इस रोग से निजात पाना चाहते हैं तो करें शनि पूजन

Edited By ,Updated: 21 Feb, 2015 07:11 AM

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भारत में स्वाइन फ्लू का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वाइन फ्लू, इनफ्लुएंजा वायरस "ऐ" से होने वाला संक्रमण है। इस वायरस को ही एच1अन्1 कहा जाता है। शूकर में फ्लू फैलाने वाले इनफ्लुएंजा वायरस से स्वाइन फ्लू का वायरस समान है अतः

भारत में स्वाइन फ्लू का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वाइन फ्लू, इनफ्लुएंजा वायरस "ऐ" से होने वाला संक्रमण है। इस वायरस को ही एच1अन्1 कहा जाता है। शूकर में फ्लू फैलाने वाले इनफ्लुएंजा वायरस से स्वाइन फ्लू का वायरस समान है अतः इस रोग का नाम स्वाइन फ्लू रखा गया था। स्वाइन फ्लू- वायरल बुखार है जो हवा से फैलता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जब सर्दी में बारिश से नमी बढ़ जाती है। तो इनफ्लुएंजा वायरस "ऐ" एच1अन्1 को तेजी से पनपने का मौका मिलता है। स्वाइन फ्लू के हाहाकार कि सीधी वजह है सर्दी का देर तक चलना और सर्दी के साथ बारिश का होना। परंतु ज्योतिष के अनुसार स्वाइन फ्लू की सबसे बड़ी वजह हैं सूर्यपुत्र शनिदेव।

स्वाइन फ्लू का ज्योतिषीय दृष्टिकोण: ज्योतिष की चिकित्सा प्रणाली के अनुसार वायरस का संबंध वायु, जल और अग्नि तत्व के मिश्रण से है। ज्योतिष के कालपुरुष सिद्धांत अनुसार शनि व बुद्ध ग्रह वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा गुरु, चंद्र व शनि जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं और सूर्य और मंगल अग्नि तत्व का का प्रतिनिधित्व करते हैं। सभी ग्रहों में से एक मात्र शनि ही ऐसे हैं जो जल वायु एवं आकाश तीनों तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मानव शरीर में मंगल व्यक्ति कि धमनियों में रक्त बनकर अपना कार्य करते हैं तथा कुंडली में आयु भाव का निर्णय करता है। चंद्रमा मानव शरीर में जल का संचरण करता है तथा कुंडली में मानव शरीर की छाती को संबोधित करता है। बुद्ध मानव शरीर में प्राणवायु को सक्रीय करता है तथा कुंडली में रोग भाव का स्वामित्व व मानव शरीर में श्वास तंत्र का प्रतिनिधित्व करता हैं। शनि ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जो मानव शरीर में प्रतिरोधक प्रणाली का काम करता है तथा सोर्य मंडल में शनि का दूसरे ग्रहों से दूषित होना ही मानव की प्रतिरोधक प्रणाली कम करके रोगों को बढ़ावा देता है।

स्वाइन फ्लू और गोचर: वर्त्तमान ज्योतिषीय गोचर प्रणाली अनुसार रविवार दिनांक 02.11.2014 को शनि अपनी राशि परिवर्तन कर चुका है। शनि अपनी उच्च राशि तुला से निकालकर अपने शत्रु मंगल की राशि वृश्चिक में परिभ्रमण कर रहा है। कालपुरुष कुंडली सिद्धांत के अनुसार वृश्चिक राशि में पड़ रहा आठवां भाव शनि के लिए वेधा स्थान है। गुरुवार दिनांक 11.12.2014 से गुरुवार दिनांक 12.02.2015 तक देवगुरु बृहस्पति अपनी उच्च राशि में वक्र गति से चल पड़े हैं। सोमवार दिनांक 05.01.2015 से मंगल मकर से कुंभ राशि में परिवर्तन से बृहस्पति व मंगल के षडाष्टक योग बना हुआ था तथा शनि व मंगल के बीच राशि परिवर्तन योग चल रहा था। अतः दिनांक 05.01.2015 से दिनांक 12.02.2015 तक स्वाइन फ्लू ने अपने सर्वाधिक पांव पसारे। सूअर यां सूकर का संबंध राहू ग्रह से है वर्त्तमान स्तिथि में मंगल का राहू से संबंध रविवार दिनांक 24.03.2015 तक बना रहेगा। अतः दिनांक 24.03.2015 तक स्वाइन फ्लू का खतरा बना रह सकता है।

स्वाइन फ्लू का ज्योतिषीय कारण: ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार वर्षा सूर्य, चंद्र व शनि के मिश्रण का परिणाम होती है तथा वर्ष के लिए बनने वाले मेघ अर्थात बादल शनि व चंद्र का परिणाम होते हैं। सर्दी का संबंध उत्तरायण व दक्षिणायन के मेल से है अर्थात सूर्य चंद्र व शनि के मेल। अतः शनि का शत्रु ग्रह से पीड़ित होना सर्दी के मौसम में बरसात का कारण होता है। कड़कती ठंड में बारिश पड़ने पर हवा में ओस व नमी के कारण वायरस "ऐ" एच1अन्1 को उसका श्रेष्ठ माध्यम मिल जाता है। बारिश की वजह से स्वाइन फ्लू का वायरस और घातक हो जाता है। वातावरण में नमी बढ़ने के साथ ही ये ज्यादा तेजी से फैलने लगता है।

स्वाइन फ्लू का ज्योतिषीय उपाय: जैसा कि उपरोक्त ये वर्णित किया जा चुका है कि स्वाइन फ्लू का संबंध चंद्र, बुद्ध, बृहस्पति, मंगल एवं सर्वाधिक शनि से है। इसी क्रम में उपाय इस प्रकार वर्णित हैं 

* बुद्ध से मंगल का उपाय करें अर्थात दुर्गा मंदिर में सिंदूर चढ़ाएं। 

* चंद्र से शनि का उपाय करें अर्थात शिवलिंग पर नारियल पानी से अभिषेक करें।

* बृहस्पति से शनि का उपाय करें अर्थात विष्णु मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

* मंगल से वायुदोष समाप्त करें बुधवार के दिन वायुपुत्र हनुमान जी के मंदिर में पान कि बीड़ा चढ़ाएं।

* शनि-मंगल वायुदोष दोष दूर करें अर्थात शनिवार के दिन वायुपुत्र हनुमान जी के मंदिर में चमेली का तेल चढ़ाएं। 

* बुद्ध, शनि व मंगल को शिव के अधीन करें अर्थात शनिवार के दिन शिवालय में कर्पूर से लौंग व मिश्री जलाकर आरती करें।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल kamal.nandlal@gmail.com

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