Edited By kirti,Updated: 29 Jun, 2018 04:45 PM
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की पूनम मुत्तरेजा दोहराती हैं कि आज भी सेक्स-सेलेक्श की घटनाएं नोटीस नहीं की जा रही है। हाल ही में जारी नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 ने देश में सेक्स सेलेक्श (रिपोर्ट में महिला भ्रूण हत्या के रूप में उद्धृत) जैसी घटनाओं को...
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की पूनम मुत्तरेजा दोहराती हैं कि आज भी सेक्स-सेलेक्श की घटनाएं नोटीस नहीं की जा रही है। हाल ही में जारी नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 ने देश में सेक्स सेलेक्श (रिपोर्ट में महिला भ्रूण हत्या के रूप में उद्धृत) जैसी घटनाओं को रोकने में भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की अक्षमता का खुलासा किया है। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की पूनम मुत्तरेजा दावा करते है कि एनएचपी 2018 में वर्णित आंकड़े वास्तविकता और अनुमान से काफी कम है।
पूनम मुत्तरेजा के मुताबिक "13 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में चाइल्ड सेक्स रेशियो (बाल यौन अनुपात) राष्ट्रीय औसत से नीचे है. 2001 में ये प्रति 1000लड़कों में 927 लड़कियां थी, जो 2011 में घट कर 919 (2011 की जनगणना के अनुसार) हो गई है। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि हम सेक्स सेलेक्शन की घटनाओं को ले कर अंजान बने हुए है, जिसका नैतिक, कानूनी और सामाजिक प्रभावों की एक विस्तृत श्रृंखला है।
एक महत्वपूर्ण नैतिक चिंता यह है कि गैर-चिकित्सा कारणों से सेक्स सेलेक्शन लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को मजबूत करेगा। हम इसे कैसे हल कर सकते हैं, यदि यह पहले ही स्थान पर सही ढंग से रिपोर्ट नहीं किया गया है? नियामक संस्थाओं द्वारा कड़े कदम न उठाए जाने के कारण आज भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कई रूप मौजूद हैं। तथ्य यह है कि सेक्स सेलेक्शन की इतनी सारी घटनाएं बिना रिपोर्ट के ही रह जाती है।”
वर्तमान प्रणाली की कमजोरियों पर ध्यान देते हुए पूनम मुत्तरेजा ने कहा, "सेक्स सेलेक्शन, जो अवैध है, और गर्भपात जो अवैध नहीं है, के बीच अंतर करना महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सिस्टम सेक्स सेलेक्शन के दौरान लिंग चयन को पहचाना और रोकना सुनिश्चित करे और ये भी ध्यान रखे कि गर्भपात जैसी महिला अधिकार इससे प्रभावित न हो।
हालांकि सिस्टम स्पष्ट रूप से दोनों मामलों को अलग करने में सक्षम हैं, लेकिन सेक्स सेलेक्शन के मामले अननोटिस्ड रह जाते है। ये इसलिए क्योंकि प्रायः अपराधियों के साथ-साथ सिस्टम के लोग इस मुद्दे पर चुप रहने का फैसला कर लेते है।" नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 के अनुसार, 2008 - 2016 के बीच देश में महिला भ्रूण हत्या की 1128 घटनाएं हुईं। लेकिन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4 के मुताबिक, सर्वेक्षण से पहले पिछले पांच वर्षों में पैदा हुए बच्चों के लिंग अनुपात (2011-11 से 2015-16) प्रति 1000 लड़कों के मुकाबले 919 थे।
गौरतलब है कि आदर्श अनुपात 950 है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सेक्स अनुपात घट रहा है, क्योंकि इन राज्यों में महिला भ्रूण हत्या के मामलों की लगातार बढ़ती संख्या दर्ज की जा रही है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल रोग, स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य वित्त पर डेटा का सबसे व्यापक वार्षिक संकलन है। इसे मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा द्वारा जारी किया गया था।
Hiraj Laljani