जान लीजिए लक्ष्मीजी के दो स्वरूपों श्रीदेवी व महालक्ष्मी के बीच का भेद

Edited By ,Updated: 27 Feb, 2015 10:31 AM

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लक्ष्मी पूजन का संबंध सुख, संपत्ति, समृद्धि, वैभव तथा व्यापार से है । समुद्र मंथन के समय 14 रत्न निकले थे,जिनमें पहले रत्न महालक्ष्मी ...

लक्ष्मी पूजन का संबंध सुख, संपत्ति, समृद्धि, वैभव तथा व्यापार से है । समुद्र मंथन के समय 14 रत्न निकले थे ,जिनमें पहले रत्न महालक्ष्मी अर्थात् ‘श्री’ के नाम से प्रकट हुआ था । शास्त्रों ने महालक्ष्मी के आठ स्वरूपों का वर्णन किया गया है। ये स्वरूप, आद्यालक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी, सौभाग्यलक्ष्मी, अमृतलक्ष्मी, कामलक्ष्मी, सत्यलक्ष्मी, भोगलक्ष्मी एवं योगलक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हैं । लक्ष्मी सभी पतिव्रताओं की शिरोमणि हैं । भृगु पुत्री के रूप में अवतार लेने के कारण इन्हें भार्गवी कहते हैं ।

समुद्र मंथन के समय ये ही क्षीर सागर से प्रकट हुई थीं, इसलिए इनका नाम क्षीरोदतनया हुआ । ये श्री विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं । तंत्रोक्त नील सरस्वती की पीठ शक्तियों में इनका भी उल्लेख हुआ है । पौराणिक महत्व के साथ यह एक व्यावहारिक सच्चाई भी है कि लक्ष्मी की प्रसन्नता सभी के लिए अभीष्ट है । धन वैभव हर किसी को चाहिए। लक्ष्मी पूजन का हवाला तंत्रसार ग्रंथ में है । संपत्ति, सुख और समृद्धि के लिए महालक्ष्मी पूजन किया जाता है ।

तंत्रसार में दीवाली को तांत्रिकों, शक्तियों और महालक्ष्मी जयंती का पर्व बताया गया है । वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल तक लक्ष्मी का स्वरूप अत्यतं व्यापक रहा है । ऋग्वदे  की ऋचाओं में ‘श्री’ का वर्णन समृद्धि एवं सौंदर्य के रूप में अनेक बार हुआ है । अथर्ववेद में ऋषि, पृथ्वी सूक्त में ‘श्री’ की प्रार्थना करते हुए कहते हैं ‘‘श्रिया मां धेहि’’ अर्थात मुझे ‘‘श्री’’ की संप्राप्ति हो । श्री सूक्त में ‘श्री’ का आवाहन जातवेदस के साथ हुआ है । ‘जातवेदोमआवह’ जातवेदस अग्नि का नाम है । अग्नि की तेजस्विता तथा श्री की तेजस्विता में भी साम्य है ।

दस महाविद्याओं में लक्ष्मी पूजन का जिक्र है और यह शास्त्रसम्मत भी है। लक्ष्मी को शाक्तों की देवी भी कहा गया है । शाक्त वे लोग होते हैं, जो मूलतः शक्ति के उपासक होते हैं । वे शक्ति की पूजा कर के अपनी अंतर्निहित शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं । सौंदर्य एवं समृद्धि की प्रतीक ‘श्री’ अर्थात् महालक्ष्मी का पूजन अपने राष्ट्र की सर्वाधिक श्रेष्ठ सांस्कृतिक परंपरा है । विष्णु पुराण में लक्ष्मी की अभिव्यक्ति दो रूपों में की गई है पहला श्री रूप तथा दूसरा महालक्ष्मी रूप । दोनों स्वरूपों में भिन्नता है । दोनों ही रूपों में ये भगवान विष्णु की पत्नियां हैं ।

श्रीदेवी को कहीं-कहीं भूदेवी भी कहते हैं । इसी तरह महालक्ष्मी के दो स्वरूप हैं । सच्चिदानंदमयी महालक्ष्मी श्री नारायण के हृदय में वास करती हैं । दूसरा रूप है भौतिक या प्राकृतिक संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी का । यही श्रीदेवी या भूदेवी हैं । सब संपत्तियों की अधिष्ठात्री श्रीदेवी शुद्ध सत्वमयी हैं । इनके पास लोभ, मोह, काम, क्रोध और अहंकार आदि दोषों का प्रवेश नहीं है । यह स्वर्ग में स्वर्ग महालक्ष्मी, राजाओं के पास राजमहालक्ष्मी, मनुष्यों के गृह में गृहमहालक्ष्मी, व्यापारियों के पास वाणिज्यमहालक्ष्मी तथा युद्ध विजेताओं के पास विजयमहालक्ष्मी के रूप में रहती हैं ।

महर्षि मार्कण्डेय भी महालक्ष्मी को बाह्य वस्तु न बताकर आंतरिक तत्व की संज्ञा दी हैं । मानव के आभ्यंतर में जो सार्वभौम शक्ति विद्यमान है । वही बाह्य संपत्ति का अर्जन-विसर्जन करती रहती है तभी तो महालक्ष्मी कमल पर आसीन हैं । कमल विवेक का प्रतीक है, कीचड़ से उत्पन्न होकर भी कीचड़ रहित व सैदेव स्वच्छ रहता है ।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल kamal.nandlal@gmail.com

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