जज्बे को सलाम! कभी चलाते थे गली-गली रिक्शा और आज है प्रोफेसर

Edited By ,Updated: 30 Jun, 2015 04:03 PM

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राजस्थान यूनिवर्सिटी के अस्सिटेंट प्रोफेसर जगदीश मीणा की मेहनत और लगन की कहानी सुन आप भी उनके हिम्मत को सलाम करेंगे। जगदीश मीणा ने अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए रिक्शा चलाने से लेकर शादी में वेटर तक की नौकरी की।

जयपुर: राजस्थान यूनिवर्सिटी के अस्सिटेंट प्रोफेसर जगदीश मीणा की मेहनत और लगन की कहानी सुन आप भी उनके हिम्मत को सलाम करेंगे। जगदीश मीणा ने अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए रिक्शा चलाने से लेकर शादी में वेटर तक की नौकरी की। 

इस संघर्षपूर्ण सफर में उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। प्रो.मीणा ने बताया कि माता-पिता किसान थे, लेकिन पानी की कमी के कारण खेती नहीं हो पाती थी। पिता चिनाई का काम करते थे, लेकिन उससे छह भाई-बहनों का भरण-पोषण करना बड़ा मुश्किल था। ऐसे में स्कूल का खर्च भी नहीं उठा पाते थे।

प्रो. जगदीश ने बताया कि, दसवीं क्लास में चौदह साल उम्र थी। बसवा तहसील के करनावर गांव से कुछ लोग रिक्शा चलाने जयपुर आते थे। मैं भी उनके जयपुर गया। ब्रह्मपुरी की ढलान पर जब तीन सवारियों को बैठाकर रिक्शा चलाता, तो दिल बहुत दुखी होता और आंखों में आंसू आ जाते। महीने में सात दिन रिक्शा चलाता, ताकि पढ़ाई प्रभावित नहीं हो।

राजस्थान यूनिवर्सिटी के बाहर सवारी छोडऩे आता, पर यूनिवर्सिटी में घुसने की हिम्मत नहीं होती। गेट के बाईं तरफ रिक्शा लगाकर बैठ जाता और स्टूडेंट्स को देखकर यही सोचता कि अभी समझौता कर लिया तो उम्रभर रिक्शा चलाना होगा। तभी मैंने यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर बनने का संकल्प लिया। इस सपने को पूरा करने के लिए 12वीं क्लास तक रिक्शा चलाया।

12वीं पास करने के बाद राजस्थान यूनिवर्सिटी के फाइन आर्टस् में एडमिशन लिया। फीस भरने के लिए मैंने शादियों में वेटर की नौकरी की,  यूजी में मैं गोल्ड मेडलिस्ट रहा। वर्ष 2007 में पीजी में एडमिशन लिया। पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए प्राइवेट स्कूलों में ड्रांइग क्लासें लीं। जवाहर कला केंद्र के आर्ट फेयर में लाइव पोट्रेट बनाए। एक पोर्टेट के सौ रु. मिलते थे। तीन साल राजगढ़ की एक स्कूल में व्याख्याता रहा और 31 साल बाद आरयू में हुई प्रोफेसर की भर्ती में चयन हो गया।

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