Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Jan, 2018 11:01 AM
मशहूर सूफी संत सैयद कुतुब हुसैन शाह किरमानी साल के आखिरी रोज अपने मुरीदों में शकरपारे बांट रहे थे। शकरपारे उनकी पसंद की खास मिठाई थी। वह शकरपारे बांटते जाते और सभी को आने वाले साल की जमकर तैयारी करने की हिदायत देते जाते।
मशहूर सूफी संत सैयद कुतुब हुसैन शाह किरमानी साल के आखिरी रोज अपने मुरीदों में शकरपारे बांट रहे थे। शकरपारे उनकी पसंद की खास मिठाई थी। वह शकरपारे बांटते जाते और सभी को आने वाले साल की जमकर तैयारी करने की हिदायत देते जाते।
उसी रोज कई हफ्ते पहले लाहौर से चले एक दूसरे सूफी संत उनके पास पहुंचे। हुसैन किरमानी को मिठाई बांटते देख उन्होंने पूछा, ‘क्या हुसैन तुम अपने महबूब से मिलने जा रहे हो जो खुशी में मिठाई बांट रहे हो।’ तपाक से हुसैन का मुरीद बोला, ‘नहीं हुजूर आने वाले साल की खुशी की मिठाई है, आप भी चखिए।’ मेहमान सूफी संत यह सुनते ही हत्थे से उखड़ गए।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐ हुसैन, तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं। कोई सूफी नए साल की खुशी मनाए, यह उसे बिल्कुल शोभा नहीं देता। हम तो यहां अपने महबूब से मिलने को दुबले हुए जाते हैं और तुम एक साल और बढ़ जाने की खुशी मना रहे हो।’’
हुसैन ने उन्हें पास बिठाया और पानी पिलाया। फिर हुसैन ने लाहौर से आए मेहमान संत से कहा, ‘‘आपको पता है कि यह नया साल क्यों आया है। यह नया साल मेरे महबूब ने भेजा है कि यह लो तुम्हें एक और साल इम्तिहान देना होगा। मेरा महबूब चाहता है कि मैं अभी और इम्तिहान दूं। इसलिए उस इम्तिहान की खुशी में मिठाई बांट रहा हूं। एक सूफी अगर इम्तिहान से मायूस होगा तो कैसा सूफी। महबूब के इम्तिहान में फना हो जाने का मौका भला किसे मिलता। मैं अपने हर मुरीद से कहता हूं कि इम्तिहान से डरना मत, घबराना मत, मायूस मत होना। उसका खुशी-खुशी अभिवादन करना। खुश मन से इम्तिहान के लिए जाना। इसी तरह आने वाला साल भी एक और इम्तिहान का साल है। यह इम्तिहान खुशी-खुशी देने में कोई गलती नहीं है।’’ इसके बाद वह सूफी संत भी खामोश होकर मिठाई चखने लगे।