क्या पश्चिम बंगाल में चुनावी खेल के नियम बदल दिए गए हैं

Edited By ,Updated: 23 Apr, 2021 12:59 AM

are the rules of the electoral game changed in west bengal

बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनावों की एक विशिष्टता टूटी टांग के साथ व्हील चेयर पर बैठी अकेली निडर महिला है। उसने हमेशा की तरह एक साधारण पहरावा पहन रखा है-उनकी पहचान बन चुकी सफेद साड़ी। उसने देश के 2 सर्वाधिक लोकप्रिय राजनीतिज्ञों तथा उनके अनुचरों को...

बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनावों की एक विशिष्टता टूटी टांग के साथ व्हील चेयर पर बैठी अकेली निडर महिला है। उसने हमेशा की तरह एक साधारण पहरावा पहन रखा है-उनकी पहचान बन चुकी सफेद साड़ी। उसने देश के 2 सर्वाधिक लोकप्रिय राजनीतिज्ञों तथा उनके अनुचरों को अकेले आड़े हाथों लिया है जिनमें केंद्रीय गृह मंत्री, भाजपा अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा भाजपा के कई बड़े नेता शामिल हैं।

उनकी टांग कैसे टूटी?  एक चुनावी रैली के बाद वह अपनी कार में सवार हो रही थीं जब भीड़ खतरनाक ढंग से उनके अत्यंत करीब पहुंच गई तथा कार के दरवाजे पर उस समय दबाव डाल दिया जब उनकी एक टांग भीतर थी। अपने समय के दौरान मैंने बहुत सी चुनावी रैलियों की देख-रेख करते समय प्रशंसकों या फिर महज दर्शकों के पागल हुजूम को अपने पसंदीदा व्यक्ति अथवा सितारे के करीब पहुंचने की कोशिश करते देखा है।

मुम्बई के उप नगर चेंबूर में ऐसे ही एक यादगारी अवसर पर एक चुनावी रैली के बाद इंदिरा गांधी को उनकी कार की तरफ ले जाया जा रहा था जब भीड़  उनका  अभिवादन  करने  के  लिए  दौड़  पड़ी। एक मोटी-तगड़ी महिला ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए कार तक पहुंचने का रास्ता बनाया और जहां प्रधानमंत्री बैठी थीं उस खिड़की से अपना सिर भीतर कर दिया। श्रीमती गांधी बहुत परेशान नजर आ रही थीं। उनके चेहरे पर गुस्सा स्पष्ट झलक रहा था।

उनकी प्रशंसक पर हाथ डालना प्रश्र से परे की बात थी क्योंकि वह महिला थी। मैं स्वीकार करता हूं कि  मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। लेकिन बंदोबस्त में जुटे एक जूनियर पुलिस अधिकारी ने अपनी कमीज पर लगी नेम प्लेट से पिन निकाला और उस महिला को चुभो दिया जिससे वह तुरन्त खिड़की से पीछे हट गई। कुछ इसी तरह की सोच दीदी को हड्डी की चोट से बचा सकती थी।

टूटी टांग तथा व्हील चेयर तीसरे कार्यकाल के लिए प्रचार में उनकी मदद कर सकती है जिससे सत्ता विरोधी लहर के नकारात्मक कारक समाप्त हो जाते हैं। न्यूनतम जरूरतों के साथ एक निष्काम कार्यकत्र्ता के तौर पर उनकी लोकप्रियता दूसरा लाभ है जो भारतीय जनता के बीच मोदी जी की लोकप्रियता को बेअसर कर देगा। राज्य के एक चुनाव में ममता बनर्जी जैसी एक स्थानीय देवी तुल्य महिला एक राष्ट्रीय देव तुल्य नरेन्द्र मोदी पर भारी पड़ती है। यही कारण है कि भाजपा को अपना अधिकतर जोर तथा अपने बड़े-बड़े नेताओं को एकमात्र महिला योद्धा का सामना करने के लिए बंगाल के चुनाव मैदान में झोंकना पड़ा।

और कूचबिहार में सीतलकुची  इलैक्शन बूथ के नजदीक सी.आई.एस.एफ. की गोलीबारी का क्या, जिसमें चार लोगों की जान चली गई? सी.आर.पी.एफ. तथा बी.एस.एफ. की तरह सी.आई.एस.एफ. एक अद्र्धसैनिक बल है जिस पर केंद्रीय गृह मंत्रालय का नियंत्रण है। सामान्य स्थितियों में अद्र्धसैनिक बल केवल राज्य सरकार के आवेदन पर तैनात किए जा सकते हैं।

गृह मंत्रालय में एक विशेष सचिव के नाते मैंने खुद निजी तौर पर जनवरी 1986 में विधानसभा चुनावों के संचालन के लिए राज्य सरकार की मदद हेतु असम में बी.एस.एफ. तथा सी.आर.एफ. की कई अद्र्धसैनिक   बटालियनों की तैनाती की निगरानी की थी। उन्हें नियम के अनुसार राज्य सरकार के निर्देशों के अंतर्गत काम करना होता है।

गृह मंत्रालय के बलों ने अवश्य पश्चिम बंगाल के डी.जी.पी. को रिपोर्ट की होगी। उनकी तैनाती तथा इस्तेमाल का मामला राज्य सरकार पर छोड़ देना चाहिए था। यदि अमित शाह के गृह मंत्रालय का प्रभार संभालने के बाद नियम बदल गए होंगे तो मुझे पता नहीं। जो मैंने वहां पढ़ा है उससे मुझे असुखद इसलिए महसूस हो रहा है कि इन बलों ने सीधे चुनाव आयोग को रिपोर्ट किया जैसा पहले कभी नहीं हुआ। राज्य प्रशासन ही कानून-व्यवस्था के लिए जिम्मेदार होता है।

मोदी जी तथा ममता जी के बीच गंभीर आरोप-प्रत्यारोप यह आभास देते हैं कि खेल के नियम बदल दिए गए हैं। उन्हें कब बदला गया? क्या  बदलने के निर्देश लिखित में दिए गए? क्या अद्र्धसैनिक बल राज्य सरकार के अधिकारियों के अंतर्गत संचालित हो रहे हैं या नहीं? यदि पुराने नियम अभी भी लागू हैं तो सी.आई.एस.एफ. को गोलीबारी के निर्देश उस स्थान पर तैनात मैजिस्ट्रेट व घटनास्थल पर मौजूद स्थानीय पुलिस अधिकारियों द्वारा दिए जाने चाहिएं थे।

और अंतत: एक दुर्भाग्यपूर्ण भावना जोर पकड़ रही है कि भारत का चुनाव आयोग अपनी चमक खो रहा है। इसे राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कड़ाई से निष्पक्ष चुनाव करवाने की पहचान प्राप्त थी। प्रशासनिक संगठनों पर भाजपा के हमले दुर्भाग्य से सीमाएं लांघ गए हैं विशेष तौर पर इस उत्कृष्ट संगठन के मामले में जिसे टी.एन. शेषण जैसे लोगों ने खड़ा किया तथा उनके बाद के लोगों ने इसका पालन-पोषण किया।

मेरा मानना है कि हमारी प्राचीन धरती की सूझवान जनता चुनावों के दौरान जरा अधिक, दरअसल बहुत अधिक शिष्टाचार की प्रशंसा करेगी। बंगाल में चुनाव प्रचार सभी सीमाएं लांघ गया है न केवल चुनावी प्रक्रिया समाप्त होने के दिनों की संख्या के मामले में।

-जूलियो रिबैरो
(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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