Edited By Seema Sharma,Updated: 20 Aug, 2019 03:24 PM
जो वक़्त की बिसात पे
तू हौसले बिछाएगा फ़लक
नही है दूर फिर सितारे तोड़ लाएगा
आँधियों के वेग में अडिग खड़ा रहा
अगर रुख़ हवाओं का तू फिर ख़ुद ही मोड़ पाएगा
कदम को कर कठोर तू ख़ुद को जो जलाएगा
सदमें हर सफ़र के फिर हँस के झेल जाएगा
निराश हो के रुक नही हताश हो के थक नही
आशा की पतंग को स्वयं ही तू उड़ाएगा पर्वतों को तोड़ के जो रास्ते बनाएगा
एक दिन ज़माना भी पीछे पीछे आएगा
निगाह तेरी लक्ष्य पे तू मुश्किलों से डर नही
कठिन डगर पे चल के ही तू मंज़िलों को पाएगा
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बैठना ना हार कर..
गिरा है जो उठा ना हो,
जो उठ गया गिरा नही जो पास है तेरा ही है,
जो ना मिला तेरा नही आदि है अनंत है, प्रयत्न का ना अंत है मार्ग जो दिखाएगा,
प्रयास ही वो संत है डर नही अंधेरों से,
अगले पहर में भोर है बंद नेत्र खोल दे,
प्रकाश चारों ओर है जला ना जो तपा ना जो,
हुआ है वो बड़ा नही पक के फिर पाषाण बन,
मिट्टी का घड़ा नही समुद्र सा हो शांत पर,
नदियों जैसा वेग हो बेताबियाँ हों इस क़दर,
कि लहरों से भी तेज़ हो ख़ुद पे हो यक़ीन भी,
हौसला बुलंद हो है जीत निश्चित तेरी,
जो मुश्किलों से द्वंद हो जज़्बों की पतंग को,
आसमां में छोड़ दे डर की हैं जो बेड़ियाँ,
आज सारी तोड़ दे जो मंज़िलों पे हो नज़र,
तो रास्तों से कैसा डर जीत का जुनून रख,
तू बैठना ना हार कर
अमित 'मौन'