शिक्षक दिवस: शिक्षा के गिरते स्तर के लिए जिम्मेदार कौन?

Edited By ,Updated: 05 Sep, 2016 04:09 PM

teacher day school degrees education

शिक्षा का अर्थ सामान्यत: स्कूल से प्राप्त होने वाले किताबी ज्ञान और डिग्रियों से ही मान लिया जाता है...

शिक्षा का अर्थ सामान्यत: स्कूल से प्राप्त होने वाले किताबी ज्ञान और डिग्रियों से ही मान लिया जाता है, लेकिन वास्तविक अर्थों में शिक्षा एक ऐसा व्यापक शब्द हैं जिसमें स्कूल, काॅलेज और किताबी ज्ञान उसका एक अंग मात्र रह जाता है। दरअसल पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर नैतिक सांस्कृतिक मूल्यों का सम्यक् निर्वाह ही शिक्षिक होने का वास्तविक अर्थ है। हां, इतना अवश्य है कि पुस्तकों आदि के माध्यम से दिया जाने वाला ज्ञान संस्कारों के परिशीलन और परिमार्जन में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता आया है। इस अर्थ में किसी भी व्यक्ति के लिए जन्म से लेकर मृत्यु-पर्यंत कुछ न कुछ उपयोगी और ग्रहण करने योग्य बातों का पता चलता है उसके लिए शिक्षालय है, जिस भी व्यक्ति या जीव के माध्यम से किसी बात को ग्रहण किया जाए वही उसका गुरू या शिक्षक है, मतलब यही कि संसार का हर छोटा-बड़ा प्राणी किसी न किसी के लिए किसी न किसी रूप में एक शिक्षक ही है।


समाज को सम्यक् दिशाबोध देने में शिक्षा का स्थान सर्वोपरि
शिक्षा के इतने व्यापक फलक को आत्मसात करने के लिए एक निश्चित आधार जरूरी समझा गया और सभ्यता के विकास के साथ-साथ नैतिक सांस्कृतिक मूल्यों के ज्ञानार्जन की परिपाटी चलने लगी और गुरू-शिष्य जैसे संबंधों का प्रादुर्भाव हुआ। जाहिर है किसी भी समाज को सम्यक् दिशाबोध देने में शिक्षा का स्थान सर्वोपरि है। जो समाज जितना अधिक शिक्षित होगा उसका आध्यामित्क, भौतिक और सांस्कृतिक विकास उतनी ही द्रुत गति से होगा। इसीलिए शैक्षिक व्यवस्था की जड़ं ज्यादा से ज्यादा मजबूत बनाना चाहता है ताकि एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके। अनुत्तरित प्रश्नों के इस बढ़ते जाल का कारण है कि शिक्षा व्यवस्था में कही न कहीं कोई खोट रह जाना। आज विश्व स्तर पर हमारी अनेक उपलब्धियों पर प्रश्न चिह्नन से लग जाते है जबकि किसी समय इसी शिक्षा और ज्ञानार्जन के बल पर हमारा भारत संपूर्ण विश्व का गुरु कहलाने का गौरव पा चुका है।


उन्नति के क्षेत्र में पिछड़ने के लिए शिक्षा व्यवस्था ही जिम्मेदार 
शिक्षा ही तो संपूर्ण उन्नति का मार्ग है, जो किसी भी व्यक्ति या समाज को युगों-युगों तक स्मरणीय बना देती है। लेकिन जब इसी शिक्षा को ग्रहण करने करवाने में कोई खोट रह जाता है तो निश्चित ही समाज को पतन के गर्त में गिरते देर नहीं लगती। आध्यात्मिक, नैतिक मूल्यों के मद्देनजर  आज कमोबेश सारे विश्व की ही शिक्षा व्यवस्था में गंभीर दोष पैदा हो गये है। आध्यात्मिक, सांस्कृतिक व नैतिक मूल्यों का दिन-ब-दिन होता हृस इसका स्पष्ट संकेत है।


हां आर्थिक, राजनीतिक या भौतिक उन्नति के संदर्भ में मूल्यांकन किया जाए तो कहा जा सकता है कि पश्चिमी मुल्कों की शिक्षा का स्वरूप इस अर्थ में काफी संतुलित व सधा हुआ है। अपने देश के विषय में विश्लेषण करें तो वही निष्कर्ष निकालेंगे कि आध्यात्मिक सांस्कृतिक व नैतिक मूल्यों के अवमूल्यन के साथ-साथ हम आर्थिक, राजनीतिक और भौतिक उन्नति के क्षेत्र में भी निरंतर पिछड़ते जा रहे है। इसके लिए सीधे तौर पर हमारी शिक्षा का नीचे होता स्तर ही जिम्मेदार है। 


पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण अनुचित 
अब सवाल उठ खड़ा होता है कि आखिर कौन जिम्मेदार है शिक्षा के इस गिरते स्तर के लिए। उत्तर स्वरूप सबसे अहम् बात उभरकर आती है पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण। पश्चिम का मोह आज हमें इस कदर अपने जाल में उलझाता जा रहा है कि लगता है हम उचित-अनुचित, भला-बुरा कुछ भी सोच पाने की स्थिति में नहीं रह गये है। पश्चिम का सब कुछ हमें अनुकरणीय लगता है और अपने यहां की समय की रफ्तार के हिसाब से त्याग देने योग्य। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रत्येक समाज इतना अवश्य है कि समय के साथ बदलाव स्वतः आ जाता है और हम चाहते हुए भी अपने को उससे अलग नहीं कर पाते और न अपने को उससे अलग करने में कोई भलाई है, लेकिन कभी-कभी इस बदलाव के रूप में हम वह सब भी अपनाते चले जाते है जिसे अपनाने को हमें कोई आवश्यकता ही नही, या जिससे अपनी विशिष्ट संस्कृतिक के अवमूल्यन के खतरे बढ़ जाते है। 


सीमित संसाधन के कारण परिणाम न के बराबर
हमने सारे विश्व को अध्यात्म, सदाचार और नैतिकता का पाठ पढ़ाया है और हम इस रूप में सबके वंदनीय, पूज्यनीय भी रहे है हम। चाहिए तो था कि आज भी हम उस स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाकर रखते और सारे विश्व, में नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा के गुरु के रूप में जाने जाते लेकिन उधार की संस्कृति को लेकर दिशाभ्रमित होने वाले हमारे समाज को उक्त सभी बातें सदियों पुराने युग में जीने वाली लगती है। आज के तेज-रफ्तार और वैज्ञानिक युग में उचित-अनुचित किन्हीं भी तौर-तरीकों से भौतिक सुख-सुविधाएं जुटा लेने के अलावा समय ही नहीं बचता हमारे पास। मजे की बात यह है कि वैज्ञानिक उन्नति और भौतिक सुख-सुविधाएं तो हम ज्यादा से ज्यादा पाना चाहते है लेकिन उन्हें हासिल करने के संसाधन इतने सीमित है कि हर तरह से होड़ करने के बावजूद हमारे हक में परिणाम न के बराबर ही आते है। 


हम न घर के रहे न घाट के
उधार की संस्कृति आखिर कब तक किसी का सहारा बन सकती है। एक न एक दिन उससे पीछा छुड़ाने की नौबत आ ही जाती है, लेकिन ऐसी संस्कृति के खतरे इतने भयावह होते है कि कुछ समय पश्चात चाहते हुए भी उससे पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता है। हमारे समाज की स्थिति आज कमोबेश वही हो गयी है। हम न तो पूरी तरह उस पश्चिमी संस्कृति को ही अपना पाये जिसके पीछे अंधे होकर दौड़ पड़े थे और न अपनी मूल संस्कृति की ही ओर लौट पा रहे है ताकि अपनी एक अलग पहचान कायम कर सकें।


व्यावहारिक शिक्षा के बजाए सैद्धांतिक शिक्षा का बोलबाला
शिक्षा व्यवस्था की सफलता वही मानी जा सकती है जहां हम पूर्ण संतुष्टि और सफलता हासिल कर सके लेकिन आज हमें दोनों ही स्तर पर निराशा अधिक भोगनी पड़ती है। आज के समय  हम आध्यात्मिक न सही भौतिक शिक्षा के स्तर पर ही इतने सफल हो जाते कि विश्व के अन्य विकसित राष्ट्रों से बराबर की स्पर्धा कर सकते, लेकिन शिक्षा नीति में पनप रही अनेक खामियों की वजह से प्रगति की सीढ़ियों पर बेहिचक चढ़ने में कामयाब नहीं हो पा रहे है हम। व्यावहारिक शिक्षा के बजाए सैद्धांतिक शिक्षा का बोलबाला हमारी प्रगति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है, इससे हर साल साक्षर बेरोजगारों  की पंक्ति दीर्घ से दीर्घतर होती जा रही है। परिणामस्वरूप अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति वह अनाप-शनाप तरीकों से पूरी करने लगे है।


नहीं मिल पा रहा समाज को उचित दिशाबोध 
पश्चिम की तर्ज पर हमने ढाई-तीन साल के बच्चों को स्कूल भेजना तो शुरू कर दिया लेकिन खेल खिलौनों के मार्फत खिलाने की बजाए हमने उन्हें भी कॉॅपी किताबों के बोझ तले दाब दिया और चौथी पांचवी कक्षा तक आते-आते तो वे बस्ते के बोझ तले लगभग दब ही गये। अब हम चाहे लाख दुहाई दें एक परिपाटी चल पड़ी है बच्चों को इस उम्र में स्कूल भेजने की तो वह चलती ही जा रही है। व्यवहारिक धरातल पर ऐसी ही अनेकानेक खामियां हमारी शिक्षा नीति में घर कर गयी है जिससे समाज को उचित दिशाबोध नहीं मिल पा रहा है। अतः समाज  के शुभचिंतकों को चाहिए कि वह इन सारी स्थितियों पर ईमानदारी से अमल करें और शिक्षा नीति में इस तरह का बदलाव लायें ताकि समाज में अस्वस्थ स्पर्धा कायम हो और हम भी विश्वस्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हों।


                                                                                                                                                                        - ज्योति प्रकाश खरे

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!