Edited By ,Updated: 14 Sep, 2022 05:16 AM
देश की अदालतों में दशकों से लटकते आ रहे मुकद्दमों के कारण आम आदमी का न्याय के लिए इंतजार लम्बा तथा कठिन होता जा रहा है। मुकद्दमे लटकने का एक बड़ा कारण अदालतों में गवाहों
देश की अदालतों में दशकों से लटकते आ रहे मुकद्दमों के कारण आम आदमी का न्याय के लिए इंतजार लम्बा तथा कठिन होता जा रहा है। मुकद्दमे लटकने का एक बड़ा कारण अदालतों में गवाहों का न पहुंचना भी है, जिसके चलते गवाहों से जिरह में देरी पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस.के. कौल व जस्टिस एम.एस. सुन्द्रेश ने 19 अगस्त को कहा :
‘‘यह यकीनी बनाना ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है कि मुकद्दमा लम्बा न चले क्योंकि समय अंतराल बढऩे से गवाही में समस्याएं पैदा होती हैं। अत: ट्रायल कोर्ट को किसी भी पक्ष की देरी करने की चालों पर काबू पाना चाहिए।’’
इसी सिलसिले में अब वकीलों के बार-बार सुनवाई स्थगन के अनुरोध पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने ‘दामिनी’ फिल्म का एक प्रसिद्ध डायलाग दोहराया और कहा, ‘‘हम नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट ‘तारीख पे तारीख’ वाली अदालत बने।’’ एक वकील द्वारा मामले पर बहस के लिए समय मांगने और सुनवाई के स्थगन के लिए पत्र देने की बात कहने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए माननीय न्यायाधीशों डी.वाई. चंद्रचूड़ तथा हिमा कोहली की पीठ ने कहा, ‘‘हम सुनवाई स्थगित नहीं करेंगे। अधिक से अधिक हम कुछ देर के लिए सुनवाई रोक सकते हैं लेकिन आपको बहस करनी होगी।’’ न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक दीवानी अपील में पेश वकील से कहा, ‘‘यह शीर्ष अदालत है और हम चाहते हैं कि इस अदालत की प्रतिष्ठा बनी रहे।’’
पीठ ने कहा कि,‘‘जहां न्यायाधीश मामले की फाइल को ध्यान से पढ़कर अगले दिन की सुनवाई के लिए आधी रात तक तैयारी करते रहते हैं, वहीं वकील आते हैं और सुनवाई स्थगन की मांग करने लगते हैं।’’ न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि वह कोर्ट में ‘तारीख पे तारीख’ वाली छवि को बदलने के लिए सभी प्रयास करेंगे क्योंंकि लम्बे समय से लोगों में यह धारणा बन गई है कि अदालतों में न्याय के बदले सिर्फ तारीख ही मिलती है।
सुप्रीमकोर्ट के वकीलों की यह आम राय है कि जस्टिस चंद्रचूड़ दलीलों को तसल्ली से सुनते हैं और उनकी यथासंभव कोशिश रहती है कि मामले की सुनवाई निश्चित तारीख पर हो। उनका मानना है कि जज ने देर रात तक मामले से संबंधित दस्तावेजों को पढ़ा होता है, अत: वकीलों द्वारा अनावश्यक स्थगन की मांग को सराहा नहीं जा सकता। यदि ऐसा दृष्टिकोण न्यायपालिका से जुड़े सभी जज अपना लें तो अनावश्यक रूप से मामलों की सुनवाई रुकवाने की कोशिशों में कमी लाकर अदालतों का बोझ कुछ कम अवश्य किया जा सकता है।-विजय कुमार