नोटबंदी की आलू पर भीषण चोट

Edited By ,Updated: 27 Dec, 2016 06:14 PM

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नोटबंदी की मार से आलू राजा से रंक हो गया। नोटबंदी के बाद आलू के दाम आधे रह गए हैं। बाजार में नया आलू आने से पुराने को कोई पूछने वाला नहीं है जबकि शीतगृहों से आलू की विदाई हो चुकी है।

मुंबईः नोटबंदी की मार से आलू राजा से रंक हो गया। नोटबंदी के बाद आलू के दाम आधे रह गए हैं। बाजार में नया आलू आने से पुराने को कोई पूछने वाला नहीं है जबकि शीतगृहों से आलू की विदाई हो चुकी है। देश की कई मंडियों में 100 रुपए क्विंटल तक पहुंच चुके आलू को किसान अब देखना भी नहीं चाह रहे हैं। पिछले एक सप्ताह से आवक में तेजी को देखते हुए फिलहाल आलू में दम आना मुश्किल लग रहा है। 

नोटबंदी का असर लगभग सभी सब्जियों पर पड़ा लेकिन सबसे बुरा हाल सब्जियों के राजा आलू का हुआ है। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के ऐलान वाले दिन यानी 8 नवंबर को देशभर की मंडियों में आलू का औसत भाव 1,182 रुपए क्विंटल था और देश की मंडियों में 1,63,371 क्विंटल आलू की आपूर्ति हो रही थी। नोटबंदी के ऐलान के साथ ही मंडियों में आलू की आवक कमजोर पडऩे लगी और दाम भी तेजी से गिरने शुरू हो गए। देश की मंडियों में 1 दिसंबर को आवक 14,3807 क्विंटल और औसत कीमत 738 रुपए क्विंटल हो गई। 

नवंबर से शीतगृहों के दरवाजे भी आलू के लिए बंद हो गए जिससे मंडियों में आलू का आवक बढऩे लगी। आवक बढऩे से दाम और लुढ़क गए हैं। प्रतिष्ठान के मुताबिक आलू का पूरे देश में औसत भाव 589 रुपए क्विंटल है। जबकि देश की कई मंडियों में आलू को कोई पूछने वाला तक नहीं है। मध्य प्रदेश के भोपाल और इंदौर में आलू 100 रुपए क्विंटल यानी एक रुपए किलो बेचा जा रहा है। इंदौर में आलू व्यापारी रविसेन के मुताबिक सच्चाई यह है कि आलू कोई खरीदने को तैयार नहीं है। व्यापरियों के पास भी स्टॉक है और किसानों का भी आलू मंडी में मांग की अपेक्षा बहुत ज्यादा आ रहा है, ऐसे में किसान आलू फेंकने के लिए मजबूर हो रहे हैं क्योंकि उनके टैकर का भाड़ा भी निकल पाना मुश्किल हो जा रहा है। 

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