काश! रेल मंत्रालय ने ध्यान दिया होता

Edited By ,Updated: 08 Jun, 2023 05:17 AM

if only ministry of railways would have paid attention

ओडिशा में बालासोर के पास दुर्भाग्यपूर्ण रेल दुर्घटना कई वर्षों में अपनी तरह की सबसे भीषण रेल दुर्घटना है। जबकि सरकार ने इस बात की गहन जांच शुरू की है कि दुर्घटना किन कारणों से हुई और क्या यह मानवीय या फिर यांत्रिक विफलता थी।

ओडिशा में बालासोर के पास दुर्भाग्यपूर्ण रेल दुर्घटना कई वर्षों में अपनी तरह की सबसे भीषण रेल दुर्घटना है। जबकि सरकार ने इस बात की गहन जांच शुरू की है कि दुर्घटना किन कारणों से हुई और क्या यह मानवीय या फिर यांत्रिक विफलता थी। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) को जांच सौंपने के रेलवे बोर्ड के फैसले ने इस दुर्घटना को एक और नया कोण दिया है। यह आशा की जाती है कि जांच में तेजी लाई जाएगी जबकि अतीत में कई जांचों के पूरा होने में कई साल लग गए और आमतौर पर सार्वजनिक स्मृति में उन्हें भुला दिया गया।

हालांकि विनाशकारी रेल दुर्घटना के बाद उभरे कुछ तथ्य बताते हैं कि शायद यह दुर्घटना एकमात्र ऐसी दुर्घटना थी जिसमें तीन ट्रेनें शामिल हैं। देश में रेलवे के बुनियादी ढांचे के नवीनीकरण के रख-रखाव पर तुलनात्मक रूप से कम ध्यान दिया गया है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सी.ए.जी.) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार सम्पत्ति के प्रतिस्थापन और नवीकरण के लिए रेलवे मूल्यहृास आरक्षित निधि (आर.डी.आर.एफ.) पर व्यय अपर्याप्त था।

रेलवे ने गैर-व्यपगत राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (आर.आर.एस.एफ.) से पुरानी रेल पटरियों को बदलने पर केवल 13,523 करोड़ रुपए खर्च किए जबकि इसके लिए आवश्यक 58,459 करोड़ रुपए का प्रावधान था और यह इस उद्देश्य के लिए उपलब्ध था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2020-21 के दौरान उस वर्ष बजट में 1000 करोड़ रुपए के प्रावधानों के बावजूद पुरानी सम्पत्तियों के नवीकरण और प्रतिस्थापन पर केवल 671.92 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।

चूंकि फंड गैर व्यपगत है जिसका अर्थ यह है कि इसे भविष्य के वर्षों में खर्च किया जा सकता है और वित्तीय वर्ष के अंत में व्यपगत नहीं हो सकता है। वर्तमान में धन की कुल उपलब्धता 94,873 करोड़ रुपए है। इसमें ट्रैक नवीनीकरण और प्रतिस्थापन, सिग्रङ्क्षलग और दूरसंचार तथा उत्पादन इकाइयों के लिए धन शामिल है। इस प्रकार पुरानी सम्पत्तियों के नवीनीकरण और प्रतिस्थापन का बहुत बड़ा बैकलॉग है जिसे ट्रेनों के कुशल संचालन के लिए समय पर बदलने की जरूरत है।

काश! रेल मंत्रालय ने सुझाव पर ध्यान दिया होता और पटरियों के नवीनीकरण और प्रतिस्थापन पर काम में तेजी लाई होती। यह सुनिश्चित करने के लिए रेलवे का देश में एक विशाल नैटवर्क है और यह 1.3 मिलियन से अधिक कर्मचारियों के साथ सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। यह प्रतिदिन 13,000 से अधिक यात्री ट्रेनें चलाती है और इसकी ट्रैक लम्बाई करीब 67000 कि.मी. है। रेलवे अभी भी विशेष रूप से लम्बी यात्रा के लिए परिवहन का सबसे सस्ता साधन है और प्रतिदिन औसतन 25 मिलियन यात्री नैटवर्क पर यात्रा करते हैं।

सरकार देरी से आधुनिकीकरण पर काम कर रही है और वंदे भारत जैसी हाई स्पीड ट्रेनों की शुरूआत कर रही है। पहली हाई स्पीड ट्रेन पर भी काम चल रहा है और रेल यात्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं में सामान्य सुधार हो रहा है जिसमें बेहतर साफ-सफाई, बेहतर समय पालन और टिकट सुविधाओं का उन्नयन शामिल है। विभिन्न पैमानों पर सुरक्षा पर अपने रिकार्ड सहित रेलवे के प्रदर्शन में सुधार देखा गया है। उदाहरण के लिए परिणामी ट्रेन दुर्घटनाओं की संख्या 2017-18 में 74 से घट कर 2020-21 में 20 हो गई।

हालांकि अन्य मानदंडों पर सुधार की गुंजाइश है। अधिकांश यात्री जो रेल का उपयोग दैनिक यात्रा करने के लिए करते हैं, भीड़-भाड़ वाले सामान्य (जनरल) कोचों को भरते हैं जहां बुनियादी ढांचा समय पर रुक जाता है। आधुनिकीकरण के प्रयासों से अभी भी महत्वपूर्ण रूप से यह प्रभावित नहीं हुए हैं। हाल ही की दुर्घटना जिसमें सैंकड़ों लोगों की जानें गई हैं और हजारों की तादाद में लोग घायल हो गए हैं, ने यात्री सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने के लिए खतरे की घंटी बजाई है और उन हिस्सों के प्रबंधन की याद दिलाई है जो सुधार और उन्नयन से बचे हुए हैं और उन्हें निरंतर निगरानी की जरूरत है। -विपिन पब्बी

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