जो स्त्री-पुरुष नहीं करते ये काम, वे रहते हैं दुखी व नाना रोगों के शिकार

Edited By ,Updated: 09 Dec, 2016 02:46 PM

disease free life

सर्वप्रथम-ईश भक्ति  शुद्ध मन मानव का मित्र है और अशुद्ध मन शत्रु। गीता साक्षी है :  उद्धरेदात्मात्मानं नात्मानमवसादयेत्।

सर्वप्रथम-ईश भक्ति 
शुद्ध मन मानव का मित्र है और अशुद्ध मन शत्रु। गीता साक्षी है : 
उद्धरेदात्मात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बंधुरात्मैव रिपुरात्मन:।।

शत्रु का अभिप्राय: है हर रूप से हानि पहुंचाने वाला। 

मित्र का अभिप्राय: है हर रूप में लाभ ही लाभ पहुंचाने वाला। 


असंगत मन को शत्रु का संबोधन दिया गया है। असंगत से दुष्कर्मों का सम्पादन होता है और संगत मन से सत् का। कर्मों का परिणाम अवश्य भुगतना ही पड़ता है ‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कुतं शुभाशुभम्’। दुष्कर्मों के सम्पादन से मन अशांत हो जाता है। मानसिक तनाव का प्रभाव तन पर अनिवार्य रूप से पड़ता है शरीर अस्वस्थ हो जाता है तथा शारीरिक विपत्तियां आ जाती हैं। ईश्वर भक्ति से मन संयत होता है। संयत मन से क्रिया सतकर्म-निष्काम कर्म होते हैं, जिनसे मन और शरीर का एक-एक अंग शांत, स्वस्थ रहता है। ईश भक्ति में तल्लीन भक्त की शारीरिक शक्ति का ह्रास नहीं होता। उसे हर क्षेत्र में विकास-सफलता की उपलब्धि होती है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए यह साधन अति अनमोल है। अध्यात्म जगत में ईश्वरभक्ति की शक्ति सर्वोपरि है। ईश्वर भक्ति से ईश्वरदर्शन हो जाते हैं।


सम्मुख होई जीव मोहि जबहिं।
जन्म कोटि अघ नासहिं तबहिं।।


मानव का मन और तन दोनों स्वस्थ रहते हैं। मन यदि शांत, स्थिर, सुदृढ़  है तो तन भी निरोगी और पुष्ट रह कर अध्यात्म साधना में अति सहयोगी सिद्ध होता है। ऐसे ही ईश्वर भक्ति में तल्लीन भक्त की हर अदा न्यारी और हर बात उसकी प्यारी होती है।
हमारी भारतीय संस्कृति में ब्रह्ममुहूर्त में उठने के विशेष निर्देश दिए गए हैं। मानसिक तप शारीरिक निरोगता एवं स्वास्थ्य के लिए ब्रह्ममुहूर्त में उठना अनिवार्य है। ध्यान रहे-वह योगी, योगी यति, यति नहीं, संत, संत नहीं, ज्ञानी, ज्ञानी नहीं भक्त, भक्त नहीं, सज्जन, सज्जन नहीं जो ब्रह्ममुहूर्त में नहीं उठते। 


ब्रह्ममुहूर्त में उठने के लिए निश्चित रूप से शीघ्र सोना होगा। अनर्गल वार्तालाप से दूर होगा। टी.वी. एवं व्यर्थ के अन्य कार्यों से बचना होगा। शीघ्र सोने पर ब्रह्ममुहूर्त में स्वत: नींद टूट जाती है किसी महापुरुष के ये शब्द अक्षरश: सत्य हैं। ‘‘जो शीघ्र सो जाता है, शीघ्र उठता है ब्रह्ममुहूर्त में, वह शारीरिक, बौद्धिक रूप से स्वस्थ, धन व परम धन रूप से अमीर हो जाता है।’’


ब्रह्ममुहूर्त में ऊषा-पान निरोगी जीवन के लिए बिना मूल्य की रामबाण दवा है। कम से कम तीन-चार गिलास शुद्ध जल प्रात: काल शौचादि क्रिया से पूर्व अवश्य पान करें। ऊषा पान करने वाले व्यक्ति को कोई शारीरिक रोग नहीं होता। भारतीय दार्शनिक कवि के यह शब्द बिल्कुल सत्य हैं : 


प्रात: काल खटिया से उठ के, पिबहि तुरन्तै पानी।
कबहूं घर में वैद न आवे है, बात छाछ कै जानी।


ब्रह्ममुहूर्त के एकांत शांत वातावरण में सैर व हरिनाम जाप अति मंगलकारी हैं। जो ब्रह्ममुहूर्त में सोए रहते हैं वे अमृत वेला से वंचित रह कर अपने जीवन की अमूल्य शक्ति को भी नष्ट कर देते हैं। महापुरुषों ने कहा है :


हर रात के अंतिम पहर में 
इक दौलत लुटती रहती है।
जो जागत है सो पाता है
जो सोता है सो खोता है।।

परिणामत: मानव दुखी, हैरान, परेशान व नाना रोगों का शिकार हो जाता है।
 

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