और ‘सुदृढ़’ हुई पी.एम.ओ. की टीम

Edited By ,Updated: 17 Sep, 2020 04:59 AM

and the strengthened pmo team of

प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) में 3 आई.ए.एस. अधिकारियों की नियुक्ति से पी.एम.ओ. और भी सुदृढ़ हो गया है। इन तीन अधिकारियों के नाम हैं मध्यप्रदेश कैडर के रघुराज रजिन्द्रन (बतौर डायरैक्टर), आंध्रप्रदेश कैडर की आम्रपाली कटा (उप सचिव) तथा उत्तराखंड...

प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) में 3 आई.ए.एस. अधिकारियों की नियुक्ति से पी.एम.ओ. और भी सुदृढ़ हो गया है। इन तीन अधिकारियों के नाम हैं मध्यप्रदेश कैडर के रघुराज रजिन्द्रन (बतौर डायरैक्टर), आंध्रप्रदेश कैडर की आम्रपाली कटा (उप सचिव) तथा उत्तराखंड कैडर के मंगेश घिल्डियाल (अवर सचिव)। इससे पहले रजिन्द्रन स्टील, पैट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस मंत्रालय में धर्मेन्द्र प्रधान के अधीन बतौर निजी सचिव कार्य कर चुके हैं। आम्रपाली कटा जोकि 2010 बैच की एक अधिकारी हैं, कैबिनेट सैक्रेटेरिएट (इंटैलीजैंस) में उप सचिव थीं जबकि घिल्डियाल उत्तराखंड सरकार के साथ कार्यरत थे। 

इन तीनों अधिकारियों की नियुक्तियां नौकरशाही में ऊंची उड़ान भरने वाली दिखाई देती हैं। स्पष्ट तौर पर उन्हें उनकी साफ छवि तथा रिकार्ड के बाद ही राष्ट्रपति स्टाइल वाले पी.एम.ओ. में चुना गया है। अब वे एक ऐसी टीम का हिस्सा होंगे जो कड़े निर्णयों पर अपना ध्यान केन्द्रित करेगी तथा बेहतर नतीजों की कामना करेगी। 

भ्रष्टाचार पर यू.पी. सरकार का अंकुश कितना स्पष्ट? 
उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उसकी जीरो टालरैंस पॉलिसी है। इसके लिए उसका आधार आंकड़े हैं। सूत्रों के अनुसार तीन वर्ष पहले सत्ता में आने के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 800 के करीब सरकारी अधिकारियों पर अनुशासन के कोड़े बरसाए हैं। हाल ही में यू.पी. सरकार ने 2 आई.पी.एस. अधिकारियों, अभिषेक दीक्षित (एस.एस.पी. प्रयागराज) तथा मनीलाल पाटीदार (महोबा के एस.पी.) को भ्रष्टाचार में संलिप्तता के लिए  बर्खास्त कर दिया। यू.पी. सरकार का आंकड़ा दावा करता है कि इसने 775 अधिकारियों से ज्यादा के खिलाफ अभी तक कार्रवाई की है। इनमें वे भी सेवानिवृत्त अधिकारी शामिल हैं जो भ्रष्टाचार में लिप्त थे। सरकार ने जबरन 325 अधिकारियों को सेवानिवृत्त किया।  इसके अलावा 450 बाबुओं को बर्खास्त तथा पदावनत कर दिया। 

मगर सूत्रों का कहना है कि योगी सरकार द्वारा भ्रष्ट बाबुओं पर अपनी पकड़ बनाने के बावजूद कुछ बर्खास्त अधिकारी फिर से प्रशासन में कुछ फायदेमंद पदों पर लगाए गए हैं। जे.बी. सिंह (डी.एम. गौंडा) जोकि जून 2018 में कुमार प्रशांत (डी.एम. फतेहपुर)के साथ बर्खास्त किए गए थे तथा उनके खिलाफ गेहूं की वसूली में अनियमितताओं को लेकर अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई थी।  मगर सिंह का बाबूशाही जंगलराज छोटी अवधि का था। 2019 में उन्हें इटावा के डी.एम. के पद पर नियुक्त किया गया। इसी तरह कुमार प्रशांत के साथ भी ऐसा ही हुआ। पिछले वर्ष उन्हें बदायंू का डी.एम. बनाया गया। यह जिला फतेहपुर से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। सूत्रों का  कहना है कि अन्य कई मिसालें हैं। कुछ बर्खास्त अधिकारियों की छोटी अवधि की पोस्टिंग के बाद उन्हें फिर से कुछ लुभावने पदों पर लगाया गया। 

रेलवे बोर्ड पुनर्गठन : सुधार या फिर नाश?
मोदी सरकार भारतीय रेलवे बोर्ड तथा सेवाओं के पुनॢनर्माण को आगे बढ़ा रही है। हाल ही में कैबिनेट ने शक्तिशाली रेलवे बोर्ड में सुधारों के लिए ग्रीन सिग्नल दे दिया। रेलवे बोर्ड रेलवे को शासित करता है। बोर्ड के पास अब 5 सदस्य होंगे। बोर्ड के वर्तमान चेयरमैन वी.के. यादव इसके पहले सी.ई.ओ. होंगे। गैर-कार्यकारी भूमिकाओं में बोर्ड के पास स्वतंत्र सदस्य भी होंगे। 

कैबिनेट ने सभी मध्य रेलवे सॢवस कैडरों को एक सिंगल भारतीय रेल प्रबंधन सेवा (आई.आर.एम.एम.) में शामिल करने का निर्णय लिया। जबकि अब यादव चेयरमैन तथा सी.ई.ओ. हैं, प्रदीप कुमार को आधारिक संरचना का सदस्य नियुक्त किया गया है। वहीं पी.सी. शर्मा को सदस्य नियुक्त किया गया है। ट्रैक्शन एवं रोलिंग स्टॉक, पी.एस. मिश्रा को सदस्य बनाया गया है। आप्रेशन्स एवं बिजनैस डिवैल्पमैंट की मंजुला रंगराजन को वित्तीय सदस्य नियुक्त किया गया है। रेलवे बोर्ड चेयरमैन अब कैडर को नियंत्रित करने वाला अधिकारी होगा जोकि डी.जी. (एच.आर.) की सहायता से मानव संसाधन के लिए जिम्मेदार रहेगा। 

रेलवे बोर्ड से अब तीन प्रमुख स्तर के पदों को खत्म कर दिया जाएगा और बाकी के पद रेलवे बोर्ड में सभी अधिकारियों के लिए खुले रहेंगे, फिर चाहे वे किसी भी सेवा से संबंधित हों। सरकार का कहना है कि इन सुधारों  से अंतर्विभागीय होड़ समाप्त हो जाएगी जिसके चलते दशकों से रेलवे की कुशलता तथा इसके विकास में बाधा पड़ रही थी। मगर लगता है ऐसे निर्णय से रेलवे के बाबू खुश नहीं हैं। उनकी पहली आपत्ति प्रस्तावित कैडरों के विलयन की है जो अवैज्ञानिक है तथा स्थापित मापदंडों के विरुद्ध है। उनकी मांग एक की बजाय दो अलग सेवाओं की है जिसके तहत सिविल सर्विसेज तथा इंजीनियरिंग विंगों को अलग रखा जाना चाहिए। सूत्रों के अनुसार विरोध की आवाज बड़बड़ा रही है तथा रेलवे यूनियनें इसके लिए प्रदर्शन की योजना को आगे बढ़ाने वाली हैं।-दिल्ली का बाबू दिलीप चेरियन 

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