साहित्य जगत को गुलजार करते ‘गुलजार’

Edited By ,Updated: 06 Apr, 2024 05:51 AM

gulzar  making the literary world buzz

गुरु नानकदेव यूनिवर्सिटी ने इस बार जिन महान शख्सियतों को प्रतिष्ठित आनर्ज काजा डिग्रियां  देने का निर्णय लिया है, उनमें बालीवुड के प्रख्यात लेखक गुलजार (सम्पूर्ण सिंह कालड़ा) तथा प्रो. डा. योगेश कुमार चावला शामिल हैं। इन दोनों को यूनिवर्सिटी की...

गुरु नानकदेव यूनिवर्सिटी ने इस बार जिन महान शख्सियतों को प्रतिष्ठित आनर्ज काजा डिग्रियां  देने का निर्णय लिया है, उनमें बालीवुड के प्रख्यात लेखक गुलजार (सम्पूर्ण सिंह कालड़ा) तथा प्रो. डा. योगेश कुमार चावला शामिल हैं। इन दोनों को यूनिवर्सिटी की वार्षिक 49वीं कन्वोकेशन के मौके पर यूनिवर्सिटी के कुलपति और पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित सम्मानित करेंगे। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना चुके गुलजार किसी जान-पहचान के मोहताज नहीं हैं। अपने क्षेत्र में दिए गए बहुमूल्य योगदान को ध्यान में रखते ही यूनिवर्सिटी की सिंडीकेट और सीनेट के सदस्यों ने उप-कुलपति प्रो. (डा.) जसपाल सिंह संधु के नेतृत्व में गुलजार और चावला को सम्मानित करने का निर्णय लिया। 

गुलजार को डी. लिट (आनर्ज  काजा) डिग्री से सम्मानित करना उनके कार्यों को मान्यता देना ही है। पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत का नाम रोशन करने वाले गुलजार जेहलम (पाकिस्तान) के गांव दीना में पिता मक्खन सिंह कालड़ा और माता सुजान कौर के घर 18 अगस्त 1934 में जन्मे थे। सम्पूर्ण सिंह कालड़ा विभाजन के बाद मुम्बई आकर गुलजार बन गए।  वह खुद तो गुलजार कम हुए लेकिन उन्होंने पंजाबियत को गुलजार किया। पढऩे-लिखने का शौक उन्हें बिमल राय, ऋषिकेश मुखर्जी और हेमंत कुमार के पास खींच ले गया। उनकी भीतरी कला प्रतिभा को ऐसे पंख लगे कि गुलजार एक समय गीतकार, कहानीकार, निर्देशक, निर्माता और लेखक के तौर पर जाने गए। उनकी शानदार कार्य यात्रा विभिन्न क्षेत्रों में फैलनी शुरू हुई तो उनका दायरा भी कदम दर कदम फैलता गया जिससे वह भारतीय संस्कृति परिदृश्य में बहुमुखी और प्रसिद्ध शख्सियत के तौर पर उभरे। 

सिनेमा जगत में वह एक गीतकार के तौर पर प्रसिद्ध हुए। 1963 में फिल्म ‘बंधनी’ के लिए लिखे गीतों से उनकी ऐसी शुरूआत हुई कि जो उन्हें समस्त सिनेमा जगत में सुदृढ़ कर गई। उनके दिल को छू लेने वाले गीतों और रूह को खींचने वाली रचनाओं के साथ हिंदी सिनेमा जगत सक्षम ही नहीं हुआ बल्कि इसके साथ एक नए अध्याय की शुरूआत भी हुई। फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में भी उन्होंने कामयाबी हासिल की। गुलजार ने फिल्म ‘आंधी’, ‘मौसम’ और  टी.वी. सीरियल ‘मिर्जा गालिब’ जैसे अति उत्तम कार्य भारतीय दर्शकों को भेंट किए। सिनेमा जगत में उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए ही 7 भारतीय राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 22 फिल्म फेयर पुरस्कार, एक अकैडमी पुरस्कार तथा ग्रेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2002 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2004 में पदम भूषण पुरस्कार, 2013 में 40 से अधिक फिल्मों में गीत लिखने के लिए उत्तम गीतकार के तौर पर दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया गया। उन्हें 9 बार श्रेष्ठ गीतकार के तौर पर नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी नवाजा गया। 

गुलजार ने प्रमुख रूप में उर्दू और पंजाबी में लिखने के अलावा मारवाड़ी और भोजपुरी तथा अन्य भाषाओं में साहित्यिक रचनाएं भी दीं। उनकी अन्य पुस्तकों में ‘चौरस रात’ (लघु कथाएं) ‘रावी पार’ (कहानी संग्रह), ‘रात चांद और मैं’ तथा ‘खराशे’ हैं। उन्होंने सामाजिक सद्भावना और शिक्षा के रूपांतरण की शक्ति के ऊपर जोर देते हुए एकलव्य फाऊंडेशन और आरूषि जैसी गैर-सरकारी संस्थाओं के सहयोग से ‘अमन की आशा शांति’ आंदोलनों में विशेष योगदान पाया। गुलजार ने अप्रैल 2013 में असम विश्वविद्यालय के कुलपति की गौरवशाली भूमिका निभाते हुए अपने साहित्यिक और बौद्धिक सरगर्मियों के प्रति समर्पण को रेखांकित किया। 

इसी तरह मैडीकल, अकादमिक, शोध और प्रशासनिक क्षेत्रों में बहुमुखी शख्सियत के तौर पर जाने जाते प्रोफैसर (डा.) योगेश कुमार चावला अपने आप में ही एक संस्था हैं। डा. चावला पी.जी.आई. एम.आर. के पूर्व डायरैक्टर, एमरीट्स प्रो. और हैपेटोलोजी विभाग के प्रो. तथा प्रमुख भी रह चुके हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मैगजीनों में 475 शोध पत्र और 16000 से ज्यादा संदर्भ शामिल हैं। उनके नेतृत्व में पी.जी.आई. एम.ई.आर. ने उपचार के ढंग, बुनियादी ढांचे में सुधार और मरीजों की सुविधाओं में शानदार तरक्की की है जिनमें ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की शुरूआत, रिपोर्टों की प्राप्ति, एमरजैंसी विभाग में ट्राइज क्षेत्रों की स्थापना और लॉग नियंत्रण अभ्यासों को लागू करना शामिल है। 

चावला के कार्यकाल में अंग ट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण प्रगति के साथ पी.जी.आई. एम.ई.आर. चंडीगढ़ ने ठोस अंग ट्रांसप्लांटेशन में एक अग्रणी के तौर पर भूमिका निभाई। इसके अलावा चावला ने देश में पहला डी.एम. हैपेटोलॉजी प्रोग्राम शुरू किया और मैडीकल शोध के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट केंद्रों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी द्वारा इस समारोह के दौरान दिए जाने वाली ऑनर्ज काजा डिग्रियों की भी अपनी ही महत्ता होती है। ये डिग्रियां उन्हें दी जाती हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में बेमिसाल कार्य कर समाज में अच्छा रुतबा प्राप्त कर लिया होता है।-प्रवीण पुरी(डायरैक्टर लोक सम्पर्क जी.एन.डी.यू., अमृतसर)

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