद बनी पहली अंतरिम सरकार में उप प्रधानमंत्री थे और 15 दिसम्बर 1950 (अपने निधन तक) इस पद पर बने रहे। देश का पहला चुनाव 1951 में हुआ और उस दौरान वल्लभ पाई पटेल इस दुनिया में नहीं थे। 
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वल्लभ भाई पटेल के देश के पहले उप प्रधानमंत्री बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। दरअसल यदि उस दौरान महात्मा गांधी जवाहर लाल नेहरू के पक्ष में अपना फैसला न लेते तो शायद वल्लभ भाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते। हालांकि आजादी से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए उस समय वल्लभ भाई पटेल और जवाहर लाल नेहरू में मुकाबला था और कांग्रेस के 15 में से 12 प्रदेशों के अध्यक्ष वल्लभ भाई पटेल को पार्टी का अध्यक्ष बनाने के पक्ष में थे और इसके लिए नामांकन दायर करने की अंतिम तिथि 29 अप्रैल 1946 निर्धारित की गई थी। यह भी तय था कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही देश की कमान संभालेगा। 
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इस दौरान महात्मा गांधी ने नेहरू से कहा कि ‘किसी भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने आपके नाम पर सहमति नहीं दी है और वर्किंग कमेटी के कुछ सदस्य ही आपके पक्ष में हैं।’ गांधी के इस बयान के बाद बैठक में सन्नाटा छा गया था और इसके बाद गांधी जी को सूचित किया गया कि जवाहर लाल नेहरू दूसरी पोजीशन मंजूर नहीं करेंगे और वल्लभ भाई पटेल को अपने नामांकन पत्र वापस लेने के लिए कहा गया। महात्मा गांधी ने उस समय वल्लभ भाई पटेल को दूसरी पोजीशन के लिए मनाया और जब देश आजाद हुआ तो पहली अंतरिम सरकार में वह उप प्रधानमंत्री बने। वल्लभ भाई पटेल द्वारा दूसरी पोजीशन के लिए सहमति देने के पीछे 2 कारण थे। 
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पहला कारण यह था कि पद और कुर्सी वल्लभ भाई पटेल के लिए मायने नहीं रखती थी। दूसरा कारण यह था कि उन्हें लगा कि देश के इस नाजुक दौर में यदि जवाहर लाल नेहरू ने विद्रोह किया तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं क्योंकि मोहम्मद अली जिन्ना उस दौर में भारतीय रियासतों को पाकिस्तान के साथ जाने के लिए बड़ी-बड़ी पेशकश कर रहे थे। ऐसे दौर में कांग्रेस का एकजुट रहना जरूरी था। लिहाजा इस कारण भी वल्लभ भाई पटेल को अपना नामांकन वापस लेना पड़ा था।

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