टैक्स प्लानिंग में मिलेगी सम्पत्ति से सहायता

Edited By ,Updated: 01 Aug, 2016 04:02 PM

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सम्पत्ति में निवेश के कई फायदे हैं। खरीदार के लिए यह सम्पदा तैयार करती है। यह आर्थिक सुरक्षा के तौर पर भी मदद करती है।

जालंधरः सम्पत्ति में निवेश के कई फायदे हैं। खरीदार के लिए यह सम्पदा तैयार करती है। यह आर्थिक सुरक्षा के तौर पर भी मदद करती है।  सम्पत्ति में निवेश से आप अपनी टैक्स प्लानिंग प्रभावी तरीके से कर सकते हैं। इस तरह से आपको जहां अतिरिक्त आय होगी वहीं टैक्स भी कम से कम देना पड़ेगा। इसके लिए किसी आवासीय या वाणिज्यिक सम्पत्ति में निवेश किया जा सकता है। वैसे आवासीय सम्पत्तियों से टैक्स में ज्यादा छूट मिलती है। साथ ही आप ऐसी सम्पत्तियों में निवेश करके कैपीटल गेन्स टैक्स से भी बच सकते हैं। 

 

आवासीय सम्पत्तियों पर कर छूट

आयकर कानून के तहत एक स्व-प्रवासित (जहां आप खुद रहते हों) आवास पर आयकर में पूर्ण छूट होती है। मालिक को इस सम्पत्ति की ‘रैंटल वैल्यू’ पर टैक्स नहीं देना पड़ता है। यदि आप एक से ज्यादा आवासीय सम्पत्तियां खरीदते हैं, फिर चाहे वे सभी अपने रहने के लिए हों, तो भी उनमें से केवल एक को ही इंकम टैक्स से छूट मिलेगी। 

अन्य सम्पत्तियों पर आपसे टैक्स लिया जाएगा, फिर चाहे उनसे आपको कोई भी आय न हो रही हो। स्व-प्रवासित मकान को खरीदने के लिए प्राप्त होम लोन के ब्याज की अदायगी हेतु अधिकतम 2 लाख रुपए तक की छूट इंकम टैक्स एक्ट की धारा 24 के तहत मिलती है। 

 

इस ‘लॉस फ्रॉम हाऊस प्रॉपर्टी’ को अपनी किसी अन्य आय जैसे कि वेतन या कारोबार से होने वाली आय या अन्य स्रोतों से आय के एवज में निर्धारित किया जा सकता है। 

यदि सम्पत्ति को किराए पर चढ़ाया गया हो तो उसे खरीदने के लिए प्राप्त होम लोन पर अदा किए जाने वाले ब्याज पर टैक्स छूट की कोई सीमा नहीं होती यानी होम लोन के सारे ब्याज पर टैक्स छूट का दावा किया जा सकता है। 

 

किसी मकान से कुल आय का आकलन करने के लिए इसके सकल वार्षिक मूल्य में से म्युनिसिपल टैक्स को घटाना होता है। बाकी बची रकम मकान का वाॢषक मूल्य यानी एनुअल वैल्यू होती है। आयकर की धारा-24 के तहत इसमें से 30 प्रतिशत रकम पर मकान की मुरम्मत व अन्य खर्चों के तहत कर से छूट दी जाती है। ‘लॉस’ (हानि) की सूरत में उसे अपनी किसी अन्य आय जैसे वेतन, कारोबार से आय या अन्य स्रोतों से होने वाली आय के एवज में निर्धारित किया जा सकता है। 

 

हालांकि ‘इंकम फ्रॉम हाऊस प्रापर्टी’ के तहत होने वाले ‘लॉस’ को यदि उसी वर्ष में अपनी किसी अन्य आय के एवज में निर्धारित नहीं किया जा सका हो तो उसे अगले 8 वर्षों में किसी भी ‘इंकम फ्रॉम हाऊस प्रॉपर्टी’ के तहत निर्धारित किया जा सकता है। निर्माण पूरा होने से पहले होम  लोन पर अदा किए जा चुके कुल ब्याज पर आयकर में छूट के रूप में 5 समान किस्तों में दावा किया जा सकता है। इसकी शुरूआत निर्माण पूरा होने वाले वर्ष से होती है। 

 

सम्पत्ति के एक से ज्यादा मालिक होने पर सभी सह-स्वामियों को टैक्स में छूट का व्यक्तिगत लाभ मिलता है। ब्याज पर मिलने वाली छूट के अतिरिक्त आप होम लोन के मूलधन की अदायगी के अलावा खरीदारी के दौरान हुए स्टैम्प ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन फीस आदि खर्चों पर भी छूट का दावा कर सकते हैं। इस छूट की अधिकतम सीमा डेढ़ लाख रुपए होती है। 

 

वाणिज्यिक सम्पत्ति पर कर छूट

किसी भी वाणिज्यिक सम्पत्ति में निवेश पर लागू होने वाले आयकर प्रावधान इस प्रकार हैं: यदि ऐसी सम्पत्ति को किराए पर चढ़ाया गया है तो सभी प्रावधान किराए पर चढ़ाई गई आवासीय सम्पत्ति जैसे ही होंगे। यदि मकान को बेचा जाता है तो आपको कैपीटल गेन्स का लाभ होगा। यदि आप सम्पत्ति को 36 महीनों से ज्यादा वक्त तक अपने पास रखते हैं तो इसे ‘लांग टर्म कैपीटल एसैट’ माना जाएगा। ऐसी स्थिति में कैपीटल गेन्स का आकलन सम्पत्ति में निवेश पर हुए ‘इंडैक्सेशन बैनेफिट’ से होता है। कैपीटल गेन्स से हुए मुनाफे को किसी नई सम्पत्ति में निवेश किया जा सकता है जिससे इस तरह के टैक्स से छूट मिल जाती है। लंबी अवधि के दौरान सम्पत्ति में नियमित निवेश करके काफी लाभ कमाया जा सकता है। इस रकम को बड़ी सम्पत्तियों में निवेश करने के काम में ला सकते हैं। इस तरह से आप अपने निवेश को आगे से आगे सम्पत्तियां खरीदने में कर सकते हैं।

 

निवेश से बड़ा लाभ कमा सकते हैं 

निम्न उदाहरण से इसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। मान लीजिए आपने 1985 में 10 लाख रुपए में एक मकान खरीदा। इसे आपने 1999 में 15 लाख रुपए में बेच दिया। कैपीटल गेन्स पर टैक्स अदा करने की बजाय आपने इस रकम को अन्य सम्पत्ति में निवेश कर दिया और 25 लाख रुपए में नया मकान खरीद लिया। 1992 में यानी 36 महीने बाद आप इसे 35 लाख रुपए में बेच देते हैं। इस रकम से आप फिर एक नई सम्पत्ति खरीद लेते हैं और उसे भी आगे बेच देते हैं। वक्त के साथ आपके पास 1 करोड़ रुपए हो जाएंगे, जिस पर आपको कोई टैक्स भी नहीं देना पड़ेगा। 

इस तरह का निवेश स्व: वित्त पोषित बन जाता है। यहां ध्यान देने वाली खास बात है कि आप पर निवेश के मामले में सम्पत्तियों की संख्या की कोई सीमा नहीं है। यह आपके अपने स्रोतों पर निर्भर करता है यानी आप छोटे निवेश से शुरूआत करके वक्त के साथ उसे बढ़ा सकते हैं।

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