Pics भारत के इस पड़ोसी देश को इस चीज में है महारत,आप भी जानकर होंगे हैरान

Edited By ,Updated: 05 May, 2016 05:10 PM

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इंटरनैशनल मार्किट में कच्चे तेल की कीमत तेजी से ....

 म्यांमारः इंटरनैशनल मार्किट में कच्चे तेल की कीमत तेजी से नीचे आने से सऊदी अरब को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। उसकी 90% जी.डी.पी.एफ़. ऑयल पर ही निर्भर है। वहीं भारत के पड़ोसी देश म्यांमार के लोग कच्चे तेल को हाथों से ही निकाल लेते हैं।  तेल के कुंए को खोदने के लिए वर्कर ट्राइपॉड नुमा (3 टांग वाला) बांस या पेड़ के तने का इस्तेमाल कर उसे जमीन में गाड़ते हैं। यह करीब 40-50 फीट ऊंचे होते हैं। इसमें चरखी लगा होती है, जिसकी मदद से ड्रिल करके ऑयल खींचा जाता है। हालांकि, ऑयल की सतह तक पहुंचने के लिए वर्कर्स को घंटों मशक्कत करनी पड़ती है।

 एक वर्कर 300 फीट वाले कुंए से हाथ से ही खींच कर तेल निकालता है। हर दिन 3 छोटे तेल के कुंए से 30 डॉलर (करीब 2000 रु) का क्रूड ऑयल जमीन से निकाल जाता है। कुछ वर्कर्स ने कुंए के परमिट किसानों से 1,000 डॉलर (66 हजार रुपए) में खरीदे हैं।  यहां कड़ी मेहनत के बाद एक वर्कर दिनभर में 300 बैरल क्रूड ऑयल इकट्ठा करता है। इसकी कीमत 3,000 डॉलर होती है। इसे स्थानीय रिफाइनरी को बेचा जाता है। म्यांमार में लोग अब भी परंपरागत तरीके से कच्चा तेल निकालने का काम कर रहे हैं।

 50 साल से आर्मी रूल झेल रहा ये देश अब तक फॉरेन इन्वेस्टमेंट से दूर रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक एकड़ ऑयल फील्ड की कीमत लगभग 4,000 डॉलर (2.62 लाख रु) होती है,जबकि ड्रिलिंग 2,000 डॉलर (1.33 लाख रु) है। वहीं, इसका परमिट लोकल रिफाइनरी से खरीदा जाना आवश्यक शर्तों में से है।  कीमतों में अंतर हो सकता है। पर बात जब रिश्वत देने पर आती है, तो ड्रिलिंग और भी महंगी हो जाती है।  2011 में आर्मी रूल खत्म होते ही म्यांमार ने रेवेन्यू बढ़ाने के लिए ऑयल ब्लॉक्स फाॅरेन इन्वेस्टमेंट के लिए खोल दिए। 

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