शह और मात का खेल है शतरंज

Edited By ,Updated: 09 Aug, 2022 04:08 AM

chess is a game of check and check

बंगाली निर्देशक की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ 1977 में सुपरहिट रही। इसके बाद चैस खेल का क्रेज लोगों में बढ़ गया मगर हाल ही में नैटफ्लिक्स पर रिलीज ‘द क्वींज गैमबिट’ ने विश्वव्यापी तौर

बंगाली निर्देशक की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ 1977 में सुपरहिट रही। इसके बाद चैस खेल का क्रेज लोगों में बढ़ गया मगर हाल ही में नैटफ्लिक्स पर रिलीज ‘द क्वींज गैमबिट’ ने विश्वव्यापी तौर पर एक अलग ही दृष्टिकोण रखा। यह कहानी 1950 के दशक की एक यतीम बच्ची पर आधारित है जिसमें दर्शाया गया है कि किस तरह उसने इंटरनैशनल ग्रैंड मास्टर को चुनौती दी और जीत हासिल की। ‘चैस’ गेम को नकारने वालों ने भी इसके प्रति आकर्षण पाया और अमरीका और दूसरे देशों में इस खेल के बारे में एक बड़ा उछाल आया। ‘द क्वींज गैमबिट’ में बताया गया है कि किस तरह इसमें रणनीति शामिल होती है। किसी भी वरिष्ठ खिलाड़ी के लिए यह अभी भी काफी पसंदीदा शो है। 

शह और मात का खेल ‘चैस’ सभी उम्र के लोगों को भाता है तथा यह कहीं भी और किसी भी वक्त खेला जा सकता है। कोविड-19 के बाद यूट्यूब तथा ट्विच स्ट्रीम्स पर यह खेल ऑनलाइन मशहूर हो गया है। हाल के दिनों में आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस एक क्रांतिकारी कदम है जिसने अप्रत्याशित तौर पर ‘चैस’ के खेल में बदलाव ला दिया।  इसलिए यह कोई हैरानी वाली बात नहीं थी। चेन्नई के वर्तमान इंटरनैशनल चैस ओलिम्पियाड ने इस वर्ष वैश्विक तौर पर इस खेल के बारे में क्रेज उत्पन्न किया है। 

पहले से ही चेन्नई भारत की एक चैस राजधानी है क्योंकि इसने दशकों से युवा प्रतिभा जिसमें प्रसिद्ध विश्वनाथन आनंद भी शामिल हैं, को प्रोत्साहित किया। 73 ग्रैंड मास्टर्स में से तमिलनाडु के पास भारत के 40 प्रतिशत कुल ग्रैंड मास्टर्स हैं। पारंपरिक तौर पर चेन्नई अनेकों चैस क्लबों की जन्मस्थली है। 2012 में तमिलनाडु सरकार के निर्णय ने सरकारी स्कूलों में चैस को अनिवार्य खेल बना दिया जिससे राज्य में चैस की वृद्धि हुई। 

चैस का खेल पर्दे पर क्यों आया? रूस ने 2022 के ओलिम्पियाड को आयोजित करना था मगर यूक्रेन पर हमले के कारण यह बदल गया। आल इंडिया चैस फैडरेशन के समर्थन के बाद तमिलनाडु सरकार ने इसके आयोजन को लेकर अपनी दावेदारी पेश की और जीत प्राप्त की। चेन्नई में वर्तमान ओलिम्पियाड में 188 देशों के करीब 2000 खिलाड़ी  भाग ले रहे हैं। विश्व के चुनिंदा खिलाड़ी जैसे मैगनस कार्लसन, फैबियानो कैरियुआना, वैसले सो, मारिया मूजीचक महाबलिपुरम में इकट्ठे हुए हैं। भारत के शीर्ष रैंक के खिलाड़ी पी. हरिकृष्णन, चैस का अजूबा आर.प्रग्गानंधा तथा टॉप सीड कोनेरू हम्पी भी इसमें भाग ले रहे हैं। 

भारत में अनेकों ही चैस क्वींस हैं। 1974 में फैडरेशन ने वुमंस मास्टर चैम्पियनशिप को प्रस्तावित किया। कोनेरू हम्पी देश की सबसे प्रतिष्ठित महिला खिलाड़ी हैं और विश्व में चौथे नम्बर पर हैं। महिला की ‘ए’ टीम में हरिका द्रोणावली हैं जोकि गर्भवती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह ओलिम्पियाड की शुरूआत की और कहा कि इसके आयोजन के लिए चेन्नई बिल्कुल फिट बैठता है। इतिहास का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘तमिलनाडु में विभिन्न मंदिर विभिन्न खेलों की मूर्तियों को प्रदर्शित करते हैं। यहां तक कि आप तिरुवरू में एक मंदिर चतुरंगा वल्लभनार्थ भी पाएंगे। यह भी माना जाता है कि देवताओं ने भी राजकुमारियों के साथ चैस का खेल खेला। इसलिए यह स्वाभाविक है कि तमिलनाडु का चैस के खेल के साथ एक ऐतिहासिक जुड़ाव है।’’ 

‘चैस’ संस्कृति का शब्द है जिसे ‘चतुरंगा’ कहते हैं जो सेना के 4 वर्गों रथ, हाथी, पैदल सेना तथा तोपखाने का उल्लेख करता है। ऐतिहासिक तौर पर चैस की शुरूआत भारत से हुई, उसके बाद इसका फैलाव यूरोप तक हो चुका है। इसका उल्लेख महाभारत तथा रामायण में भी मिलता है। दस्तावेज दर्शाते हैं कि चैस का खेल तमिलनाडु में करीब 1500 वर्ष पूर्व भी प्रख्यात था।

एक अन्य कहानी के अनुसार रावण ने भगवान राम के साथ युद्ध होने से अपना ध्यान भटकाने के लिए पहली बार शतरंज के खेल को इजाद किया। रावण अपनी पत्नी के साथ यह खेल खेलता था। एक अन्य कहानी के अनुसार भारत के एक बेनाम सुल्तान ने अपने मनोरंजन के लिए इस खेल का इस्तेमाल किया। एक गरीब आदमी ने चैस से मिलता-जुलता खेल उस सुल्तान को दिखाया और जीत में प्रत्येक स्क्वायर के लिए चावल के दानों की मांग की और आखिरकार अमीर बन गया। 

खोजकत्र्ताओं का कहना है कि यह एक जटिल खेल है जिसमें योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ा जाता है। इससे दिमागी कसरत भी होती है। लक्ष्य पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए यह एक बेहतर खेल है। कोविड के बाद कइयों ने दिमागी खेल खेलना शुरू किया और चैस उसमें से एक है। वर्तमान ओलिम्पियाड में भारत एक गंभीर दावेदार है जो अमरीका के एकदम पीछे है।-कल्याणी शंकर
  

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