रियल्टी बाजार: क्रेता-विक्रेता के हित में

Edited By ,Updated: 16 Aug, 2016 12:52 PM

real estate interest rate

गत 3 से 4 वर्ष के दौरान आवासीय रियल एस्टेट मार्कीट में मांग काफी कम रही है। इस वजह से ‘अनसोल्ड इन्वैंट्री’ यानी ‘तैयार परंतु न बिके आवासों’ की संख्या में वृद्धि हुई है।

नई दिल्लीः गत 3 से 4 वर्ष के दौरान आवासीय रियल एस्टेट मार्कीट में मांग काफी कम रही है। इस वजह से ‘अनसोल्ड इन्वैंट्री’ यानी ‘तैयार परंतु न बिके आवासों’ की संख्या में वृद्धि हुई है। इससे बाजार में मांग कम व आपूर्ति ज्यादा की स्थिति है। आपूर्ति व मांग में मेल न बैठने की वजह से ही ‘अनसोल्ड इन्वैंट्री’ बढ़ती गई है। 

डिवैल्परों पर प्रभाव 
* इस वजह से कई रियल एस्टेट बाजारों में डिवैल्परों को आवासों की बिक्री बढ़ाने के लिए कीमतों में कुछ सुधार करना पड़ा।
* वर्तमान मांग की जरूरतों को पूरा करने के लिए उनके अनुरूप नई परियोजनाएं लांच की गई हैं।

यह अच्छी बात है कि इस वर्ष की शुरूआत कुछ उत्साह के साथ हुई। गत वर्ष प्रोजैक्ट लांच होने में जो गिरावट दर्ज हुई उसमें इस वर्ष की पहली तिमाही में कुछ सुधार दिखाई दिया। इस वर्ष नए  प्रोजैक्ट लांच करने में डिवैल्परों ने कई गुना वृद्धि की है  क्योंकि उन्हें आने वाले दिनों में मांग के बढऩे की पूरी अपेक्षा थी। 

वर्तमान रुझानों से साफ प्रतीत होता है कि आवासीय रियल एस्टेट में इस वक्त खरीदारों का हाथ ही ऊपर है। उनके पास चुनने के लिए कई सारे विकल्प हैं और कीमतों में भी लचीलापन होने के साथ-साथ उन्हें आकर्षक पेमैंट प्लान भी दिए जा रहे हैं।

खरीददारों के फायदे की बात
रियल एस्टेट कीमतें आवासों की संख्या बढऩे के साथ-साथ कम होती हैं। अगर ये कम न भी हों तो ग्राहकों की मोल-भाव करने की ताकत कई गुना अवश्य बढ़ जाती है। कुछ बिल्डर बाजार में मंदी की वास्तविकता को समझते नहीं हैं। इस वजह से वे अपनी कीमतों में कमी नहीं करते हैं। ऐसे में अगर खरीददार को लगता है कि उसे सबसे अच्छा सौदा नहीं मिल रहा है तो उसके पास विकल्प होता है कि वह किसी और बिल्डर के पास जाकर खरीददारी करे। याद रखें कि ‘बायर्स मार्कीट’ में खरीददार के पास ही ज्यादा ताकत होती है।

ऐसे माहौल में बेहद जरूरी है कि खरीददार को अपनी मोल-भाव करने की ताकत के बारे में पता हो। यदि कोई आवास काफी वक्त से तैयार है, उसकी कीमत में कुछ कमी पहले ही हो चुकी है और फिर भी वह बिक नहीं सका है तो पूरी-पूरी सम्भावना है कि उसका विक्रेता ऐसे आवास को जल्द से जल्द बेचने की कामना कर रहा होगा।

ऐसी स्थिति में विक्रेता से कीमत में कुछ कमी या फिर कुछ अतिरिक्त सुविधाएं या छूट देने के बारे में बात की जा सकती है। वे खरीददार को मुफ्त में फर्नीचर या फिक्चर्स आदि लगा कर दे सकते हैं। साथ ही कुछ रियल एस्टेट ब्रोकर अपने कमीशन में से कुछ रकम छोडऩे को तैयार हो जाते हैं जिसका लाभ खरीददार को मिलता है। हालांकि, खरीददार के लिए सबसे अच्छा ऐसे ब्रोकरों की सेवाएं लेना है जो खरीददारों से बिल्कुल भी कमीशन नहीं लेते हैं। वे केवल विक्रेताओं से ही कमीशन प्राप्त करते हैं।

अनसोल्ड सप्लाई’ की भरमार
बाजार में मांग से अधिक आपूर्ति होने का खरीदारों के लिए यही एक नुक्सान होता है कि वे अक्सर अपने लिए सही या उपयुक्त विकल्प का चयन करने में परेशानी महसूस करते हैं। जरूरत से ज्यादा उपलब्धता की समस्या को हल करने का तरीका है कि केवल कुछ चुनिंदा परियोजनाओं में उपलब्ध आवासों पर ही ध्यान केंद्रित किया जाए। खरीदारों को यह भी ध्यान देना होगा कि भारी डिस्काऊंट या आसान पेमैंट प्लान के चक्कर में डिवैल्पर के ट्रैक रिकॉर्ड या परियोजना की वर्तमान परिस्थिति को नजरअंदाज न करें। खरीददारों को चयन करते वक्त सबसे पहले ध्यान डिवैल्पर की प्रतिष्ठा, उसके ट्रैक रिकॉर्ड, परियोजना के निर्माण की स्थिति व लोकेशन जैसी अहम बातों पर गौर करना चाहिए। 

क्रेता-विक्रेता दोनों के हित में 
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया तथा केंद्रीय सरकार ने गत महीनों में कुछ ऐसे पग उठाए हैं कि रियल एस्टेट मार्कीट में जान पड़ सके। सबसे पहले रियल एस्टेट रैगुलेटरी एक्ट को लागू किया जा रहा है जिससे रियल एस्टेट सौदों में पारदर्शिता आएगी और खरीदारों के हित सुरक्षित होंगे। इस कानून से परियोजनाओं को समय पर पूरा करने की गारंटी खरीददारों को मिल सकेगी तथा वे कई तरह की धोखाधड़ी से भी सुरक्षित हो जाएंगे। 

हाल के दिनों में रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कुछ कमियां की हैं। इससे भी होम लोन लेकर घर खरीदने वालों को लाभ होगा। ऐसे कदमों ने बाजार में विश्वास बहाली का काम किया है और गत कुछ दिनों में आवासीय सम्पत्तियों की मांग में वृद्धि हुई है। मांग बढऩे से डिवैल्परों को भी लाभ होगा और वे धन जुटा कर अपनी आवासीय परियोजनाओं को वक्त पर पूरा कर सकेंगे।

इन बातों का ध्यान रखें क्रेता
खरीददारों को निर्माणाधीन आवासीय परियोजनाओं में से केवल उन्हीं पर विचार करना चाहिए जो अगले 12 से 18 महीनों में तैयार हो सकती हों। ऐसे डिवैल्परों की परियोजनाओं का चयन करके वे अपना जोखिम कम कर सकते हैं जिनका ट्रैक रिकॉर्ड समय पर कब्जे देने का रहा हो। किसी भी परियोजना के प्रति लोगों की रुचि का भी ध्यान रखें। इससे सुनिश्चित हो सकेगा कि वह परियोजना समय पर पूरी हो सकती है। खरीददारों को इस बाबत भी ध्यान रखना चाहिए कि वे ऐसी आवासीय परियोजनाओं का चयन करें जहां पर सामाजिक तथा आधारभूत संरचनाओं का स्तर अच्छा हो। 

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