नए संसद भवन के उद्घाटन के बीच क्यों ध्यान खींच रही यह तस्वीर, BJP नेताओं से लेकर लोग भी कर रहे ट्वीट

Edited By Updated: 28 May, 2023 07:06 PM

why this picture is attracting attention in the midst of the nph

नए संसद भवन में एक भित्ति चित्र प्राचीन भारत के प्रभाव को दर्शाता है। यह भित्ति चित्र रविवार को सोशल मीडिया पर सामने आया जिसमें कई लोगों ने दावा किया कि यह ‘अखंड भारत' के संकल्प का प्रतिनिधित्व करता है

नई दिल्लीः नए संसद भवन में एक भित्ति चित्र प्राचीन भारत के प्रभाव को दर्शाता है। यह भित्ति चित्र रविवार को सोशल मीडिया पर सामने आया जिसमें कई लोगों ने दावा किया कि यह ‘अखंड भारत' के संकल्प का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ‘अखंड भारत' को एक ‘‘सांस्कृतिक अवधारणा'' के रूप में वर्णित करता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को नए संसद भवन का उद्घाटन किया। संसद भवन में भित्तिचित्र, अतीत के महत्वपूर्ण साम्राज्यों और शहरों को चिह्नित करता है और वर्तमान पाकिस्तान में तत्कालीन तक्षशिला में प्राचीन भारत के प्रभाव को दर्शाता है।

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ट्विटर पर कहा, ‘‘संकल्प स्पष्ट है- अखंड भारत।'' भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कर्नाटक इकाई ने नए संसद भवन के अंदर प्राचीन भारत, चाणक्य, सरदार वल्लभभाई पटेल और बी. आर. आंबेडकर और देश की सांस्कृतिक विविधता के भित्ति चित्रों सहित कलाकृतियों की तस्वीरें साझा कीं। भाजपा की कर्नाटक इकाई ने अपने ट्विटर हैंडल पर कहा, ‘‘यह हमारी गौरवपूर्ण महान सभ्यता की जीवंतता का प्रतीक है।''


मुंबई उत्तर-पूर्व से लोकसभा सदस्य मनोज कोटक ने ट्विटर पर कहा, ‘‘नई संसद में अखंड भारत। यह हमारे शक्तिशाली और आत्मनिर्भर भारत का प्रतिनिधित्व करता है।'' ट्विटर पर कई लोगों ने नए के महानिदेशक अद्वैत गडनायक ने कहा, ‘‘हमारा विचार प्राचीन युगों के दौरान भारतीय विचारों के प्रभाव को चित्रित करना था। यह उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में वर्तमान अफगानिस्तान से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया तक फैला हुआ है।''

गडनायक नए संसद भवन में प्रदर्शित कलाकृतियों के चयन में शामिल थे। आरएसएस के अनुसार, अखंड भारत की अवधारणा अविभाजित भारत को संदर्भित करती है जिसका भौगोलिक विस्तार प्राचीनकाल में बहुत विस्तृत था। हालांकि, अब आरएसएस का कहना है कि अखंड भारत की अवधारणा को वर्तमान समय में सांस्कृतिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए, न कि स्वतंत्रता के समय धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन के राजनीतिक संदर्भ में।

 

 

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