पीजीआई ने दिमागी संक्रमण की पहचान को खोजा नया तरीका

Edited By Archna Sethi,Updated: 12 Nov, 2021 10:55 AM

pgi discovers new way to identify brain infection

टेनिया सोलियम परजीव से होने वाली न्यूरोसिस्टसरकोसिस बीमारी की जांच हुई आसान आईसीएमआर के प्रोजैक्ट में हरियाणा, चंडीगढ़ और उत्तर प्रदेश के रोगियों को किया गया शामिल अधपके मांस और कच्ची पत्तागोभी का सेवन कर सकता है दे सकता है दीमागी बीमारी

चंडीगढ़, (अर्चना सेठी) पीजीआई ने दिमागी संक्रमण की पहचान के लिए नया तरीका  खोजने में सफलता हासिल की है। मेडिकल पैरासाइटीलॉजी विभाग ने ऐसे टेस्ट की खोज की है, जिसके बूते अब पेशैंट्स को चीडफ़ाड़ या दर्दनाक टेस्ट करवाने की जरूरत नहीं रहेगी। दिमाग के अंदर घुसे टेनिया सोलियम परजीव की पहचान को दिमाग से सेरेब्रोस्पाइनल लूड निकालना भी जरूरी नहीं रहेगा।

महज यूरिन सैंपल की जांच से दिमाग में मौजूद टेनिया सोलियम की मौजूदगी की सटीक जानकारी मिल सकेगी। टेनिया सोलियम परजीव की वजह से लोग न्यूरो सिस्टसरकोसिस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। गंदे खाने, गंदे हाथों व संक्रमित पानी पीने पर यह परजीव आंतों में घुस कर दिमाग में पहुंच जाता है और परजीव की वजह से पेशैंट्स को सिर में तेज दर्द और दौरों की समस्या शुरु हो जाती है। परजीव की दिमाग में मौजूदगी की पहचान के लिए दिमाग से लूड निकालकर उस लूड में परजीव के डीएनए की खोज की जाती है। सिर्फ इतना ही नहीं सीटी स्कैन और एमआरआई जैसे टेस्ट भी करवाने पड़ते हैं। पेशैंट्स को इन सारे टेस्ट के लिए 5,000 रुपये से लेकर 20,000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं।  इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने न्यूरोसिस्टसरकोसिस रोग की पहचान को नए तरीके की खोज का प्रोजैक्ट सौंपा था। प्रोजैक्ट के अंतर्गत पीजीआई के मेडिकल पैरासाइटीलॉजी विभाग ने न्यूरोलॉजी विभाग के साथ मिलकर नई तकनीक की खोज की है।

यह हैं टीम में शामिल विशेषज्ञ

नए टेस्ट की खोज करने वालों में मेडिकल पैरासाइटीलॉजी विभाग के एचओडी प्रो.राकेश सहगल, न्यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ.विवेक लाल, न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफैसर डॉ.मनीष मोदी, पैरासाइटीलॉजी विभाग से प्रोफैसर डॉ.उपनिंदर कौर, वैज्ञानिक डॉ.तरूणा कौड़ा और शोधकर्ता यशवी शामिल थी।

ऐसा फैलती है बीमारी

पैरासाइटीलॉजी विभाग से विशेषज्ञ डॉ.तरूणा कौड़ा का कहना है कि न्यूरोसिस्टसरकोसिस एक ऐसी बीमारी है जो ज्यादातर मांसाहारी भोजन खाने वालों में होती है। सूअर के मांस या अन्य मांस में मौजूद टेनिया सोलियम परजीव इंसानों के शरीर में प्रवेश कर जाता है और आंतों में पहुंच जाता है। बहुत से मामलों में आंतों के रास्ते परजीव बाहर निकल जाता है परंतु कुछ लोगों में यह परजीव दिमाग में पहुंच कर संक्रमण फैला देता है। कई सब्जियों के नजदीक भी यह परजीव मौजूद होता है जैसा पत्तागोभी। डॉ.तरूणा का कहना है कि मांसाहर हो या पत्तागोभी हमेशा पका कर ही खानी चाहिए। पकने पर परजीव नष्ट हो जाता है परंतु ठीक से पके ना होने पर पत्तागोभी और मांस से परजीव शरीर को संक्रमित कर देता है। शोधकर्ता यशवी मेहता का कहना है कि बिमारी की पहचान के लिए जब दिमाग से लूड निकाला जाता है तो वह प्रक्रिया बहुत चुनौतीपूर्ण होती है। लूड निकालने को दिमाग में लगाए इंजैक्शन जान को भी खतरे में डाल सकते हैं। पेशैंट्स के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ऐसे टेस्ट की खोज की गई है। दिमाग में मौजूद परजीव की वजह से यूरिन में भी एंटीजन मौजूद होंगे ऐसा सोच कर कई पेशैंट्स पर टेस्ट किया गया। 16 पेशैंट्स के सैंपल जब नई तकनीक से जांचे गए तो उनमें परजीव की मौजूदगी मिली। पीजीआई में पिछले एक साल में हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश से टेनिया सोलियम के 51 पेशैंट्स पहुंच चुके हैं। नई तकनीक से अन्य पेशैंट्स के सैंपल की भी जांच की जाएगी।

महज सौ रुपये में करवा सकेंगे टैस्ट

पीजीआई के पैरासाइटीलॉजी विभाग के एचओडी प्रो.राकेश सहगल का कहना है कि न्यूरोसिस्टसरकोसिस बीमारी की जांच के लिए अब पेशैंट्स को दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरने की जरूरत नहीं रहेगी और ना ही टेस्ट के लिए हजारों रुपये खर्च करने पड़ेंगे। नए टेस्ट में दिमाग से लूड निकालवाने का कष्ट भी नहीं उठाना होगा। महज सौ रुपये के खर्च पर पेशैंट्स जान सकेेंगे कि वह न्यूरोसिस्टसरकोसिस रोग से ग्रस्त हैं या नहीं। फिलहाल 16 पेशैंट्स में टेस्ट करने के बाद नए तरीके की स्टैंडर्डाइजेशन कर ली गई है और इसी तकनीक से बाकी के पेशैंट्स के टैस्ट भी किए जाएंगे।

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