श्रीमद देवी भागवत: कलयुग में जन्म लेने वाले बचें इसके प्रभाव से

Edited By ,Updated: 19 Nov, 2016 12:42 PM

srimad devi bhagavatam

वैदिक संस्कृति की परिकल्पना आज से हज़ारो वर्षो पूर्व वैदिक ऋषियों द्वारा की गई थी , जिनका सृष्टिकर्ता के साथ सीधा संपर्क था। महर्षि वेद व्यास जी ने समाज में होने वाले अपकर्ष और संस्कृति पर

वैदिक संस्कृति की परिकल्पना आज से हज़ारो वर्षो पूर्व वैदिक ऋषियों द्वारा की गई थी , जिनका सृष्टिकर्ता के साथ सीधा संपर्क था। महर्षि वेद व्यास जी ने समाज में होने वाले अपकर्ष और संस्कृति पर आने वाले संकट का पूर्वानुमान लगाते हुए वेदों के ज्ञान को पुराणों के माध्यम से हमें 5000 वर्षो पूर्व लिखित रूप में दिया। इन सब पुराणों में ,श्रीमद देवी भागवत में विभिन्न युगों सतयुग ,त्रेतायुग , द्वापरयुग ,कलियुग की विस्तार से व्याख्या की गई है। इस लेख के अनुसार जो मनुष्य धर्म का पालन करते हैं वे सतयुग में जन्म लेते हैं। जिनकी प्रीति धर्म और अर्थ (भौतिक सम्पन्नता ) दोनों में है वे त्रेतायुग में जन्म लेते हैं। जो धर्म, अर्थ और काम (इच्छाएं) तीनो में प्रीती रखते हैं वे द्वापर में जन्म लेते हैं तथा जो सिर्फ अर्थ और काम में लिप्त होते हैं वे कलयुग में जन्म लेते हैं।


अत: सतयुग में योग-ज्ञान था, त्रेता में ध्यान के माध्यम से ज्ञान प्राप्त हुआ। द्वापर युग में कर्म प्रधान हुआ और श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से निष्काम कर्म सिखाया। प्रत्येक प्राणी की सहायता अनासक्त होकर करना वर्तमान कलियुग का योग-सेवा है क्योंकि कर्म प्रधान है इसलिए जब हम सेवा करते हैं तो हमारे कर्म स्वत: ही सुधरते हैं। कर्म वह नहीं है की दूसरे के बारे में अच्छा विचार किया और फिर अपने भोगो में लिप्त हो गए। यह एक कृत्य है, जो या तो सकारात्मक या फिर नकारात्मक हो सकता है। जब आप दुसरो की सहायता करके अपने कर्म सुधारते हैं ,तब आप ध्यान के लिए योग्य बनते है और जब ध्यान होगा तब ही ज्ञान मिलेगा और जब ज्ञान मिलेगा तब आप मोक्ष प्राप्ति के योग्य बनेंगे। यदि हम अच्छे कर्म करते हैं तभी ध्यान कर पाते हैं और ध्यान के द्वारा ही ज्ञान की प्राप्ति होगी।


जब मैं इतने सारे अपराध होते देखता हूं। जानवरों को प्रताडि़त किया जा रहा है और प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट किया जा रहा है। मेरे मन में कोई शंका नहीं रहती की हम कलियुग के अंत के समीप हैं और कलियुग में मोक्ष का मार्ग केवल सेवा है। दुर्बल की रक्षा और सकुशल व्यवस्था सेवा दो प्रकार की होती है। पहला जैसा आपको अच्छा लगता है वैसा करें, यह मार्ग आपको सिद्धियां, धन-दौलत और यश देगा। दूसरा सेवा मार्ग वो जो की आपके गुरु द्वारा दिखाया गया है। यदि आप इस मार्ग पर चलते हैं तो आपको मोक्ष प्राप्त होता है। ध्यान रहे की चारो युगों में कलियुग सबसे भौतिकवादी है परंतु इस युग में मोक्ष प्राप्त करना सबसे आसान है।

 

गुरु के वाक्य के अनुसार यदि आप छोटा सा सेवा और दान का कृत्य भी करते हैं तो उसका फल बहुरूपता में मिलता है। सनातन क्रिया का नियमित अभ्यास गुरु तत्त्व के साथ संपर्क प्रत्यास्थापित करता है और आपको गुरु द्वारा बनाए मार्ग पर चलने में सक्षम करता है।

योगी अश्विनी जी 
dhyan@dhyanfoundation.com

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