वैश्विक वित्तीय सुनामी और हम

Edited By ,Updated: 15 Mar, 2023 06:31 AM

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जब यह महीना अर्थात मार्च शुरू हुआ तो अमरीकी सिलिकॉन वैली बैंक के सी.ई.ओ. ग्रेगरी बेकर अपने संगठन की तरफ  से ‘बैंक आफ  द ईयर’ का पुरस्कार लेने के लिए लंदन गए थे।

जब यह महीना अर्थात मार्च शुरू हुआ तो अमरीकी सिलिकॉन वैली बैंक के सी.ई.ओ. ग्रेगरी बेकर अपने संगठन की तरफ  से ‘बैंक आफ  द ईयर’ का पुरस्कार लेने के लिए लंदन गए थे। 220 बिलियन डालर के मूल्य वाला यह बैंक दुनिया में सबसे तेज बढऩे वाले बैंकों में माना जाता था। अमरीकी बैंकों में इसका नंबर 16वां था और चीन, भारत, डेनमार्क, जर्मनी, इसराईल और स्वीडन समेत सारे देशों में इसके सांझा उपक्रम चल रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह कि दुनिया भर के स्टार्ट अप उद्यमियों का यह दुलारा बैंक था।

वे यहां से न सिर्फ पूंजी और उधार लेते थे, बल्कि अपनी रकम भी जमा करते थे। पर हफ्ता नहीं लगा, बैंक भरभरा कर गिर गया। पिछले बुध और बृहस्पति अर्थात 8 और 9 मार्च को बैंक के सामने अपना पैसा मांगने वालों की लाइन लग गई और शुक्र को बैंक ने हाथ खड़े कर दिए। सरकार सक्रिय हुई और रैगुलेटरों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। अमरीकी वित्त मंत्री ने इतवार को कहा कि यह ज्यादा मुश्किल स्थिति नहीं है और हम कोई बड़ा बेलऑऊट पैकेज नहीं देने जा रहे, तो मामला और बिगड़ा।

फिर राष्ट्रपति बाइडेन को सामने आकर आश्वासन देना पड़ा कि सबका पैसा सुरक्षित है। लेकिन सोमवार आते ही एक और अमरीकी सिग्नेचर बैंक धराशायी हो गया। फिर तो दुनिया भर के वित्तीय बाजार में भूचाल आया हुआ है। एक ओर अमरीका में एक के बाद एक बैंक धराशायी हो रहे हैं, दूसरी ओर दुनिया भर के शेयर बाजार हलचल से परेशान हैं। भारत के बाजार का मुख्य सूचकांक सैंसेक्स तो करीब 2000 अंक गिरा लेकिन चीन वगैरह में तेजी भी दिखी। तेल की कीमतें गिर रही हैं और सोना चढऩे लगा है।

कई देशों में ज्यादा हलचल है (क्योंकि वहां की पूंजी का जुड़ाव इन बैंकों से था)। इंगलैंड का सिलिकॉन वैली बैंक तो एच.एस.बी.सी. बैंक ने 1 पाऊंड में खरीदकर अपने जमाकत्र्ताओं को आश्वस्त किया कि उनका पैसा सुरक्षित है। भारत में भी सूचना तकनीक राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने (क्योंकि बाकी सीनियर लोग राजनीतिक युद्ध में लगे हैं) कहा कि हमारे स्टार्टअप उद्योगों पर इसका न्यूनतम असर होगा। उल्लेखनीय है कि देश के करीब 200 ऐसे उद्योगों का इस बैंक में खाता है और जाने किस भरोसे एक निजी बैंक ने इन खातों को अपने यहां लाने की मुहिम भी शुरू कर दी है। लेकिन दुनिया में ऐसा नहीं है।

ब्रिटेन में 250 ऐसी कंपनियों ने प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को पत्र लिखकर चौकस रहने और उन्हें बचाने की अपील की है। यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि अगले एक महीने में दुनिया भर की करीब 10,000 स्टार्टअप कंपनियों, जिनका आकार-प्रकार ही छोटा नहीं है, वित्तीय बल भी कम है, को जब अपने कर्मचारियों को वेतन देना होगा, तब संकट असली रूप में दिखेगा। करीब एक लाख लोगों का रोजगार भी प्रभावित होगा। कहा जाने लगा है कि 2008 के सब-प्राइम संकट के बाद यह दुनिया का सबसे बड़ा बैंकिंग संकट है।

अमरीकी रैगुलेटरों ने सब प्राइम संकट और लेहमैन ब्रदर्स जैसी विशाल वित्तीय संस्था के डूबने से कोई सबक नहीं लिया। इस बार का संकट इस मायने में उससे बड़ा और ज्यादा डरावना है कि इस बार कुछ कमजोर वित्तीय उपकरणों की खराब रेटिंग या सौदे भर का मामला नहीं है। सिलिकॉन वैली बैंक के हाथ तो फैडरल रिजर्व के बांड के सौदे में जले हैं, जिनकी दुनिया भर के वित्तीय बाजार में सबसे ऊंची साख रही है। हम जानते हैं कि हाल के दिनों में अपने यहां की मुद्रास्फीति और आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए अमरीकी फैडरल रिजर्व ने कई किस्तों में अपने बांड जारी किए और सूद की दर को शून्य से बढ़ाकर 5 फीसदी किया।

इसका अमरीका समेत दुनिया भर में असर हुआ। हमारे यहां भी रेट बढ़े। सिलिकॉन वैली के मैनेजरों ने अपने जमाकत्र्ताओं की पूंजी को इन बांडों में लगाकर अच्छा रिटर्न कमाना चाहा क्योंकि अमरीका के लिए 5 फीसदी का सुनिश्चित रिटर्न काफी अच्छा माना जाता है। पर जब बांड का बाजार गड़बड़ लगा और अपनी जरूरत हुई तो उन्होंने अपने बांडों को भुनाने के लिए बाजार की शरण ली। इसमें भारी घाटा आ गया। संकट यहीं से शुरू हुआ। लेकिन अकेले इस सौदे से इतना बड़ा बैंक, जिसे ‘बैंक आफ द ईयर’ का पुरस्कार देने के लिए चुना जाए, ध्वस्त हो जाए तो उसके सारे कामकाज पर भी सवाल उठाने चाहिएं।

लेकिन इससे बड़ा सवाल अमरीकी रैगुलेटरों पर उठता है, जिनकी निगरानी में फैडरल रिजर्व ने बांड जारी किए, बांड की मात्रा और सूद की दर तय की। आज अगर सिलिकॉन बैंक को घाटा हुआ है तो इसका मतलब अकेले उसी का घाटा नहीं है। ये बांड जिस-जिस के पास होंगे सबको घाटा हो चुका है। अगर बाइडेन सरकार कहती है कि वह किसी का नुक्सान न होने देगी तो क्या बांड के साथ यही बात लिखित रूप में नहीं कही गई है। और अगर वह किसी को घाटा नहीं होने देगी और इस संकट को निपटाने में करदाताओं का पैसा भी नहीं लगाएगी तो कौन-सा जादू करेगी। असल में आज के वित्तीय प्रबंध को यही जादूगरी भारी पड़ रही है। -अरविन्द मोहन

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