ट्रम्प 2.0 में उत्साह के साथ सतर्क रहने की भी जरूरत

Edited By ,Updated: 11 Nov, 2024 04:42 AM

trump 2 0 needs to be cautious along with enthusiasm

इन दिनों विश्व राजनीति में जिसकी सर्वाधिक चर्चा है, वह है अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव में डैमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी कमला हैरिस पर रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प की अप्रत्याशित विजय और विश्व की राजनीति पर पडऩे वाले इसके प्रभाव। भारत के...

इन दिनों विश्व राजनीति में जिसकी सर्वाधिक चर्चा है, वह है अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव में डैमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी कमला हैरिस पर रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प की अप्रत्याशित विजय और विश्व की राजनीति पर पडऩे वाले इसके प्रभाव। भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो 5 वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमरीका यात्रा के दौरान टैक्सास के ह्यूस्टन में एक सार्वजनिक सभा को सम्बोधित करते हुए कहा था कि ‘‘रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प के साथ भारत का जुड़ाव बढिय़ा है।’’ और अपने भाषण का समापन उन्होंने इन शब्दों से किया था, ‘‘अबकी बार ट्रम्प सरकार।’’ परंतु जब हम दोनों नेताओं के बीच निजी सम्बन्धों से परे हटकर ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के बीच आपसी सम्बन्धों को देखते हैं तो इसमें मिला-जुला रंग देखने को मिलता है। अब भले ही ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में भारत को अमरीका द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल के तौर तरीकों के प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है, इसके बावजूद नई दिल्ली ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल का स्वागत ही करेगी।

नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए डोनाल्ड ट्रम्प की विजय पर खुश होने के कई कारण हैं। ट्रम्प ने यह बात स्पष्टï कर दी है कि वह भारत-अमरीका सम्बन्धों के इतिहास की पृष्ठïभूमि में नए रिश्तों को खड़ा करना चाहते हैं जिसमें व्यापार सम्बन्ध कायम करना, भारतीय कम्पनियों के साथ टैक्नोलॉजी का विस्तार तथा भारतीय सुरक्षा बलों के लिए अधिक सैन्य सामग्री उपलब्ध करवाना शामिल होगा। डोनाल्ड ट्रम्प वहीं से शुरुआत करेंगे जहां दोनों देशों के बीच 2019-20 में मुक्त व्यापार वार्ता का सिलसिला टूटा था जब डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ताच्युत होने से पहले इस विषय को लेकर वार्ता में काफी तनाव आ गया था और जिसे जारी रखने में निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। 

ट्रम्प द्वारा भारत को लुसियाना में 2019 के ‘मैमोरंडम आफ अंडरस्टैंडिंग’, जिसे एक वर्ष बाद रद्द कर दिया गया था, से अमरीका को ‘पैट्रोनैट इंडिया’ से 2.5 बिलियन डालर का निवेश मिल सकता था। अब ट्रम्प के शासनकाल में लुसियाना स्थित ड्रिफ्टवुड एल.एन.जी. प्लांट से अमरीकी तेल तथा एल.एन.जी. खरीदने के लिए अमरीका द्वारा भारत को उत्साहित किए जाने की संभावना है। लोकतांत्रिक मामलों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और मानवाधिकारों आदि के मामले में भी दोनों देशों के बीच कम समस्याएं पैदा होने की उम्मीद है जो मोदी सरकार को जो बाइडेन के शासनकाल में झेलनी पड़ीं। खालिस्तान और निज्जर-पन्नू मामलों में भी अमरीकी न्याय विभाग द्वारा टिप्पणियों में कमी आने तथा ट्रम्प द्वारा खालिस्तानी ग्रुपों पर सख्ती बरतने की आशा है। कनाडा के साथ इन दिनों चल रही भारत की कूटनीतिक खींचतान को लेकर भी वाशिंगटन की प्रतिक्रिया के बारे में चिंता करने की भारत को आवश्यकता शायद नहीं पड़ेगी। 

अपने पिछले कार्यकाल के दौरान डोनाल्ड ट्रम्प एक बार कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को कमजोर और बेईमान कह चुके हैं। हालांकि दोनों देशों के बीच संबंध दुनिया में सबसे करीबी बने हुए हैं परंतु ट्रम्प की इस विजय के बाद जस्टिन ट्रूडो में डर बढ़ गया है। कनाडा का 75 प्रतिशत निर्यात अमरीका पर निर्भर है। इसी के चलते ट्रूडो में टैरिफ को लेकर डर बढ़ा हुआ है और ट्रम्प द्वारा कनाडा का पक्ष नहीं लेने की संभावना है। यही नहीं, रूस के साथ संबंधों को लेकर भी नई दिल्ली को कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं है और इसराईल द्वारा गाजा और लेबनान के साथ युद्ध को लेकर भी परेशान होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 

यही नहीं, ट्रम्प यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध बंद करवाने की बात कह रहे हैं और वह इस दिशा में कोशिश भी कर रहे हैं। अब इस बात की भी संभावना जताई जा रही है कि शायद रूस-यूक्रेन युद्ध का खात्मा हो जाए जिसके लिए ट्रम्प ने कोई प्लान बनाया है। यदि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध विराम समझौता हो जाता है तो भारत के लिए थोड़ा और आसान हो जाएगा क्योंकि रूस तो पहले ही हमारा मित्र देश है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जहां डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा अमरीका के राष्टï्रपति बनने पर भारत के लिए प्रसन्न होने के अनेक कारण हैं, वहीं उनकी विजय से विश्व राजनीति में एक बड़ा बदलाव आने की उम्मीद राजनीतिक प्रेक्षक लगा रहे हैं। वहीं जहां ट्रम्प 2.0 के लिए नई दिल्ली को कुछ संतोष है, परन्तु सोशल मीडिया पोस्ट और व्यापार व टैरिफ पर सख्त बयानबाजी पर वह चिंतित भी है। सब से बड़ी समस्या तो यह है कि ट्रम्प की बातों पर विश्वास करना मुश्किल है। 

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