विलक्षण व्यक्तित्व के धनी प्रणब मुखर्जी

Edited By Riya bawa,Updated: 06 Sep, 2020 01:14 PM

pranab kumar mukherjee

प्रणब मुखर्जी विलक्षण एवं बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे| वे भारत की उदार, सहिष्णु एवं सर्वसमावेशी संस्कृति के सच्चे प्रतिनिधि थे| वे राजनीति के चाणक्य ही नहीं, अजातशत्रु भी थे| अपने दल में तो वे संकटमोचक की भूमिका में रहे ही, अनेक ऐसा भी अवसर आया जब...

प्रणब मुखर्जी विलक्षण एवं बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे| वे भारत की उदार, सहिष्णु एवं सर्वसमावेशी संस्कृति के सच्चे प्रतिनिधि थे| वे राजनीति के चाणक्य ही नहीं, अजातशत्रु भी थे| अपने दल में तो वे संकटमोचक की भूमिका में रहे ही, अनेक ऐसा भी अवसर आया जब उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हितों को प्रश्रय एवं प्राथमिकता दी| प्रणव बाबू ने राजनीति में गरिमा एवं गंभीरता की स्थापना की| वे विवाद से संवाद और संवाद से समाधान की दिशा में आजीवन सक्रिय एवं सचेष्ट रहे| वे सही अर्थों में एक दूरदर्शी राजनेता, कुशल प्रशासक, प्रखर चिंतक, उत्कृष्ट लेखक, वैश्विक राजनयिक, सुविज्ञ अर्थवेत्ता एवं प्रकांड विद्वान थे| उनका सुदीर्घ राजनीतिक जीवन गौरवशाली एवं उपलब्धिपूर्ण रहा| विभिन्न मंत्रालयों की जिम्मेदारी सँभालते हुए अपनी प्रभावी कार्यशैली से उन्होंने न केवल सत्ता-पक्ष और विपक्ष को गहराई से प्रभावित किया, अपितु देश-दुनिया की तत्कालीन एवं परवर्ती राजनीति पर एक अमिट-अतुल्य छाप छोड़ी| दलों की दीवारों और देश की सीमाओं से परे उनकी सार्वजनीन लोकप्रियता एवं स्वीकार्यता थी| उनके असामयिक निधन पर देश-विदेश के गणमान्य व्यक्तियों एवं राष्ट्राध्यक्षों से प्राप्त भावपूर्ण शोक-संदेश इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं| 

वे चलते-फिरते इनसाक्लोपीडिया थे| अध्ययनशीलता और मितभाषिता उनकी दुर्लभ एवं उल्लेखनीय विशेषता थी| वे अपने साथ हमेशा भारतीय संविधान की एक प्रति रखते थे और यात्राओं आदि के दौरान जब भी उन्हें अवसर मिलता, वे उसकी विभिन्न धाराओं-उपबंधों-अध्यायों-व्याख्याओं का चिंतन-मनन-अध्ययन- विश्लेषण करते थे| वे संसद के पुस्तकालय का सर्वाधिक उपयोग करने वाले सांसदों में से एक माने जाते थे| दलगत हितों एवं निष्ठा से परे वे विभिन्न जटिल एवं नीतिगत मुद्दों पर सर्वसुलभ रहते थे और हर दल के नेताओं को उनका सहयोग एवं मार्गदर्शन मिलता था| संसदीय कार्यप्रणाली एवं परंपराओं के वे अद्भुत ज्ञाता एवं जानकार थे| वे राजनीति एवं राजनीतिक दलों के लिए सदैव अपरिहार्य एवं प्रासंगिक बने रहे| राजनीति के विद्यार्थियों के लिए वे आदर्श एवं प्रेरणा के अजस्र स्रोत हैं|

उनका जन्म पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक छोटे-से गाँव मिराती के स्वतंत्रता सेनानी परिवार में 11 दिसंबर 1935 को हुआ था| समाज एवं देश के प्रति लगाव एवं सजगता उन्हें विरासत व संस्कार में मिली थी| उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से आधुनिक इतिहास एवं राजनीति विज्ञान  में परास्नातक किया| तत्पश्चात वहीं से विधि-स्नातक की डिग्री ली| उन्होंने एक प्राध्यापक एवं पत्रकार के रूप में अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत की| इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व-काल में सन 1969 में राज्यसभा के सदस्य के रूप में उनकी राजनीतिक यात्रा प्रारंभ हुई| पाँच दशक के अपने राजनीतिक कार्यकाल में उन्हें  इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, नरसिंहा राव और मनमोहन सिंह की सरकारों में विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य करने का अवसर मिला| वर्ष 1973-74 में इंदिरा सरकार में वे सर्वप्रथम उद्योग मंत्रालय में उप मंत्री, फिर वित्त राज्य मंत्री, 1982 में वित्त मंत्री बनाए गए| नरसिंहा राव सरकार में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे| उनकी सरकार में उन्होंने वाणिज्य एवं विदेश मंत्री का कार्यभार भी संभाला| मनमोहन सिंह की सरकार में वे 2004-06 तक रक्षा मंत्री, 2006-09 तक विदेश मंत्री और 2009-12 तक वित्त मंत्री रहे| 2012 में वे देश के सर्वोच्च पद पर सुशोभित होते हुए भारत के तेरहवें राष्ट्रपति बने| 

इसके अलावा वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक, अफ्रीकी विकास बैंक के निदेशक बोर्ड के सदस्य रहे| वर्ष 1982-84 में राष्ट्रमंडल वित्त मंत्रियों के सम्मेलन में उन्होंने भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया| 1994-95 एवं 2005-06 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया| ऑकलैंड में आयोजित 1995 में राष्ट्रमंडल देशों के प्रमुखों के सम्मेलन, उसी वर्ष गुटनिरपेक्ष देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन और इसके साथ ही उसी वर्ष बांडुग में आयोजित एफ्रो-एशियाई कांफ्रेंस में उन्होंने भारत का प्रतिनधित्व किया| उनकी विशेषज्ञता का आकलन इसी से किया जा सकता है कि वित्तीय मामलों से सबंधित देश एवं दुनिया की शायद ही ऐसी कोई मान्य एवं प्रतिष्ठित संस्था हो, प्रणब दा जिससे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जुड़े न रहे हों| सत्तर के दशक में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के गठन में उनकी अग्रणी भूमिका रही है|  प्रणब दा ने देश में आर्थिक एवं प्रशासनिक सुधारों को गति दी| यूपीए सरकार के दौरान प्रमुख नीतिगत सुधारों का उन्हें सूत्रधार माना जाता रहा है| प्रशासनिक सुधार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, मेट्रो रेल आदि से जुड़े सभी अहम मुद्दों एवं परियोजनाओं के वे प्रमुख पहलकर्त्ता एवं प्रणेता रहे| उनकी कार्यकुशलता एवं दक्षता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यूपीए सरकार में 95 अधिकार प्राप्त मंत्रिमंडल समूहों के वे अध्यक्ष रहे| प्रतिभा को पहचानने एवं आगे बढ़ाने में उनका कोई सानी नहीं था| वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह को रिजर्व बैंक का गवर्नर उन्होंने ही बनाया था| राष्ट्रपति भवन को उन्होंने आम जन के लिए सुलभ बनाया| उनकी मौलिकता एवं प्रगतिशीलता का परिचय देशवासियों को तब भी मिला, जब उन्होंने राष्ट्रपति पदनाम के साथ प्रचलित  'महामहिम' विशेषण को औपनिवेशिक चलन बताते हुए प्रयोग में न लाने की सार्वजनिक अपील की|

प्रणब दा को राजनीतिक एवं सार्वजनिक जीवन में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए कई अहम सम्मानों से नवाज़ा गया| वर्ष 2019 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया| वर्ष 2008 में उन्हें पद्म विभूषण, 1997 में श्रेष्ठ सांसद सम्मान तथा 2011 में उन्हें भारत के श्रेष्ठ प्रशासक के रूप में सम्मानित किया गया| दुनिया के कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया| विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के लिए जर्नल ऑफ रिकॉर्ड, ''एमर्जिंग मार्केट्स'' ने उन्हें 2010 में एशिया के लिए 'वर्ष का वित्त मंत्री' घोषित किया था|

एक सामान्य राजनेता से लेकर देश के सर्वोच्च पद तक का उनका सफ़र असाधारण रहा| उसमें उपलब्धियों का गौरव-भंडार था तो संघर्षों का पारावार भी| परंतु संघर्षों की आग में तपकर वे हर बार कुंदन की भाँति बाहर निकले| एक ऐसा भी दौर आया जब उन्हें अपने ही दल के भीतर उपेक्षा एवं आलोचनाओं का शिकार बनना पड़ा| वे देश पर आपातकाल थोपने के इंदिरा गाँधी के फ़ैसलों के भागीदार बताए जाते रहे| उनकी कथित महत्त्वाकांक्षा को आधार बनाकर राजीव गाँधी सरकार में अचानक उनसे केंद्रीय मंत्री का पद छीनकर उन्हें प्रदेश काँग्रेस समिति का कार्यभार सौंपकर पश्चिम बंगाल भेज दिया गया| जब 2004 में पूरा देश उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रहा था, तब उन्हें राजनीति के लिए सर्वथा नवीन एवं कनिष्ठ मनमोहन सिंह के नीचे पदभार ग्रहण करना पड़ा| परंतु इन सभी उतार-चढ़ावों के मध्य कभी उनके व्यक्तित्व में विचलन या असंतुलन नहीं देखा गया| उन्होंने अपने सार्वजनिक व्यवहार एवं वक्तव्य में ऐसा संयम, संतुलन, अनुशासन एवं शिष्टाचार बनाए रखा, जिसका अन्य कोई दृष्टांत दुर्लभ है| उन्होंने अपने दृढ़, स्वतंत्र एवं निर्भीक व्यक्तित्व का परिचय उस समय भी दिया जब उन पर संघ के कार्यक्रम में न जाने का चौतरफ़ा दबाव बनाया गया| मतभिन्नता के कारण उन्होंने कभी मनभिन्नता को आश्रय नहीं दिया| 

वे संवाद एवं सहमति के पैरोकार थे| असहमति के सुरों को साधना उन्हें बख़ूबी आता था| उनकी उपस्थिति आज के इस बड़बोले दौर में मौन-मधुर संगीत-सी सुखद एवं प्रीतिकर लगती थी| भारतीय राजनीति के वे एक ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र रहे, जिसकी चमक बीतते समय के साथ-साथ और बढ़ती जाएगी|  ''तू-तू, मैं-मैं'' के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में प्रणब दा का जाना एक स्वस्थ एवं गरिमापूर्ण राजनीतिक परंपरा के स्वर्णिम युग का अवसान है| यह सामाजिक-सार्वजनिक-राजनीतिक जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है|


(प्रणय कुमार)
 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!