गांवों की सम्पति का आकलन करने में फेल हुआ निगम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Feb, 2018 03:25 PM

corporation fails to assess the property of villages

नगर निगम अपने अंतर्गत आते नौ गांवों में पड़ी संपत्ति का आकलन आज तक नहीं कर पाया है।

चंडीगढ़ (राय): नगर निगम अपने अंतर्गत आते नौ गांवों में पड़ी संपत्ति का आकलन आज तक नहीं कर पाया है। हलांकि सम्पदा विभाग से उसे इन गांवों की संपत्ति का रिकार्ड कुछ वर्ष पहले मिल गया था पर निगम के सम्पदा विभाग में स्टाफ की कमी के चलते फाइलों की गांठें आज तक नहीं खोली जा सकी हैं। इसके चलते इन गांवों में पड़ी संपत्ति का किराया लेने में निगम नाकाम रहा है। निगम सूत्रों के अनुसार इससे निगम को आज तक लगभग 50 करोड़ का नुक्सान हो चुका। इनमें से चार तो निगम के गठन के समय, 18 वर्ष पहले, निगम के हवाले किए गए थे व पांच गांव वर्ष 2006 में निगम को सौंपे गए थे। जिनमें मलोया, हल्लोमाजरा, डड्डूमाजरा, पलसोरा और कजेहड़ी शामिल हैं व इनमें 100 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्तियों का पूरा ब्यौरा निगम के पास नहीं है। 

 

किराया है करोड़ों में बकाया
लेखा परीक्षा विभाग ने लिखा कि मलोया में 18 दुकानें व लगभग 450 भूखंडों को ग्वालों को किराए पर दिया गया था। इससे मासिक आय प्रति माह 5 लाख रुपए बनती है। गत नौ वर्षों से इस राशि के लिए निगम ने कोई प्रयास नहीं किए व यह देय राशि अब करीब 6 करोड़ तक पहुंच गई है। पत्र में कहा गया है कि आज तक निगम ने केवल 37 वाणिज्यिक बूथ  मलोया, कजेहड़ी, बडेहड़ी, बुटरेला और पलसोरा में 46.86 लाख रुपए किराया बरामद हुआ है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006 में निगम ने पांच गांवों में हस्तांतरित की भूमि रिकार्ड की जांच के लिए एक समिति का गठन किया था। सूत्रों के अनुसार इस कमेटी को आज तक हल्लोमाजरा, मलोया, डड्डूमाजरा कजेहड़ी, पलसोरा आदि में निगम की भूमि की जानकारी नहीं मिली जिसकी कीमत करीब 100 करोड़ रुपए आंकी जा रही है। 

 

एस्टेट ब्रांच में स्टाफ नहीं है
इस संबंध में निगम के एक संबंधित अधिकारी का कहना था कि उनके पास एस्टेट ब्रांच में स्टाफ ही नहीं। ऐसे में रिकार्ड खंगालना आसान काम नहीं है। बताया जाता है कि इन गांवों में अधिकांश खाली जमीन पर अवैध रूप से  कब्जे हैं। यहां पंचायतों संपत्तियों ने निगम में आने के बाद पिछली तारीखों में प्रस्ताव पारित कर मालिकाना हक लेकर जमीनों पर कब्जे कर लिए।  बताया जाता है कि नगर निगम को तो स्कूलों, जंजघरों और धर्मशालाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है। यहां तक कि आंगनबाडिय़ों की भी निगम के पास कोई सूची नहीं है। रिकार्ड के अभाव में अधिकारी कि सेवानिवृत्त, पटवारी के पास पड़े व्यक्तिगत रिकॉर्ड के आधार पर ग्रामीणों को अनापत्ति प्रमाण पत्र (एन.ओ.सी.) जारी कर रहे हैं। निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि निगम में सरकारी भूमि रिकॉर्ड की जांच करने के लिए कोई तैयार नहीं, क्योंकि यह मामला जटिल है। 

 

रिकार्ड बोरियों में आठ साल से है बंद 
पूर्व मेयर सुभाष चावला का कहना था कि पहले तो निगम अधिकारी यह दलील देते रहे कि प्रशासन के सम्पदा विभाग ने उन्हें उक्त गांवों की भूमि का रिकार्ड ही हस्तांतरित नहीं किया है। उन्होंने मेयर रहते हुए सारा रिकार्ड प्रशासन से मंगवाया था। अब यह रिकार्ड बोरियों में बंद निगम के स्टोर में पिछले आठ साल से बंद है। इसे खोल कर जब तक खंगाला नहीं जाता तब तक निगम की वास्तवित संपत्ति का आकलन ही नहीं हो सकता। 

 

निगम को 50 करोड़ का वित्तीय नुक्सान हो चुका है
इस संबंध में निगम के स्थानीय लेखा परीक्षा विभाग ने पिछले दिनों एक पत्र निगम के आयुक्त को लिखा था जिसमें कहा गया कि किराया न लेने से आज तक निगम को 50 करोड़ का वित्तीय नुक्सान हो चुका है। पत्र में आयुक्त से उक्त नौ गांवों की पंचायतों की राशि भी निगम के खाते में जमा करने को कहा गया था। उल्लेखनीय है कि बुड़ैल, बडेहड़ी, अटावा और बुटरेला वर्ष 1998 में निगम को दिए गए और मलोया, कजेहड़ी, हल्लोमाजरा, डड्डूमाजरा और पलसोरा वर्ष 2006 में निगम को सौंपे गए। आयुक्त को लिखे पत्र में स्थानीय लेखा परीक्षा विभाग ने लिखा कि इनमें संपत्ति का किराया तो पंचायतों द्वारा रिलीज किया गया पर निगम के खाते में अभी तक जमा नहीं हुआ है। 

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