नलवार मेला

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Apr, 2018 02:23 PM

nalwar mela

देव भूमि हिमाचल में मेले प्राचीन संस्कृति व सभ्यता की धरोहर है इन्हें संजोए रखना हमारा परम कर्तव्य बनता है मेले वसंत ऋतु के बाद शुरू होते हैं और आपसी भाईचारे आत्मीयता प्रेम को बनाए रखने का संदेश देते हैं मेलों में ही व्यक्ति आपस में मिल जुलकर...

देव भूमि हिमाचल में मेले प्राचीन संस्कृति व सभ्यता की धरोहर है इन्हें संजोए रखना हमारा परम कर्तव्य बनता है मेले वसंत ऋतु के बाद शुरू होते हैं और आपसी भाईचारे आत्मीयता प्रेम को बनाए रखने का संदेश देते हैं मेलों में ही व्यक्ति आपस में मिल जुलकर खुशियां बांटते हैं सदियों से यह परंपरा चली आ रही है आज के मनुष्य की दिनचर्या व व्यवहार पर सोशल मीडिया का बोलबाला सिर चढ़कर बोल रहा है भावनाओं ब प्रतिक्रियाओं को भी सोशल मीडिया पर व्यक्त किया जाता है संदेशों वार्तालाप ब छाया चित्रों को प्रकाशित करने का प्लेटफार्म हर व्यक्ति के हाथ में अपनी जगह बना चुका है घर की छत के नीचे कमरों में भी बातचीत करने का साधन सोशल मीडिया बन गया है ऐसी कार्यशैली को दिनचर्या में मेलों का महत्व घूमने फिरने ब शॉपिंग तक ही सीमित रह गया है।

 

यदि एक दशक पहले की बात करें तो परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत थी बच्चों का अधिकतर समय खेल के मैदानों में गुजरता था खानपान एक साथ इकट्ठे बैठकर किया जाता था आपसी बातचीत प्र द्वारा दुख-सुख को समझा परखा जाता था मेलों का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता था खासकर मार्च माह में नलबाड़ी मेला का आकर्षण ब देवताओं के वाद्ययंत्रों की गूंज हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती थी किसान अपने बैलों को को वर्षभर कड़ी मेहनत और लगन से पालता था मार्च के महीने में बैलों की खरीद-फरोख्त में हर किसान बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता था मार्च महीने का अधिकतर समय बैलों के व्यापार की चर्चाओं में ही व्यतीत होता था लेकिन वक्त बदलते देर नहीं लगती आधुनिक उपकरणों की खोज से आज नलवाड़ी मेलों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया अब नलवाड़ी मेले नाम मात्र 13 गए हैं नलवाड़ी मेलों से बैल गायब हो गए हैं व्यापारी वर्ग भी इस धंधे से करीब-करीब अपना मुंह मोड़ चुका है। 

 

नलवाड़ी मेलों के शुभारंभ के लिए बैलों की एक जोड़ी का जुगाड़ करने के लिए भी प्रशासन को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है एक समय ऐसा भी था जब हजारों की संख्या में बैल मेलों में पहुंचते थे 1 दिन में लाखों रुपए की खरीद फरोख्त की जाती थी आज नलवाड़ी मेलों के शुभारंभ की कुंडी से बांधने के लिए के लिए बैलों की जोड़ी को ढूंढना पड़ रहा है। प्रदेश के प्रसिद्ध नलवाड़ी मेलों में बिलासपुर का नलवाड़ी मेला, सुंदरनगर का नलवाड़ी मेला, भांगरोटू का नलवाड़ी मेला, गोहर ब जाहु के मेलों में बैलों की खरीद-फरोख्त करीब-करीब समाप्त हो चुकी है अब मेलों से गोबर गायब हो चुका है नलबाड़ी मेलों के गायब होने से हमारी कृषि तंत्र भी प्रभावित हो रही है पशुओं के गोबर-मुत्र से कृषि व्यवस्था में जैविक खेती को बढ़ावा मिलता था पशुओं के गोबर-मुत्र कृषि व्यवस्था के संतुलन स्थापित करने में सहायक सिद्ध होता था हमारे खेती की उपजाऊ शक्ति सुरक्षित थी तथा उत्पादन प्रणाली भी स्वास्थ्यवर्धक व लाभकारी थी।

 

पशुओं की कमी के कारण गोबर की खाद की जगह रासायनिक पदार्थों यूरिया तथा फर्टिलाइजर ने ने लिया इनके अत्यधिक उपयोग से आज के किसानों की कृषि जहर उगल रही है उत्पादक प्रणाली विषैले ब जहरीली हो गई है जानलेवा बीमारियों की दस्तक हर घर तक पहुंच चुकी है फल व सब्जियों के उपभोग से कैंसर, अपच, दस्त उल्टी जैसी घातक बीमारियों ने दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है जबकि प्रदेश सरकार इस समस्या के समाधान के लिए जीरो बजट जैविक खेती की दिशा में रात दिन एक कर रही है इस वर्ष के बजट में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 25 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया है इसके अतिरिक्त कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में जीरो बजट जैविक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए एक अलग विभाग की स्थापना भी की गई है माननीय राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी द्वारा गुरुकुल की जीरो बजट जैविक खेती की तकनीक और हिमाचली तक पहुंचाने की मुहिम सराहनीय कार्य है।

 

जैविक खेती को अपनाने के लिए किसानों के घरों गाय ब बैलों का होना अति आवश्यक है लेकिन नलवाड़ के गायब होने के कारण बैलों की संख्या करीब-करीब लुप्त होने के कगार पर खड़ी है ऐसे में जैविक खेती के सपने को साकार करना थोड़ा कठिन कार्य लगता है क्योंकि जैविक खेती को अपनाने के लिए गोबर गोमूत्र का होना अनिवार्य है लेकिन इस वर्ष के बजट में गौ संरक्षण को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण देखने को मिला है बजट में गौ संरक्षण को लेकर गौ संगठन आयोग की स्थापना की जाएगी तथा शराब की बोतल पर 1 सेस, मंदिरों के चढ़ावे का 15% गौ संरक्षण पर खर्च किया जाएगा, बेहतर कार्य करने पर पंचायतों को पुरस्कृत किया जाएगा तथा गौ सदनों की स्थापना के लिए सरकारी भूमि की व्यवस्था भी की जाएगी हिमाचल के इतिहास में गौ संरक्षण के लिए बजट मैं नीति का निर्माण करने का दृष्टिकोण पहली बार बजट देखने को मिलता है यह एक सराहनीय कार्य है हिंदू धर्म में गाय को मां के समतुल्य माना जाता है यदि मां ही सुरक्षित नहीं है तो हम आपसी भाईचारे व शांति की कामना कैसे कर सकते हैं।

 

यदि सरकार बैलों को भी गौ संरक्षण योजना के साथ में जोड़ दें तो नलवाड़ी मेले की खोई हुई साख को पुनः लौटाया जा सकता है सुंदर नगर के सुप्रसिद्ध नलबाड़ मेले में माननीय विधायक श्री राकेश सेमवाल जी द्वारा इस वर्ष बैलों की खरीद-फरोख्त को टैक्स फ्री कर दिया जो कि एक सराहनीय पहल है यदि प्रदेश सरकार इसी तर्ज पर प्रदेश के सभी नलबाड़ी मेलो को टैक्स फ्री कर दें तथा बैलो के संरक्षण के लिए किसानों को विशेष प्रोत्साहन दें तो नलवाड़ी मेलो से गायब हुए बैलों को पुनः लौटाया जा सकता है तथा जैविक खेती के लिए पर्याप्त गोबर की व्यवस्था को भी बढ़ाया जा सकता है हिमाचल प्रदेश की करीब 90% जनसंख्या गांव में रहती है प्रदेश के हर घर में कृषि व्यवस्था है को किया जाता है प्रदेश के चप्पे-चप्पे में प्राकृतिक संपदा की भरमार है प्रदेश की भौगोलिक स्थिति ने प्रदेश को समृद्ध प्राकृतिक संपदा उपहार सम्मान दी है ।

 

इसकी पहचान हिमाचल वासियों को करनी होगी तथा प्रकृति के अनुसार अपनी दिनचर्या व कार्य शैली को अपनाना होगा प्राचीन समृद्ध संस्कृति व सभ्यता को संजो कर रखना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियां भी स्वच्छ स्वतंत्र निष्पक्ष स्वास्थ्यवर्धक जीवन शैली को अपना सके कृषि से प्रदेश के अधिकतर आबादी को रोजगार मिलता है यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हिमाचली अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाए तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था ऋण ग्रसित है कर्ज से मुक्ति पाने के लिए ग्रामीण कृषि व्यवस्था कुटीर उद्योगों का पुनरुत्थान करना होगा साथ ही साथ प्रदेश की कृषि व्यवस्था को भी सुधारना होगा कृषि को सुधारने के लिए पशुओं का होना अति आवश्यक है।

 

पशुओं की पर्याप्तता से भू संतुलन स्थापित करके रोजगार के नवीन साधन तैयार किए जा सकते हैं प्रदेश में बेरोजगारों की बढ़ती फौज पर अंकुश लगाने के लिए कृषि व्यवस्था से रोजगार को जोड़ना होगा 1951- 52 में कृषि क्षेत्र से अर्थव्यवस्था को 55 से 60% योगदान था लेकिन वर्तमान में यह 10% तक पहुंच गया है इसके पीछे का कारण कृषि व्यवस्था में शिथिलता है आज की युवाओं को कृषि बेकार लगती है जिसके पीछे जलवायु परिवर्तन, प्राचीन उपकरणों द्वारा खेती करना,उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपलब्ध न होना ऐसे कारण है जो कि युवाओं को महज 4 से 5 की नौकरी करने के लिए मजबूर कर देते हैं यदि प्रदेश सरकार युवाओं को पशुपालन व कृषि व्यवस्था से जुड़कर रोजगार मुहैया करवाने की ओर बढ़े तो आने वाले समय में युवा शक्ति के हाथों में रोजगार मिल सकता है तथा प्रदेश उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त हो सकता है।

 

कर्म सिंह ठाकुर

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