Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Aug, 2017 01:36 PM
लंदन, सिंगापुर और दुबई जैसे शहरों में प्रॉपर्टी में इनवेस्टमेंट करने वाले बहुत से रईस भारतीयों....
नई दिल्लीः लंदन, सिंगापुर और दुबई जैसे शहरों में प्रॉपर्टी में इनवेस्टमेंट करने वाले बहुत से रईस भारतीयों पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की नजर है। पिछले दो महीनों में इस तरह के कम से कम 12 लोगों से विदेश में प्रॉपर्टीज से संभावित रेंटल इनकम पर टैक्स न चुकाने के लिए पूछताछ की गई है।
ज्यादातर भारतीयों को नहीं है जानकारी
ये प्रॉपर्टीज रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एल.आर.एस.) के तहत खरीदी गई थीं। इस स्कीम में एक व्यक्ति को विदेश में एक वर्ष में 2,50,000 डॉलर तक का इनवेस्टमेंट करने की अनुमति है। रईस भारतीय आमतौर पर विदेश में खरीदे गए घरों का इस्तेमाल वैकेशन होम के तौर पर करते हैं। इन घरों का इस्तेमाल विदेश में पढ़ने वाले या रहने वाले उनके परिवार के सदस्य भी करते हैं। एक्सपर्ट्स ने बताया कि विदेश में प्रॉपर्टी खरीदने वाले 10 में से 9 भारतीयों को रेंट पर जानकारी दी गई। विदेशी प्रॉपर्टीज पर टैक्स चुकाने से जुड़े नियम की या तो जानकारी नहीं थी या उन्होंने इसे समझने में गलती की। टैक्स अधिकारियों की भाषा में इसे 'डीम्ड रेंटल इनकम' कहा जाता है।
विदेश में मौजूद प्रॉपर्टीज पर भी देना होता है टैक्स
सीनियर चार्टर्ड एकाउंटेंट दिलीप लखानी के अनुसार, 'सेल्फ-ऑक्युपाइड प्रॉपर्टी को छोड़कर व्यक्ति को उसके मालिकाना हक वाली सभी प्रॉपर्टीज के रेंट या डीम्ड रेंटल इनकम पर टैक्स चुकाना होता है। बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि यह नियम देश के साथ ही विदेश में मौजूद प्रॉपर्टीज पर भी लागू होता है।' 2008 से बहुत से भारतीयों ने एल.आर.एस. के तहत विदेशी प्रॉपर्टीज में 60 करोड़ डॉलर से अधिक का इनवेस्टमेंट किया है। एल.आर.एस. की शुरुआत रिजर्व बैंक ने 2004 में की थी। शुरुआत में इसके तहत एक वर्ष में 25,000 डॉलर तक का इनवेस्टमेंट करने की अनुमति थी, जो अब बढ़कर 2,50,000 डॉलर पर पहुंच गई है।