Edited By ,Updated: 02 Apr, 2015 08:13 AM
महावीर जिनका नाम है, पालिताना जिनका धाम है
अहिंसा जिनका नारा है, ऐसे त्रिशला नंदन को लाख प्रणाम हमारा है
पंचशील सिद्धांत के प्रवर्तक एवं जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी मूर्तमान प्रतीक थे। जिस युग में हिंसा, पशुबलि, जात-पात के
महावीर जिनका नाम है, पालिताना जिनका धाम है
अहिंसा जिनका नारा है, ऐसे त्रिशला नंदन को लाख प्रणाम हमारा है
पंचशील सिद्धांत के प्रवर्तक एवं जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी मूर्तमान प्रतीक थे। जिस युग में हिंसा, पशुबलि, जात-पात के भेदभाव का बोलबाला था, उसी युग में भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य एवं अहिंसा जैसे खास उपदेशों के माध्यम से सही राह दिखाने की कोशिश की। उन्होंने काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि सभी इच्छाओं पर विजय प्राप्त की। उन्होंने बताया कि हमारे मन में उत्पन्न होने वाली इच्छाओं से ही हमें दुख और सुख का अनुभव प्राप्त होता है जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है उसे किसी प्रकार की इच्छा नहीं होती।
उन्होंने हमें अहिंसा का पालन करते हुए, सत्य के पक्ष में रहते हुए किसी के हक को मारे बिना, किसी को सताए बिना, अपनी मर्यादा में रहते हुए पवित्र मन से, लोभ-लालच किए बिना, नियम में बंधकर सुख-दुख में संयमभाव में रहते हुए, आकुल-व्याकुल हुए बिना, धर्म-संगत कार्य करते हुए ‘मोक्ष पद’ पाने की ओर कदम बढ़ाते हुए दुर्लभ जीवन को सार्थक बनाने का संदेश दिया। उन्होंने जो बोला सहज रूप से बोला, सरल एवं सुबोध शैली में बोला, सापेक्ष दृष्टि से स्पष्टीकरण करते हुए बोला। आपकी वाणी ने लोक हृदय को अपूर्व दिव्यता प्रदान की। आपका समवशरण जहां भी गया, वह कल्याण धाम हो गया।
भगवान महावीर जी का कहना था कि किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असली रूप को नहीं पहचानना है तथा यह केवल आत्मज्ञान प्राप्त करके ही ठीक की जा सकती है।
मनुष्य को जीवन में जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। धारण करने योग्य क्या है? क्या हिंसा, क्रूरता, कठोरता, अपवित्रता, अहंकार, क्रोध, असत्य, असंयम, व्यभिचार, परिग्रह आदि विकार धारण करने योग्य हैं? यदि संसार का प्रत्येक व्यक्ति हिंसक हो जाए तो समाज का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
सम्पूर्ण विश्व में एकमात्र जैन धर्म ही इस बात में आस्था रखता है कि प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति विद्यमान है अर्थात भगवान महावीर स्वामी की तरह ही प्रत्येक व्यक्ति जैन धर्म का ज्ञान प्राप्त करके, उसमें सच्ची आस्था रख कर, उसके अनुसार आचरण करके बड़े पुण्योदय से उसे प्राप्त कर दुर्लभ मानव योनी का एकमात्र सच्चा व अंतिम सुख, सम्पूर्ण जीवन जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होने वाले कर्म करते हुए मोक्ष का महाफल पाने हेतु कदम बढ़ाकर तथा उसे प्राप्त कर दुर्लभ जीवन को सार्थक कर सकता है।
महावीर जी ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। उन्होंने जो उपदेश दिए, गणधरों ने उनका संकलन किया। वे संकलन ही शास्त्र बन गए। इनमें काल, लोक, जीव आदि के भेद-प्रभेदों का इतना विशुद्ध एवं सूक्ष्म विवेचन है कि यह एक विश्व कोष का विषय नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं-प्रशाखाओं के अलग-अलग विश्व कोषों का समाहार है। आज के भौतिक युग में अशांत जन मानस को भगवान महावीर की पवित्र वाणी ही परम सुख और शांति प्रदान कर सकती है।