‘समन्वय’ का गुर भूल गई है क्या भाजपा?

Edited By ,Updated: 20 Feb, 2015 03:44 AM

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पंजाब में अक्सर चुनावों के दौर में टिकट हासिल करने वालों की लम्बी कतार होती है, पार्टी चाहे कांग्रेस हो, भाजपा या शिरोमणि अकाली दल।

जालंधर (पाहवा): पंजाब में अक्सर चुनावों के दौर में टिकट हासिल करने वालों की लम्बी कतार होती है, पार्टी चाहे कांग्रेस हो, भाजपा या शिरोमणि अकाली दल। लेकिन इस बार पंजाब के निकाय चुनावों में जिस तरह से थोक में भाजपा के लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है, उससे यह बात साफ हो गई है कि पार्टी के अंदर स्थिति ठीक नहीं है तथा नेताओं-वर्करों में ‘समन्वय’ विफल हो चुका है। 
 
पिछले 3 दिनों में पार्टी ने सैंकड़ों भाजपा वर्करों को पार्टी से इसलिए आऊट कर दिया क्योंकि यह लोग भाजपा उम्मीदवारों के सामने आजाद खड़े होने का दुस्साहस कर रहे थे या भाजपा के उम्मीदवारों के खिलाफ प्रचार कर रहे थे। ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई। 
 
पहले अक्सर जब भी कभी भाजपा के अंदर टिकट को लेकर जोड़-तोड़ में कोई नेता नाराज होता तो उसे समन्वय नीति के तहत बिठा कर समझा दिया या उसे कोई न कोई पद देकर संतुष्ट कर दिया जाता था लेकिन इस बार पार्टी ने जिस तरह से थोक में नेताओं को बाहर करने का काम शुरू किया है, उससे यह बात साफ हो गई है कि पार्टी नेता नाराज लोगों को मनाने में विफल हो रहे हैं। दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी की पंजाब में चुनाव लडऩे की योजना ने ऐसे नेताओं में जल रही रोष की आग में घी डालने का काम किया है। 
 
पार्टी से निकाले गए कई नेता साफ कह रहे हैं कि उन्हें अब भाजपा की परवाह नहीं है। सूत्रों का यह भी कहना है कि अगर पार्टी के अंदर यह व्यवस्था चलती रही तो एक दिन पार्टी को जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों की भारी कमी खलने लगेगी।

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