‘शानदार भवनों से जरूरी हैं श्रेष्ठ सांसद’

Edited By ,Updated: 25 Dec, 2020 03:43 AM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अक्सर बड़ी-बड़ी संकल्पनाओं का जुनून सवार रहता है जो सामंतकालीन भारत की तरह चमकदार हों। लेकिन उनकी यह संकल्पनाएं देश में गरीबी की हकीकत से दूर हैं। हाल ही में नए संसद भवन के नींव पत्थर समारोह के दौरान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अक्सर बड़ी-बड़ी संकल्पनाओं का जुनून सवार रहता है जो सामंतकालीन भारत की तरह चमकदार हों। लेकिन उनकी यह संकल्पनाएं देश में गरीबी की हकीकत से दूर हैं। हाल ही में नए संसद भवन के नींव पत्थर समारोह के दौरान उन्होंने इसके बारे में पूरे जोश के साथ बात की और कहा कि यह भवन भारत की अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करेगा। सैद्धांतिक रूप से कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री के भविष्य के सपने पर सवाल नहीं उठाएगा। यदि सब कुछ सही रहा तो यह सपना अक्तूबर 2022 में पूरा होगा जब देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर संसद का शीतकालीन सत्र होगा। 

मुझे खेद इस बात का है कि हमारे राजनेताओं में इस बात को लेकर स्पष्ट दूरदर्शिता का अभाव है कि देश के कीमती संसाधनों को जनता की बेहतरी के लिए किन प्राथमिकताओं पर खर्च किया जाए। भविष्य के लिए बड़े सपने गरीबों में आशा की किरण जरूर जगाते हैं। हम इस हकीकत को जानते हैं कि बड़ी-बड़ी धारणाओं से गरीबी और अशिक्षा को नहीं मिटाया जा सकता। टैलीविजन पर चेहरे चमकते जरूर हैं लेकिन हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। किसी भी मामले में, वैश्वीकरण के लिए गरीबी खराब प्रचार है। इसका न तो वैश्वीकरण किया जा सकता है और न ही इसकी मार्कीटिंग की जा सकती है। इस समस्या से हमारे शासकों को मजबूती से निपटना होगा। क्या वे इसके बारे में गंभीर हैं? ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के बावजूद मुझे इसमें संदेह है। 

राजनेताओं और उनके करीबियों की गरीबी तो दूर हो गई है। गरीब अब भी पहले जैसी स्थिति में ही हैं। ऐसा लगता है कि इस संबंध में अब लोकतंत्र को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। यह अब लोगों का, लोगों द्वारा और लोगों के लिए नहीं है। अब लोकतंत्र राजनेताओं का, राजनेताओं द्वारा और राजनेताओं के लिए और उनके साथियों के लिए है। यह कहना सही होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक राजनीतिक बहाव का हिस्सा रही है जिसे हम राष्ट्र के सामान्य प्रशासन में देखते हैं। विकास के प्राथमिक उद्देश्य हमेशा लोकलुभावनवाद में खो जाते हैं। ‘टारगेट छूट जाते हैं। मुश्किल फैसलों से बचा जाता है। हमारे जैसे नरम देश हमेशा आसान विकल्पों को चुनते हैं। आसान विकल्प और गलत प्राथमिकताएं आम आदमी के सपने को चकनाचूर कर देती हैं। 

एक ठेठ गांव का उदाहरण लीजिए। इसकी बुनियादी जरूरतें क्या हैं? एक स्वास्थ्य केंद्र, एक प्राथमिक विद्यालय, वित्तीय शक्ति के साथ एक ग्राम पंचायत, एक बाजार तक सभी मौसमों में पहुंच, एक व्यवहार्य संचार प्रणाली और उचित पेयजल आपूर्ति। मैं यह अवश्य कहूंगा कि मोदी शासन में इनमें से कुछ क्षेत्रों में काफी उपलब्धियां हासिल कर ली गई हैं लेकिन फिर भी हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है। गलत प्राथमिकताओं और विकृत सोच के कई उदाहरण हैं जो आम तौर पर बेकार और अनुत्पादक व्यय का कारण बनते हैं। इससे ज्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है कि विकास की प्राथमिकताएं राजनीतिक नफा-नुक्सान को देखते हुए और स्वयं के लिए धन बनाने के आधार पर तय की जाती हैं। गरीबी और असमानता को सबसिडी देकर कम नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसके लिए लोगों को आत्मनिर्भर बनाना होगा। इसके लिए सबसे गरीब लोगों को कमाने और उनके लिए लाभकारी रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हो। 

महात्मा गांधी लोगों के परिवर्तन के लिए कहते थे। हालांकि, भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए थे। अभी भी बहुत देर नहीं हुई है। इसके लिए, हम अभी भी इस बात पर जोर दे सकते हैं कि जो व्यक्ति हमारे ऊपर शासन करने की इच्छा रखते हैं, उनके पास कुछ कौशल, सिद्धांत और गुण होने चाहिएं और उन्हें लोगों की सेवा के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। यह नए संसद भवन के बजाय हमारे सांसदों और विधायकों के बीच गुणात्मक सुधार ला सकता है। 

वास्तव में, संसद के दोनों सदनों में हमारे सांसदों के प्रदर्शन को देखकर, मुझे लगता है कि हमारे नेताओं को सांसदों के प्रदर्शन में सुधार के लिए काम करना चाहिए। शानदार संसद भवन के बजाय यह मोदी सरकार की उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। अच्छी श्रेणी के सांसद वर्तमान और भावी भारत में काफी बदलाव ला सकते हैं। आम आदमी की मूलभूत आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उन्हें अभी लंबा सफर तय करना है।-हरि जयसिंह
 

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