मध्यस्थता व्यवस्था पर रिटायर्ड जजों का कब्जा चिंता का विषय

Edited By ,Updated: 04 Dec, 2023 04:52 AM

capture of arbitration by retired judges is a matter of concern

उप- राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आर्बिट्रेशन यानी मध्यस्थता प्रणाली में रिटायर्ड जजों के कब्जे पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों की घोषणा के बाद और लोकसभा चुनावों के पहले पुरानी पैंशन स्कीम को बहाल करने पर नए...

उप- राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आर्बिट्रेशन यानी मध्यस्थता प्रणाली में रिटायर्ड जजों के कब्जे पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों की घोषणा के बाद और लोकसभा चुनावों के पहले पुरानी पैंशन स्कीम को बहाल करने पर नए सिरे से बहस शुरू होगी। पैंशन में सुधारों के लिए यह भी बहस हो रही है कि जिन लोगों का रिटायरमैंट के बाद आमदनी का दूसरी जरिया है, क्या उनकी पैंशन को बंद कर देना चाहिए? इस लिहाज से उप-राष्ट्रपति द्वारा शुरू की गई बहस के कई महत्वपूर्ण पहलू हैं। धनखड़ साहब की बात को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है, क्योंकि वह उप-राष्ट्रपति और गवर्नर बनने के पहले सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट थे। 

धनखड़ जी के अनुसार पूरे पृथ्वी ग्रह या अन्य देशों में रिटायर्ड जजों का ऐसा कब्जा देखने को नहीं मिलता है। इसके पहले फरवरी में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने मध्यस्थों की नियुक्ति में विविधता की कमी पर चिंता जाहिर की थी। इस पूरे मामले पर स्वस्थ बहस होने से न्यायिक सुधारों के कई रास्ते खुल सकते हैं। भारत में आम जनता से जुड़े 5 करोड़ से ज्यादा मुकद्दमों के जल्द निपटारे का ठोस रोड मैप तो नहीं बना लेकिन बड़े उद्योगपतियों और विदेशी कंपनियों से जुड़े कमर्शियल विवादों को सुलझाने और जल्द समाधान के लिए 1996 में ऑबट्रेशन यानी मध्यस्थ प्रणाली का कानून बनाया गया। उस कानून में 2 साल पहले 2021 में अनेक बदलाव किए गए। उसके अनुसार अदालत के बाहर मध्यस्थता के माध्यम से विवादों को सुलझाने का यत्न होता है। ऐसे मामलों में सुनवाई के लिए रिटायर्ड जजों की भूमिका बढ़ गई है। 

हाईकोर्ट के जजों की रिटायरमैंट की उम्र 62 साल और सुप्रीम कोर्ट के लिए 65 साल है। रिटायरमैंट के बाद जज उस अदालत में मामले की पैरवी नहीं कर सकते। रिटायरमैंट के बाद जजों को पैंशन और भत्तों के साथ कई सुविधाएं भी मिलती हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बैंच ने कहा है कि रिटायरमैंट के बाद जजों को सुविधाएं मिलना, न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए जरूरी है। 

युवाओं और महिलाओं की अवहेलना : रिटायर्ड जजों की एडहॉक जज के तौर पर सेवाएं लेने के लिए कई बार पहल हुई लेकिन संवैधानिक अड़चन की वजह से इसे लागू नहीं किया जा सका। रिटायरमैंट के बाद जजों के गवर्नर या सांसद बनने पर अनेक विवाद उठते रहे हैं। रिटायरमैंट के तुरंत बाद ट्रिब्यूनल आदि के सदस्य और अध्यक्ष बनने के खिलाफ कानून मंत्री अरुण जेतली ने तल्ख टिप्पणी की थी। पिछले कई सालों से भारत में आर्बिट्रेशन यानी मध्यस्थता से जुड़े कानूनी काम बढऩे की वजह से रिटायर्ड जजों को पैंशन के अलावा आमदनी का दूसरा बड़ा जरिया मिल गया है। 

ऐसे मामलों में कई बार सरकार या सरकारी कंपनियां भी एक पक्ष होती हैं। रिटायर्ड जजों के आर्बिट्रेशन के साथ उनके बच्चे या नातेदार वकालत भी करते हैं। रिटायरमैंट के बाद आर्बिट्रेशन मामलों को लेने से कनफ्लिक्ट आफ इंटरैस्ट यानी हितों के विरोधाभास का मामला भी बनता है। संविधान के अनुसार रिटायरमैंट के बाद जज समकक्ष अदालत में बहस नहीं कर सकते लेकिन आर्बिट्रेशन मामलों में उनके फैसले के बाद हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में मुकद्दमा जाता है। इस लिहाज से देखें तो आर्बिट्रेशन में रिटायर्ड जजों की बढ़ती भूमिका के कारण हितों के विरोधाभास से संविधान की मूल भावना का उल्लंघन हो रहा है। 

जजों के तौर पर अनुभव, जजों की मान्यता और संबंधों की नैटवर्किंग की वजह से आर्बिट्रेशन का बहुतायत काम रिटायर्ड जजों के पास जा रहा है। उप-राष्ट्रपति और चीफ जस्टिस के अनुसार आॢबट्रेशन के काम के लिए रिटायर्ड जजों के अलावा युवा वकीलों, महिलाओं और शिक्षाविदों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए। चीफ जस्टिस ने जिला अदालतों में जजों की विविधता और महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर संतोष व्यक्त किया है, लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सभी सामाजिक वर्गों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है। 

कैदियों की रिहाई में रिटायर्ड जजों की भूमिका : चीफ जस्टिस ने कहा है कि लोकतंत्र में राज्यों को कमजोर वर्ग के लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए। डाक्टर को गांव में सेवा करने के लिए कहा जाता है तो फिर पैंशन पाने वाले जजों और सरकारी अधिकारियों को आमदनी का दूसरा जरिया दिए जाने पर उनकी पैंशन को सही साबित करने के लिए भूमिका निर्धारित होनी चाहिए। कानून मंत्री मेघवाल ने कहा है कि ‘वी केयर/गिव बैक’ प्रोजैक्ट के तहत युवा वकीलों को वरिष्ठ और बूढ़े वकीलों की देख-रेख करनी चाहिए। उसी तर्ज पर रिटायर्ड जजों को जेलों में बंद बेगुनाह कैदियों की रिहाई में विशेष भूमिका निभानी चाहिए। इससे उन्हें मिल रही पैंशन जस्टिफाई होने के साथ, समाज और देश निर्माण में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। 

आर्बिट्रेशन के मामलों में रिटायर्ड जजों की भूमिका बढऩे की वजह से कुछ परिवारों का न्यायपालिका में वर्चस्व बढऩे का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए इस बहस के साथ जजों की नियुक्ति प्रणाली यानी कॉलेजियम सिस्टम में सुधार का सिलसिला भी शुरू हो सकता है। रिटायर्ड जजों के रसूख के आगे अन्य योग्य और युवा वकीलों को नजरअंदाज करना कानून के शासन और संविधान की समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!