शिक्षक कोरोना वारीयर क्यों नहीं?

Edited By Riya bawa,Updated: 28 May, 2020 05:20 PM

why not teachers corona warriors

प्राचीन काल में गुरु के महत्व को उक्त श्लोक स्पष्ट करता है, जब गुरु का दर्जा सबसे ऊपर अर्थात राजा से भी ऊपर था। गुरु के बिना साधारण व्यक्ति से लेकर राजा तक का कोई भी कार्य अधूरा माना जाता था I गुरु राष्ट्र का नीति निर्माता , मार्गदर्शक तथा साधारण...

गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर, गुरु साक्षात परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः
प्राचीन काल में गुरु के महत्व को उक्त श्लोक स्पष्ट करता है, जब गुरु का दर्जा सबसे ऊपर अर्थात राजा से भी ऊपर था। गुरु के बिना साधारण व्यक्ति से लेकर राजा तक का कोई भी कार्य अधूरा माना जाता था I गुरु राष्ट्र का नीति निर्माता , मार्गदर्शक तथा साधारण लोगों के लिए पुरोहित(धर्मगुरु) के रूप में धर्म और अधर्म का भेद बताने वाला माना जाता था। वह ही लोक से परलोक तक की राह बताने वाले के रूप में सम्माननीय था। रामायण और महाभारत काल इसके प्रबल उदाहरण हैं ऋषि विश्वामित्र, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि बाल्मीकि, गुरु द्रोणाचार्य आदि से लेकर चाणक्य तक ऐसे गुरु हुए हैं जिनका राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । महाभारत काल के पश्चात यह स्थिति बदलती चली गई । गुरु अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला, अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने वाला माना जाता था। मध्यकाल और मुस्लिम काल में गुरु को मास्टर का स्थान दे दिया गया अर्थात वह स्वामी के रूप में राह बताने वाला माना गया ।अंग्रेजी काल में मास्टर का स्थान टीचर ने ले लिया। जो गुरु नीति निर्माता और मार्गदर्शक था I अंग्रेजों ने इस देश को गुलाम बनाए रखने के लिए उसका स्थान ब्यूरोक्रेट्स को दे दिया। 

परिणाम यह हुआ कि एक समय ऐसा था जब गुरु के आने पर राष्ट्र का राजा भी स्थान छोड़कर खड़ा हो जाता थाI आज स्थिति यह है कि यदि किसी बड़े अधिकारी या ब्यूरोक्रेट के कार्यालय में कोई गुरु या शिक्षक मिलने के लिए जाए तो उसे पंक्ति में सबसे पीछे खड़ा किया जाता हैI अधिकारी मिलते समय उस से उपेक्षित व्यवहार करता है Iवह यह भूल जाता है कि अधिकारी की जिस कुर्सी पर वह बैठा हुआ है उसमें किसी ना किसी शिक्षक की मेहनत भी जुड़ी हुई है। शिक्षक आज उपेक्षित और शोषित की भूमिका में है।स्वतंत्र भारत में शिक्षक का स्थान और भी नीचे चला गया। सरकार की अ-दूरदर्शिता पूर्ण नीतियों के कारण शिक्षक प्राइवेट तंत्र का गुलाम बन गया I आज भारत में शिक्षा पर प्राइवेट स्कूलों का वर्चस्व है, जिनमें करोड़ों शिक्षक कार्यरत है। यह सर्वविदित है कि प्राइवेट स्कूल में शिक्षक को सरकारी स्कूल से अधिक मेहनत करनी पड़ती है । कड़ी मेहनत के बावजूद भी शिक्षक के हिस्से में सरकारी उपेक्षा, सामाजिक अन्याय तथा स्कूलों द्वारा शोषण ही आता है। 

आज प्रत्येक वर्ग का कोई ना कोई प्रतिनिधि संगठन है। स्कूल संचालकों का भी संगठन है I परंतु प्राइवेट स्कूलों में काम करने वाले शिक्षको या कर्मचारियों का कोई संगठन नहीं होने के कारण वह उपेक्षित और शोषित जीवन बिता रहें है। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण वर्तमान में करोना संकट के समय देखने को मिलता हैI आज डॉक्टर, पुलिसकर्मी तथा सफाई कर्मी भी क्रोना वारियर के रूप में सम्मानित है I उनकी मेहनत तथा क्रोना से आमना-सामना होने की उनकी हिम्मत तथा मानवता को बचाने का प्रयास उन्हें प्रशंसा की गरिमा प्रदान करता है । परंतु शिक्षक का कार्य भी कम नहीं हैI करोना के संकट के समय शिक्षकों ने एक ऐसी विधा को अपना कर राष्ट्र के भविष्य, बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया, जिस विधा की उन्हें समुचित जानकारी भी नहीं थी ।आज चारों तरफ ऑनलाइन क्लासेज चर्चा में हैं, इन्हीं के कारण बच्चे अपनी शिक्षा अबाद गति से जारी रखे हुए हैंI परंतु इन ऑनलाइन शिक्षकों के पीछे शिक्षक की कड़ी मेहनत संभवत किसी को दिखाई नहीं देती। शिक्षक ने अल्पकाल में न केवल मोबाइल, कंप्यूटर के प्रत्येक कार्य की जानकारी ली तथा उन सब विधियों को खोज निकाला जिनके द्वारा दूर अपने घर में बैठे हुए बालक को शिक्षा प्रदान की जा सकती है। पुराने शिक्षक तो कंप्यूटर से अनभिज्ञ ही थे परंतु इस संकट के समय में किसी भी शिक्षक ने कोई बहानेबाजी नहीं की तथा जैसे तैसे करके ऑनलाइन क्लास में प्रवीणता प्राप्त कर ली। 

यदि ऑनलाइन क्लासेज न चलती तो बच्चे करोना लोक डाउन के बाद एक कोरी स्लेट की भांति होते तथा इस अवधि में घर पर रहते हुए माता पिता को नानी याद दिला देते। पढ़ाई के टूट जाने पर समाज और राष्ट्र की भयानक क्षति होती I परंतु शिक्षक ने आगे बढ़कर बिना किसी दबाव के शुभेच्छा से ऑनलाइन क्लास चलाकर मानवता को बचाने का कार्य किया। उसने इन ऑनलाइन क्लासेस को इतने सजीव रूप से प्रस्तुत कर दिया कि प्रत्येक घर एक विद्यालय बन गयाI जहां पठन-पाठन के साथ-साथ ऑनलाइन सांस्कृतिक गतिविधियां तथा बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए अनेक प्रतियोगिताएं भी आयोजित होने लगी। परंतु इसके बदले में उसे क्या मिला। उस पर ताने और लांछन लगाए जा रहे हैं ।सरकारें भी बच्चों के बारे में या स्कूलों के बारे में विचार कर रही हैं। शिक्षक के बारे में कोई भी नहीं सोच रहा ।इस महीने भी बहुत कम स्कूल ऐसे हैं जिन्होंने अपने स्टाफ को पूर्ण वेतन दिया हो! यदि सरकार ने स्कूलों को कोई आर्थिक पैकेज नहीं दिया तो आगामी मास में शिक्षकों को वेतन के लाले पड़ जाएंगे। शिक्षक इस बात से बेखबर लगन के साथ अपना काम कर रहे हैं । यहां यह भी बात ध्यान देने योग्य है कि 80% से अधिक शिक्षक महिलाएं हैं हमारे समाज का यह एक कड़वा सत्य है की महिला को अपने घर के समस्त सदस्यों को प्रसन्न रखना पड़ता है।

 घर में रहते हुए वह 24 घंटे की नौकरानी है। उसका पीछा इन सब कामों से स्कूल के समय में ही छूटता था ।अब घर में रहकर घर के सारे काम करते हुए ऑनलाइन क्लासेस की तैयारी करना व उनका संचालन करना अत्याधिक मेहनत और भयावह कार्य है। जबकि दूसरे किसी भी विभाग का व्यक्ति केवल मात्र अपनी ड्यूटी ही करता है। ड्यूटी के दौरान घर का काम नहीं करता लेकिन शिक्षिका को तो घर पर रहते हुए घर के काम करते हुए अपनी ड्यूटी भी करनी
पड़ती है अर्थात दोहरा कार्य करना पड़ता है फिर भी करोना संकट के समय उसका कोई अस्तित्व स्वीकार नहीं किया गया। सुप्रसिद्ध पत्रकार श्री रजत शर्मा ने आज की शिक्षिकाओं की स्थिति का वर्णन करते हुए टीवी पर बताया कि किस प्रकार ऑनलाइन क्लासेज चलाने वाली महिला शिक्षिकाओं के ऊपर अभद्र टिप्पणियां बच्चों तथा बच्चों के अभिभावकों के द्वारा की जा रही हैं। परिणाम स्वरूप शिक्षिकाओं को अपने चेहरे ढाप कर ऑनलाइन क्लास चलानी पड़ रही है अर्थात क्रोनावारियर या कोई और सम्मान तो दूर की बात है इसके उलट उसे अनेक मोर्चों पर लांछित और प्रताड़ित किया जा रहा है ।ऊपर से वेतन की कोई गारंटी नहीं और उससे आगे जाकर विचार किया जाए तो करोना मुक्ति के पश्चात स्कूलों का भविष्य क्या होगा और उसमें टीचर की नौकरी टिक पाएगी या नहीं टिक पाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है, फिर भी अस्थिर भविष्य की परवाह न करते हुए शिक्षक प्राण प्रण से अपना वह कार्य करने में जुटा हुआ है जिस कार्य के लिए वह प्रशिक्षित भी नहीं था।

देश में किसी भी शिक्षक या शिक्षिका ने यह बहाना नहीं बनाया कि मुझे तो अपने शिक्षा काल या बी. एंड कोर्स में या किसी स्तर पर ऑनलाइन क्लासेज का प्रशिक्षण नहीं दिया गया या मेरी नियुक्ति स्कूल में काम करने के लिए की गई थी घर बैठकर कंप्यूटर पर काम करने की नहीं थी ।यह बात वास्तव में प्रशंसनीय है जिसकी ओर समाज के किसी व्यक्ति का ध्यान नहीं गया अंतिम बात यह है की शिक्षक कोई अमीर परिवार का व्यक्ति नहीं बनताI शिक्षक गरीब या मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं I उनका परिवार उनके वेतन पर आधारित होता है। क्रोना संकट के समय सरकार गरीबों के लिए अनाज और राशन उपलब्ध करा रही है और कराती रहेगी, अमीरों को राशन पानी की चिंता नहीं है लेकिन शिक्षकों को वेतन ना मिलने की स्थिति में न तो वह प्राइवेट स्कूल जिसमें वह काम करता है, ना वह सरकार जिस प्रदेश में शिक्षक रहता है उसके वेतन की या भविष्य की चिंता कर रही है । शिक्षक या शिक्षिका तो बेचारी अपनी उच्च शिक्षा के कारण कोई मजदूरी भी नहीं कर सकती। तो जरा सोचिए इन परिस्थितियों में शिक्षक तथा उसके परिवार का भविष्य क्या होगा ?

मेरा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का भाव नहीं है परंतु जो कर्मचारी अपनी ड्यूटी के अंतर्गत करोना से लड़ रहे हैं उनमें से किसी को भी अपने वेतन या परिवार के भविष्य की चिंता नहीं है, उनके लिए सरकार और समाज दोनों चिंतिंत हैंI परंतु शिक्षक जो निरंतर करोना संकट में मानवता के बचाव का संघर्ष कर रहा है, उसके लिए किसी ने सम्मान का एक शब्द बोलना तो दूर उसके काम को मान्यता भी नहीं दी है उल्टा उनके वेतन आदि पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य संतोष और साहस के साथ काम करने वाला शिक्षक या शिक्षिका क्या एक सच्चा योद्धा नहीं है? टीचर तो उन लोगों को भी अपने बच्चों के भविष्य की चिंता से निश्चित करता है जो क्रोना के विरुद्ध दिन रात डॉक्टर या पुलिस या अन्य किसी भी कर्मचारीके रूप में कार्य कर रहे हैंI परंतु शिक्षक के भविष्य या उसके बच्चों की चिंता कौन करेगा? सबकी चिंता करने वाला एकमात्र शिक्षक क्रोना संकट में मानवता को बचाने के प्रत्येक पहलू पर निहत्था और निस्वार्थ भाव से लड़ रहा है तो उसे क्रोना वारियर का सम्मान क्यों नहीं दिया जाए? यदि हां तो आइए हम सब अपने उत्तरदायित्व को समझकर क्रोना काल में शिक्षक के महत्व को समझ कर अपने प्रिय शिक्षक और शिक्षिका को यथोचित सम्मान दिलाने का संकल्प करें तथा इस संदेश को सरकार से लेकर जनसाधारण तक इतना प्रसारित करें कि लोग शिक्षकों की भूमिका को सम्मान की दृष्टि से देखने लगे।

(डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी)
 

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