‘सन् 1885, कांग्रेस का जन्म, कारण और जन्मदाता’

Edited By Updated: 04 Sep, 2020 03:08 AM

1885 birth reason and birth of congress

कांग्रेस, जिसके पीछे उसका 135 साल का इतिहास खड़ा है, आज अवसादग्रस्त क्यों है? कांग्रेस ऐसा तो नहीं सोचती है कि उसकी बागडोर एक विदेशी महिला के हाथ है? कांग्रेस के नेता ऐसा विचार तो नहीं बना बैठे कि सोनिया, राहुल और प्रियंका ही कांग्रेस हैं तो हम कहां...

कांग्रेस, जिसके पीछे उसका 135 साल का इतिहास खड़ा है, आज अवसादग्रस्त क्यों है? कांग्रेस ऐसा तो नहीं सोचती है कि उसकी बागडोर एक विदेशी महिला के हाथ है? कांग्रेस के नेता ऐसा विचार तो नहीं बना बैठे कि सोनिया, राहुल और प्रियंका ही कांग्रेस हैं तो हम कहां हैं? शायद यह भय कांग्रेस को न सताता हो कि इस विशालकाय भाजपा की सत्ता तो अब केंद्र से जाएगी ही नहीं? भाजपा के पंद्रह करोड़ सदस्य, 18 राज्यों में मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति उनका, उपराष्ट्रपति उनका, प्रधानमंत्री उनका, लोकसभा का स्पीकर उनका, हमारे पास क्या है? ले दे के चार-पांच राज्य या पच्चास-एक लोकसभा सदस्य? हमने तो सारी उम्र राज करने की कुंडली बनाई थी। यह सारा दृश्य देख कांग्रेस विचलित क्यों है? 

सोचो तो सही 1885 में जब ए.ओ. ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना की थी तो उन्होंने कल्पना की थी कि कांग्रेस आएगी, अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई लड़ेगी, भारत को स्वतंत्र करवाएगी, देश पर राज करेगी, सुख भोग करेगी? और भी कि क्या वर्तमान में ऐसे अवसादग्रस्त हो जाएगी? यकीनन नहीं। उन्होंने तो कांग्रेस इसलिए बनाई थी कि सतत, जब तक सूरज-चांद रहेगा भारत वर्ष में अंग्रेजों का राज रहेगा।  कांग्रेस के इस जन्मदाता की सोच यह थी कि भारत पर अंग्रेज सिर्फ राजनीतिक विजेता बन कर न रहें बल्कि उनके धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों पर भी अंग्रेजों का राज हो जाए। ए.ओ. ह्यूम पहले भी अंग्रेज था, अंतिम समय में भी अंग्रेजी सोच का मालिक था। उसका सारा जोर इस बात पर था कि मैं भारत  में एक ऐसा संगठन खड़ा कर दूं जो ताउम्र अंग्रेज परस्त बना रहे। अगर मैं गलत नहीं तो आइए कांग्रेस के जन्मदाता ए.ओ. ह्यूम की पृष्ठभूमि जान लें :- 

ए.ओ. ह्यूम का पूरा नाम था एलन ऑक्टेवियन ह्यूम। उसका जन्म हुआ 2 जून 1829 को। वह ब्रिटिश पार्लियामैंट के सदस्य जोसेफ ह्यूम का बेटा था। बीस वर्ष में उसे बंगाल सिविल सॢवस में नौकरी मिली। वह 1849 से 1894 तक भारत में रहा। 26 वर्ष की उम्र में यू.पी. के इटावा जिले का डिप्टी कमिश्रर बना। 1857 के महान स्वतंत्रता संग्राम के वक्त वह इटावा का डी.सी. था। 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति हुई। इस क्रांति से डी.सी. ए.ओ. ह्यूम विचलित, भयभीत तथा उद्वेलित हो गया। उसने कुछ क्रांतिकारियों को पकड़ा और मार दिया। 18-19 मई को जब क्रांतिकारियों ने डी.सी. के आत्म समर्पण के हुक्म को न मानते हुए एक मंदिर में मोर्चाबंदी कर ली तो ए.ओ. ह्यूम अपने सहायक डेनियल को लेकर आगरा भाग गया। छ: महीने बाद पुन: इटावा आ गया। सात फरवरी, 1858 को स्वतंत्रता सेनानियों को क्रूरतापूर्वक ए.ओ. ह्यूम ने कत्ल कर दिया। 131 स्वतंत्रता सेनानियों के वध के बाद उनके घोड़े, तोपें, गोला-बारूद, हथियार छीन कर सरकारी कब्जे में कर लिए। 

ए.ओ. ह्यूम ने इस महान स्वतंत्रता संग्राम को महज ‘सिपाही-विद्रोह’ कहा। इन्हीं कारनामों के कारण 1860 में उसे ‘कम्पेनियन ऑफ दा बाथ’ के अवार्ड से पुरस्कृत किया गया। 1870 में उसे उत्तर-पश्चिम प्रांत का ‘कस्टम-कमिश्नर’ बनाया गया। 1870 से 1879 के बीच उसे पदोन्नत कर कृषि, राजस्व तथा वाणिज्य विभाग का प्रिंसिपल सैक्रेटरी बना दिया। एक सरकारी अधिकारी से हुए टकराव के कारण उसे हटा दिया गया। 1882 में उसे सेवामुक्त कर दिया। 31 जुलाई, 1912 को उसकी मृत्यु हो गई। 1894 में ए.ओ. ह्यूम इंगलैंड वापस चला गया था और वहीं उसने अंतिम सांसें लीं। 1912 में बांकीपुर कांग्रेस अधिवेशन में उसे भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की गई। बस एक उदाहरण मैं कांग्रेस जन्मदाता का देकर ए.ओ. ह्यूम से किनारा करता हुआ आज कांग्रेस की मौजूदा मनोदशा पर वार्तालाप करूंगा। एक मार्च, 1883 को कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातकों को उसने एक खुला पत्र लिखा कि, ‘मुझे 50 स्नातक अंग्रेजों के भविष्य के लिए चाहिएं जो मानसिक रूप से  अंग्रेजों का बीज बोते चलें।’ 

ए.ओ.ह्यूम ने 1884 में पहले ‘अंतरंग मंडल’ और फिर ‘हमारी पार्टी’ नामक संस्थाएं बनाईं। इनका मैनीफैस्टो क्या था? अंग्रेजी भाषा की निपुणता और ‘ब्रिटिश-क्राऊन’ के प्रति सच्ची निष्ठा। 28 दिसम्बर, 1885 को ह्यूम ने पूना में राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन बुलाया। यह अधिवेशन बम्बई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज के भवन में रखा गया। इसमें सर वेडरबर्न, न्यायाधीश जार्डाईन, कर्नल फिलिप, प्रोफैसर बर्ड्सवर्थ तथा बम्बई के कई गण्यमान्य नागरिकों ने भाग लिया। 28 सरकारी अधिकारी भी थे और कुल प्रतिनिधियों की गिनती थी 72। 

अधिवेशन का समापन ए.ओ. ह्यूम ने किया। उसने प्रतिनिधियों से 27 बार महारानी विक्टोरिया की जय के नारे लगवाए। स्वयं कहा कि वह महारानी के जूतों के फीतों के बराबर भी नहीं। कांग्रेस के इसी जन्मदाता को भारत में उभरते राष्ट्रवाद, धार्मिक नेताओं और गुरुओं के आंदोलनों से बेचैनी थी। इसी बेचैनी में ए.ओ. ह्यूम को ब्रिटिश शासन के तख्त के हिलने का डर लगा रहता था। अत: अंग्रेजों की वफादारी के लिए उसने इंडियन-नैशनल कांग्रेस की स्थापना की। पाठक मेरा आशय समझ गए होंगे? 

कांग्रेस के वर्तमान नेताओं के दिलों से ए.ओ. हयूम का भूत निकल ही नहीं रहा। स्वतंत्र सोच, जो किसी संगठन या राजनीतिक दल में संकट के समय पनपनी चाहिए, नहीं पनप रही। गांधी परिवार के प्रति उनकी वफादारी निकल ही नहीं रही। सोनिया गांधी की जय, राहुल गांधी जिंदाबाद, प्रियंका गांधी चिंगारी है इत्यादि-इत्यादि नारों से कांग्रेस बाहर ही नहीं आ रही। यह अंधी भक्ति है। पार्टी चलाने की सोच नहीं। ए.ओ. ह्यूम की वफादारी कांग्रेस नेता न दिखाएं, बल्कि कोई नई इंदिरा गांधी ढूंढें। ऐसी नेत्रियां -नेता ढूंढें जो इस संकट से कांग्रेस को उबार सकें। सोनिया गांधी एक भद्र महिला हैं, राहुल गांधी जंच नहीं रहे और प्रियंका गांधी अभी राजनीति में अपरिपक्व हैं। बेमेल, बेजोड़ राजनीति क्यों? जोर-जबरदस्ती भी क्यों? कांग्रेस का मुकाबला नरेन्द्र मोदी से है-नरेन्द्र मोदी से? मैं तो कांग्रेस के उन नेताओं के साहस की दाद देता हूं जिन्होंने हाल ही में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को पार्टी को पटरी पर लाने के लिए पत्र लिखा। 

पत्र की आंच भी सोनिया गांधी के वफादारों को नागवार लग रही है तो पार्टी भाजपा से कैसे लड़ेगी। कांग्रेस से निवेदन है कि अपने जन्मदाता की सोच त्यागे। यह ह्यूम की सोच कांग्रेस नेता अपने हित के लिए नहीं, एक प्रबुद्ध विपक्ष के लिए त्यागें।  भारत का लोकतंत्र कांग्रेस से मांग करता है कि अपना सशक्त नेता ढूंढे। यह 2020 है, 1885 नहीं। अंग्रेजी हकूमत नहीं, अपना राज है। सरकार भी अपनी, विपक्ष भी अपना। पर कांग्रेस लुढ़कती क्यों जा रही है? कांग्रेस अपने पैरों को  तलाशे। गांधी-परिवार तो आशीर्वाद के लिए हमेशा रहेगा ही। कांग्रेस संभले अन्यथा मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे झटके उसको दूसरे सूबों में लगने वाले हैं।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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