Edited By ,Updated: 03 Aug, 2022 06:04 AM
दो साल पहले 12वीं पास रामू मेरे पास नौकरी मांगने आया। बातचीत में वह काफी तेज और प्रतिभाशाली लगा। मैंने उससे पूछा, ‘‘तुम क्या करोगे?’’ उसने कहा, ‘‘कुछ भी।’’ क्या कम्प्यूटर
दो साल पहले 12वीं पास रामू मेरे पास नौकरी मांगने आया। बातचीत में वह काफी तेज और प्रतिभाशाली लगा। मैंने उससे पूछा, ‘‘तुम क्या करोगे?’’ उसने कहा, ‘‘कुछ भी।’’ क्या कम्प्यूटर चला सकते हो? उसने कहा,‘‘नहीं।’’ क्या फोन कॉल कर सकते हो? ‘‘हां कर सकता हूं, अगर मुझे सिखाया जाए’’ उसने कहा। ‘‘क्या टाइपिंग सीख सकते हो?’’ ‘‘जरूर लेकिन मेरे पास फीस के पैसे नहीं हैं, पर मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है क्योंकि मुझे हर हाल में अपने परिवार की मदद करनी है।’’ मैंने रामू को नौकरी दी, उसे टाइपिंग सिखाई, आज रामू करियर में काफी आगे बढ़ चुका है!
यह अकेले रामू की ही कहानी नहीं है, बल्कि ऐसे बहुत से रामू हैं जो 12वीं तक की स्कूली शिक्षा के बाद परिवार के तंग आॢथक हालात में आगे पढ़ाई के लिए कॉलेज नहीं जा सकते और पढ़ाई बीच में छोडऩे पर उन्हें रोजगार मिलना इसलिए मुश्किल होता है क्योंकि उनके पास कोई कौशल नहीं होता। जरूरत इस बात की है कि एल.के.जी. से 12वीं तक स्कूल की 14 साल की पढ़ाई में से कम से कम 4 साल की पढ़ाई के साथ युवाओं को कौशल का प्रशिक्षण जरूरी हो। पर स्कूलों में अभी इसकी व्यवस्था नहीं है। इसी कमी को हमारे देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन.ई.पी.) संस्थागत करने जा रही है।
एन.ई.पी.-2020 का विजन है कि 2025 तक करीब 50 प्रतिशत विद्यार्थियों को स्कूली शिक्षा के साथ स्किल का अनुभव प्राप्त होगा। प्रत्येक बच्चे से यह अपेक्षा की जाती है कि वह कम से कम एक स्किल सीखे और कई अन्य व्यवसायों के बारे उसे पता हो। व्यावसायिक और अकादमिक शिक्षा के बीच अंतर खत्म करने की कोशिश नई शिक्षा नीति में की जा रही है। अपनी पसंद के विषयों को कभी भी बदलने के विकल्प की अनुमति देते हुए 12वीं कक्षा की पढ़ाई के साथ स्किल ट्रेनिंग बच्चों का चहुंमुखी विकास सुनिश्चित करने में मददगार होगी।
स्कूली छात्रों के लिए साल में कम से कम 30 दिन बगैर बस्ते के हों और इस दौरान उन्हें पसंद के स्किल की ट्रेनिंग दी जाए। 9वीं से 12वीं कक्षा तक 4 साल की स्कूली शिक्षा के दौरान अनुभवात्मक व्यावसायिक शिक्षा के लिए स्कूलों में ‘स्किल लैब’ स्थापित की जाएंगी, जिनका उपयोग स्कूल मिलजुल कर कर सकेंगे। कहने की जरूरत नहीं कि एन.ई.पी.-2020 स्कूली शिक्षा को युक्तिसंगत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, लेकिन कुछ सुधारात्मक उपाय इसमें चमत्कार कर सकते हैं। रामू की कहानी बहुत कुछ बताती है। सबसे पहले, उसे पढ़ाई बीच में इसलिए छोडऩी पड़ी क्योंकि उसे अपने गरीब परिवार की मदद करनी थी। उसने मुझे बताया कि उसके पिता उसकी उच्च शिक्षा का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं हैं।
दूसरा, 12वीं तक की पढ़ाई के लिए स्कूल में 14 वर्ष बिताने के बावजूद उसे रोजगार के लिए कोई योग्य ट्रेनिंग नहीं मिली। उससे यह पूछने का प्रयास कभी नहीं किया गया कि क्या वह अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहेगा और यदि हां, तो इसके लिए उसे मदद या कमाई कहां से होगी। कनाडा, आस्ट्रेलिया या अमरीका की तरह विद्यार्थियों द्वारा उच्च शिक्षा पाने के लिए साथ ही कमाई करना हमारे देश में अभी भी एक दूर का सपना है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
यह बिल्कुल संभव है और आसानी से लागू किया जा सकता है। मैं सिर्फ एक अहम सिफारिश करूंगा। कक्षा 9 से 12 तक के सभी छात्रों के लिए एक विषय की तरह एक स्किल सब्जैक्ट अनिवार्य करें। उदाहरण के लिए, यदि कोई कक्षा 9 में इलैक्ट्रीशियन के रूप में स्किल चुनता है, तो उसे कक्षा 10 या 12 के पूरा होने तक इस स्किल में ट्रेनिंग लेनी होगी। इसके लिए समाज के कमजोर वर्ग के प्रत्येक छात्र को भी 500 रुपए मासिक वजीफा दिया जाए और औजारों की किट भी। यह निश्चित रूप से हमारे देश और राज्यों के खजाने पर थोड़ा अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालेगा, लेकिन लंबी अवधि में इससे चमत्कार होगा। यदि कोई छात्र 10वीं से 12वीं कक्षा के दौरान भी व्यावसायिक विषय जारी रखना चाहता है, तो उसे प्रति माह 1000 रुपए वजीफा दिया जाना चाहिए।
भारत जैसे विशाल देश में, जहां बड़ी संख्या में विद्यार्थी 12वीं की परीक्षा पास करते हैं, लेकिन उनमें से केवल 30 प्रतिशत बच्चे उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज या यूनिवॢसटी जा पाते हैं। हमें उन्हें प्रमाणित और उपयोगी मांग के मुताबिक किसी स्किल से लैस करने की आवश्यकता है। रोजगार योग्य कौशल की कमी के कारण ही ऐसे बच्चे असंगठित क्षेत्र के कामगार बन जाते हैं जहां उन्हें अपनी जरूरतें पूरी करने और एक अच्छा वेतन पाने की बजाय तमाम तरह के शोषण का शिकार होना पड़ता है। ऐसे युवाओं को कौशल के माध्यम से मुख्यधारा में आकर असंगठित क्षेत्र के इस दुष्चक्र से बाहर निकलना होगा।
यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यू.डी.आई.एस.ई.) की रिपोर्ट के अनुसार, 2020-21 में 25.38 करोड़ छात्रों को पढ़ाने वाले 15 लाख से अधिक स्कूलों के साथ हमारा देश दुनिया के सबसे बड़े शिक्षा नैटवक्र्स में से एक है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारे बच्चों में कौशल विकसित करने का अर्थ है उन्हें उद्यमिता के लिए भी प्रोत्साहित करना। वे आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस, ड्रोन, इंटरनैट ऑफ थिंग्स (आई.ओ.टी.), रियल टाइम एनालिटिक्स और इसी तरह की उभरती हुई तकनीकें सीखें, इसके लिए हमें अपने युवाओं को मानसिक रूप से तैयार करना होगा। आने वाले वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था 10 ट्रिलियन डॉलर होने का सपना पूरा करने के लिए हमें व्यावसायिक शिक्षकों की भर्ती के साथ देश भर के हर हाई स्कूल में कौशल केंद्र स्थापित करने होंगे। (लेखक ओरेन इंटरनैशनल के सह-संस्थापक और एम.डी., नैशनल स्किल डिवैल्पमैंट कॉर्पोरेशन के ट्रेनिंग पार्टनर हैं।)-दिनेश सूद