गलतफहमी

Edited By Riya bawa,Updated: 05 Jul, 2020 03:42 PM

wrong perception

व्याकरणिक दृष्टि से गलतफहमी और खुशफहमी एक दूसरे के विलोम हैं कि नहीं यह कहना तो मुश्किल है, मगर इतना ज़रूर है कि अंतर्विरोधों से भरे आज के इस विविधायामी जीवन और समाज में दोनों शब्द अपना विशेष महत्व...

व्याकरणिक दृष्टि से गलतफहमी और खुशफहमी एक दूसरे के विलोम हैं कि नहीं यह कहना तो मुश्किल है, मगर इतना ज़रूर है कि अंतर्विरोधों से भरे आज के इस विविधायामी जीवन और समाज में दोनों शब्द अपना विशेष महत्व रखते हैं। ध्यान से देखा जाय तो दोनों शब्द व्यक्ति की ‘समझ’ से जुड़े हुए हैं। किसी के बारे में गलत धारणा रखना या बनाना गलतफहमी है। यह धारणा जानबूझकर भी बनाई जा सकती है या फिर सहज-स्वाभाविक भी हो सकती है। कभी-कभी अपूर्ण सूचनाओं, तथ्यों या ज्ञान के आभाव में भी गलतफहमियां जन्म लेती हैं। 

इसके विपरीत खुशफहमी व्यक्ति की समझ का वह रूप है जिसमें व्यक्ति यह भाव पाले रहता है कि वह औरों से श्रेष्ठतर है या दूसरे उससे कमतर हैं। इसमें भी उसका अज्ञान ही काम करता है। सामाजिक जीवन, विशेषकर पारिवारिक जीवन में दोनों गलतफहमियों अथवा खुशफहमियों की बड़ी भूमिका है। 

पति-पत्नी के बीच जब कभी विचारों या अहम् के टकराव की स्थिति पैदा होती है, तो वह कमोबेश गलतफहमियों अथवा खुशफहमियों के कारण ही होती है। छोटी सी गलतफहमी बवाल खड़ा कर देती है और खुशफहमी अहम् को इतना उछाल देती है कि एक-दूसरे से श्रेष्ठतर समझने की होड़ में परिवार में अक्सर तनाव छाया रहता है। हमारे पुरुष-प्रधान समाज में पुरुष की इस खुशफहमी पर एक रोचक घटना याद आ रही है:

एक सेवानिवृत बुजुर्गवार डाक्टर से परामर्श लेने पहुंचे : ‘डाक्टर साहब, मुझे लगता है कि मेरी पत्नी अब पिछले कुछ समय से ऊंचा सुनने लगी है, कोई उपाय बताइए जिससे वह ठीक हो जाय।’  

डॉक्टर ने बुजुर्गवार को समझाया: ‘इससे पहले कि मैं कोई ‘हियरिंग-एड’ प्रस्तावित करूं, आप उनसे 40 फुट की दूरी से सामान्य बोलचाल की भाषा में कोई वार्तालाप कर के देख लें। अगर वह सुनती है तो ठीक है, नहीं तो 30 फुट की दूरी रखें। फिर भी नहीं सुनती है तो 20 फुट की दूरी रखें और इस तरह दूरी घटाते रहें।  मुझे बाद में रिपोर्ट दे दीजिये।’ 

उसी दिन शाम को घर लौटने पर उन महाशय ने देखा कि उनकी पत्नी किचन में खाना बना रही है। मौका अच्छा था। उन्होंने किचन से 40 फुट की दूरी पर रहकर आवाज़ दी। ‘ सुनो, आज सब्जी क्या बन रही है?’ पत्नी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। उन्होंने दूरी अब 30 फुट कर दी और बात को फिर दोहराया। तब भी कोई जवाब नहीं मिला। दूरी 20 फूट रखने के बाद भी पत्नी की तरफ से जब कोई जवाब नहीं आया तो महाशयजी 5 फुट की दूरी से तनिक ऊंची आवाज़ में बोले ‘सुनो, मैं पूछ रहा हूँ कि आज सब्जी क्या बन रही है?’तब भी कोई जवाब नहीं। 

बुजुर्गवार को पूरा यकीन हो गया कि उनकी पत्नी सच में ऊंचा सुनने लगी है। अब वे बिलकुल उसके निकट ही आ गये और ज़ोर से बोले ‘मैं पूछ रहा हूँ कि आज सब्जी क्या बनी है?’अबकी बार  पत्नी ने झल्ला कर उत्तर दिया: ‘पांच बार दोहरा चुकी हूँ कि दमआलू की सब्जी बनी है, दमालू की सब्जी बनी है -- अब और कितनी बार दोहराना पड़ेगा?’

विडंबना देखिये, पतिदेव खुद ऊंचा सुनते थे और बहरेपन का दोष अपनी पत्नी पर मढ़ रहे थे। पारिवारिक ढांचे में पति-पत्नी के रिश्ते का अपना एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान है। इस रिश्ते में जितना समर्पण और आदर-भाव होगा, उतना ही यह रिश्ता फलेगा-फूलेगा और मजबूत होगा दरअसल, किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए प्रेम, वैचारिक सामंजस्य, परस्पर सम्मान, एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र और विश्वास सबसे ज़रूरी है। पति-पत्नी के रिश्ते में तो ये बातें और भी आवश्यक हो जाती हैं, ख़ास तौर पर ऐसे पति-पत्नी के रिश्तों में जिनका वैवाहिक जीवन समय के थपेड़े झेलता हुआ बहुत आगे निकल चुका हो।

(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा) 

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