कांग्रेस नेता क्यों अपना रहे नरेंद्र मोदी पर नरम रुख?

Edited By Pardeep,Updated: 26 Aug, 2019 04:33 AM

why are congress leaders adopting a soft stance on narendra modi

पिछले सप्ताह देखने में आया कि कांगे्रस के तीन बड़े नेताओं ने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ नरम रुख अपनाने की वकालत की। राज्यसभा सांसद व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता...

नई दिल्लीः पिछले सप्ताह देखने में आया कि कांगे्रस के तीन बड़े नेताओं ने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ नरम रुख अपनाने की वकालत की। राज्यसभा सांसद व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने कहा कि विपक्ष को हर समय मोदी को शैतान की तरह पेश करने से बाज आना चाहिए। उनका तर्क था कि हर समय उनकी बुराई करके आप उनका सामना नहीं कर सकते। वहीं तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्वीट कर लगभग जयराम रमेश जैसी ही बात कही कि विपक्ष की आलोचना भी तभी सही लगेगी, जब वह मोदी के किए गए अच्छे कामों की तारीफ भी किया करे। 
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राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने भी जयराम रमेश की बातों का समर्थन करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की आलोचना मुद्दों पर आधारित होनी चाहिए न कि व्यक्तिगत आलोचना की जाए। इससे पहले सिंघवी ने पीएम के कश्मीर पर लिए गए फैसले का समर्थन किया था जो पार्टी के आधिकारिक रुख से हटकर था। इसके अलावा भूपेंद्र हूडा, दीपेंद्र हूडा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा और कुलदीप विश्नोई ने भी मोदी नीत केंद्र सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया था। अब सवाल उठता है कि क्या यह कांगे्रस की कोई नई रणनीति है या यह पार्टी के अंदर विचाधारात्मक विभाजन की ओर इशारा करता है। 
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पहला कारण यह हो सकता है कि कांग्रेस भाजपा के उन मतदाताओं को वापस अपनी ओर खींचना चाहती है जो भाजपा में चला गया है। थरूर का भी कहना है कि कांग्रेस को सत्ता में वापसी करनी है तो भाजपा के खुली मानसिकता वाले वोटर्स को अपनी तरफ लाना होगा। पीएम मोदी व उनकी सरकार की लगातार आलोचना करने से कांगे्रस का अलगाव और बढ़ेगा, जिससे आखिरी समय में मन बनाने वाले वोटर्स को खींचने के अवसर कम हो जाएंगे। दूसरे, कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। कई कांग्रेस नेताओं का मानना है कि उत्तर और पश्चिमी भारत में हिंदू वोटर्स के बीच मोदी की लोकप्रियता बहुत ज्यादा है और अनुच्छेद 370 व ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर मोदी पर हमलावर होने को हिंदुओं पर हमला माना जाएगा। साथ ही इसे मुस्लिम तुष्टिकरण के तौर पर भी देखा जाएगा। 
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हाल में मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में वे इसलिए जीते, क्योंकि वहां प्रचार के दौरान स्थानीय मुद्दों को उठाया न कि मोदी पर फोकस किया। इससे हिंदुत्व पर वोट देने वालों ने भी कांग्रेस को वोट किया।
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महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखंड के आगामी चुनावों में प्रचार के दौरान कांग्रेस की रणनीति स्थानीय मुद्दों को उठाने की होगी न कि मोदी या राष्ट्रीय मुद्दों पर उनकी नीतियों के विरोध की। इसलिए आश्चर्य नहीं कि महाराष्ट्र में चुनाव की जिम्मेदारी संभाल रहे सिंधिया ने 370 पर मोदी का समर्थन किया। तीसरे इसे राहुल गांधी वाली रणनीति को त्यागने के तौर पर भी देखा जा रहा है। 2019 के चुनाव में राहुल ने मोदी पर आक्रामक रुख अपनाया था। उनको राफेल की जगह कृषि क्षेत्र के संकट व बेरोजगारी पर बात करनी चाहिए थी। राहुल के ‘चौकीदार चोर है’ अभियान ने उनको विपक्ष के चेहरे के रूप में तो स्थापित किया लेकिन चुनावी सफलता नहीं दिला सकी। 

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