गैर-कानूनी चुनावी रोड शो पर लगे रोक

Edited By ,Updated: 09 Apr, 2024 05:26 AM

ban on illegal election road shows

पश्चिम दिल्ली में बैरिकेड में आग लगाकर खतरनाक तरीके से रील बनाकर वीडियो वायरल करने वाले प्रदीप ढाका को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। काले शीशे, प्रैशर हॉर्न, रंग-बिरंगी लाइट, अनधिकृत शख्स को गाड़ी चलाने की इजाजत और आर.सी. के उल्लंघन के लिए उस पर 61...

पश्चिम दिल्ली में बैरिकेड में आग लगाकर खतरनाक तरीके से रील बनाकर वीडियो वायरल करने वाले प्रदीप ढाका को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। काले शीशे, प्रैशर हॉर्न, रंग-बिरंगी लाइट, अनधिकृत शख्स को गाड़ी चलाने की इजाजत और आर.सी. के उल्लंघन के लिए उस पर 61 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया। प्रदूषण और ट्रैफिक जाम से शहरों को बचाने की कवायद के दौर में रोड शो का भद्दा चलन लोकतंत्र के लिए कालिख है। नियमों का उल्लंघन-रैलियों में भीड़ जुटाना और हजारों जनता को भाषण सुनने के लिए रोककर रखना नेताओं के लिए बड़ी चुनौती है। इसलिए सोशल मीडिया में चुनावी बढ़त के लिए रोड शो का शॉर्टकट सभी पार्टियों के लिए मुफीद हो गया है। 

पिछले आम चुनावों में गैर-कानूनी रोड-शो पर रोक लगाने के लिए हमने चुनाव आयोग को विधिक प्रतिवेदन दिया था। इस बारे में मेरी किताब ‘इलैक्शन ऑन रोड्स’ में विस्तार से चर्चा की गई है। संसद से कानून बनाने वाले सभी दलों के माननीय इस बार के आम चुनावों में भी रोड शो करके नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। रथ-यात्रा की शुरुआत आंध्र प्रदेश में एन.टी. रामाराव ने की थी जिसे अडवानी ने देशव्यापी विस्तार दिया लेकिन अब वह सभी दलों की चुनावी सफलता का ब्रह्मास्त्र बन गया है। 

नियमों का उल्लंघन : सीट बैल्ट, हैल्मेट और प्रदूषण प्रमाण-पत्र जैसे कई नियमों के उल्लंघन पर आम लोगों पर अरबों रुपए का जुर्माना लगता है लेकिन रोड शो में इस्तेमाल होने वाले वाहनों में रथों का बदलाव करने के लिए आर.टी.ओ. की मंजूरी नहीं ली जाती। करोड़ों रुपए के लग्जरी रथों का हिसाब-किताब उम्मीदवारों के चुनावी खर्च में भी शामिल नहीं होता। ई.डी. की गिरफ्तारी मामलों में अदालत में सरकार ने हलफनामा देकर कहा है कि कानून के सामने आम जनता और वी.आई.पी. नेता सभी बराबर हैं। ट्रैफिक नियमों के पालन की दुहाई देने वाले सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी नियमों की अनदेखी करके नागपुर में रोड शो कर रहे हैं। 

चुनावी अधिसूचना जारी होने के बाद सभी रैलियों और रोड शो के लिए निर्वाचन अधिकारी के तहत पुलिस और प्रशासन की इजाजत लेना जरूरी है। रोड शो के काफिले में 10 से ज्यादा गाडिय़ां नहीं हो सकतीं और इनका पूर्व विवरण चुनाव अधिकारी को देना जरूरी है। नियमों के तहत रोड शो के दौरान आधी सड़क में यातायात सुचारू रूप से जारी रहना चाहिए।  डी.एम.के. शासित तमिलनाडु के त्रिची में स्थानीय प्रशासन ने भाजपा अध्यक्ष नड्डा के रोड शो को मंजूरी नहीं दी।  उसके बाद हाईकोर्ट ने विशेष सुनवाई करके उनके रोड शो को मंजूरी दे दी। कांग्रेस, ‘आप’, टी.एम.सी. और दूसरे दलों के नेता भी बड़े पैमाने पर गैर-कानूनी तरीके से रोड शो कर रहे हैं। डीजल गाडिय़ों-बाइकों में चुनावी झंडे लेकर झूमने वाले कार्यकत्र्ता जान जोखिम में डालने के साथ कानून का खुला उल्लंघन करते हैं। दिल्ली के शास्त्री पार्क में एस.यू.वी. से स्टंट करके वीडियो वायरल करने वाले शख्स पर खतरनाक ड्राइविंग, यातायात को बाधित करने और डिजाइनर नम्बर प्लेट के इस्तेमाल पर पुलिस ने 12 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। कानून के अनुसार कार में सीट बैल्ट लगाकर बैठना जरूरी है। तो फिर रोड शो में रथ में ओवरलोडिंग करके हाथ हिलाने वाले वी.आई.पी. नेताओं के खिलाफ पुलिस और चुनाव आयोग सख्त कार्रवाई क्यों नहीं करते? 

वी.आई.पी. सुरक्षा दाव पर : सड़कों में लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रचार और जागरूकता अभियान पर सरकारें खरबों रुपए खर्च करती हैं। चुनावी लाभ के लिए वी.आई.पी. नेता जब यातायात नियमों का खुलेआम उल्लंघन करते हैं तो फिर आम लोगों के मन में कानून के प्रति सम्मान कमजोर होता है। प्रधानमंत्री को एस.पी.जी. की तो दूसरे बड़े नेताओं को जैड सुरक्षा मिली है। उसके अनुसार वी.आई.पी. नेताओं की रैलियों में विशेष जांच के साथ सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होते हैं। अखबारों में छपी खबरों के अनुसार दिल्ली पुलिस को चुनावों में रोड शो के दौरान वी.आई.पी. नेताओं पर हमले के इनपुट मिले हैं। इसलिए बेलगाम रोड शो से पक्ष और विपक्ष के वी.आई.पी. नेताओं की सुरक्षा में खिलवाड़ से देश हित दाव पर लग रहा है। कानून के सामने सभी बराबर हैं। प्रदूषण कम करने के लिए दिल्ली में डीजल गाडिय़ों को 10 साल पूरा होने पर चलने की इजाजत नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जुड़ी एस.पी.जी. की 3 बख्तरबंद गाडिय़ों की रजिस्ट्रेशन अवधि को बढ़ाने के लिए एन.जी.टी. ने मंजूरी नहीं दी। 

फूलमाला और चाय के दाम तय करने के चुनाव आयोग के रस्मी दावों के बावजूद लोकसभा के चुनावों में 50 हजार करोड़ से ज्यादा का काला धन खर्च होगा। सोशल मीडिया और ए.आई. के व्यापक इस्तेमाल के आगे भी चुनाव आयोग लाचार दिख रहा है लेकिन रोड शो को रोकने के लिए चुनाव आयोग के पास सभी शक्तियां और प्रशासनिक तंत्र है। दो साल पहले कोरोना के कहर से बचाने के लिए आम लोगों को लॉकडाऊन में कैद कर दिया गया था। उस दौर में  सोशल डिस्टैंसिंग और मास्क के नियमों का उल्लंघन करके नेताओं ने बड़ी रैलियां की थीं। उस विफलता के लिए मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग की कठोर भत्र्सना की थी। काले धन के इस्तेमाल और कानून की अवहेलना करने वाले नेताओं की वजह से चुनावों और मतदान में युवाओं की ज्यादा रुचि नहीं है। मतदान को बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग लोकसभा की 266 सीटों पर विशेष अभियान चला रहा है। मिजोरम में स्थानीय लोगों की पहल और चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से लाऊडस्पीकर और पोस्टरबाजी नहीं होती। सभी प्रत्याशी सभा में इकट्ठा होकर वोटरों से बातचीत करते हैं। 

रोड शो की तड़क-भड़क की बजाय संवाद के स्वस्थ चुनावी प्रचार को पूरे देश में लागू करने की जरूरत है। इससे काले धन के इस्तेमाल में कमी के साथ, मैरिट वाले नेताओं को बढ़ावा मिलेगा। इसके लिए कानून को रौंदने वाले वी.आई.पी. रोड शो पर सख्ती से कानून लागू करने की जरूरत है। इससे आम जनता के मन में चुनाव आयोग की साख और विश्वसनीयता बहाल होने के साथ मतदान के प्रति दिलचस्पी बढ़ेगी।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) 
 

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