सिंहस्थ कुंभ: कोई IAS की नौकरी छोड़ बना संत तो किसी ने टीचर की जॉब अपनाया वैराग्य

Edited By ,Updated: 14 May, 2016 11:35 AM

ujjain kumbha

मध्य प्रदेश के उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में दुनियाभर के साधु और संत आ रहे हैं। मेले में चारों ओर साधुओं के जयकारे औऱ भजन कीर्तन की गूंजायमान मन को एक अलग ही शांति देते हैं।

इंदौर: मध्य प्रदेश के उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में दुनियाभर के साधु और संत आ रहे हैं। मेले में चारों ओर साधुओं के जयकारे औऱ भजन कीर्तन की गूंजायमान मन को एक अलग ही शांति देते हैं। भगवान की भक्ति में कुछ लोग इस कद्र लीन होते हैं कि उसके लिए सबकुछ छोड़-छाड़ कर संत रूप धारण कर लेते हैं। आज आपको दो ऐसे संतों के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने अपना एशो-आराम छोड़कर वैराग्य का रास्ता चुना।

पंजाब के रहने वाले स्वामी डॉ.शंकरानंद सरस्वती जिन्होंने वैराग्य जीवन अपनाया है लेकिन अपनी पहली जिंदगी के बारे में वे किसी से कुछ भी कहने से बचते हैं। उन्होंने बताया कि वे 1961 बैच के आईएएस हैं। केंद्र सरकार में फाइनेंस मिनिस्ट्री में ज्वाइंट सेक्रेटरी रहे। चंडीगढ़ में फाइनेंस कमिश्नर रहते हुए 1985 में छुट्टियां बिताने ऋषिकेश गए। वहां गंगा किनारे तप-जप व लोगों की साधना देख मन इतना विभोर हुआ कि उन्होंने गुरु महामंडलेश्वर भजनानंद सरस्वती से संन्यास मांग लिया।

गुरु महामंडलेश्वर ने इसकी स्वीकृति दे दी तो डॉ.शंकरानंद सरस्वती ने अपनी पोस्ट से रिजाइन दे दिया और संत बन गए। डॉ.शंकरानंद सरस्वती कहते हैं कि जब भगवान राम ने 16 साल की उम्र में वन गमन कर लिया था तो वे तो 24 साल तक सरकारी नौकर रहे हैं। दूसरी ओर मुंबई के पारसी परिवार में पली-बढ़ी नाजू सोहोनी हिंदू धर्म और ध्यान योग से प्रेरित होकर आध्यात्म के मार्ग पर चल पड़ी। उन्हें सत्य का मार्ग गुरु स्वामी चिदम्बरानंद महाराज ने दिखाया।

नाजू सोहोनी बताती है कि पिता पारसी समाज की धार्मिक क्रियाएं करवाते थे और आचार्य रजनीश को मानते थे, पिता बार-बार कहते थे कि बेटा तुम भी दीक्षा ले लो लेकिन तब मन नहीं था। कुछ समय बाद शादी हुई और बच्चों के साथ घर-परिवार में बिजी हो गई। तभी 2005 में वे हैदराबाद में स्वामीजी से मिली तो काफी प्रभावित हुई। बस उसके कुछ समय बाद उन्होंने मन में वैराग्य जीवन जीने का निर्णय कर लिया। 2013 में गेरुआ पहन लिया और उन्हें साध्वी संविदा नाम मिला। वर्तमान में वे मुंबई में शिवा ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी हैं। उन्होंने बताया कि अपने पारिवारिक जीवन में वे  योग और फ्रेंच भाषा की टीचर रह चुकी हैं।

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