अफगानिस्तान घटनाक्रम का भारत पर प्रभाव और आगे का रास्ता

Edited By ,Updated: 31 Aug, 2021 04:32 AM

impact of afghanistan developments on india and the way forward

तालिबान ने युद्ध तो जीता है लेकिन शांति नहीं। अमरीका यह लक्ष्यहीन युद्ध खो चुका है और जल्दी से बाहर निकलना चाहता है, जबकि पाकिस्तान, जो हमेशा से युद्ध में है, ने अपने पश्चिम में इस युद्ध को जीत लिया है मगर उसका असली युद्ध भारत के साथ है। चीन अपने सभी

तालिबान ने युद्ध तो जीता है लेकिन शांति नहीं। अमरीका यह लक्ष्यहीन युद्ध खो चुका है और जल्दी से बाहर निकलना चाहता है, जबकि पाकिस्तान, जो हमेशा से युद्ध में है, ने अपने पश्चिम में इस युद्ध को जीत लिया है मगर उसका असली युद्ध भारत के साथ है। चीन अपने सभी युद्ध बिना लड़े जीतकर दुनिया पर राज करना चाहता है। मगर यदि भारत पर युद्ध थोपा गया तो वह झुकेगा नहीं। पाकिस्तान को यह याद रखना अच्छा होगा कि भारत के साथ 4 युद्ध लडऩे के बाद 5वां पाकिस्तान के रूप में उसका आखिरी हो सकता है। 

भारत पर अफगानिस्तान का प्रभाव प्रत्यक्ष नहीं, बल्कि पाकिस्तान, चीन या दोनों के माध्यम से है। इसे भारत के हितों के चश्मे से देखा जाना चाहिए। भारत का मुख्य हित अपनी संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और आंतरिक स्थिरता की रक्षा करना है। अगला कदम अफगानिस्तान में भारतीय नागरिकों के जीवन की सुरक्षा करना है, जो एक निकासी योजना के माध्यम से सक्षम रूप से किया जा रहा है। अंत में, अफगानिस्तान के लोगों में स्थिरता लाने के लिए एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में जिम्मेदारी निभाना है; जिसे लेकर कइयों को भारत से उम्मीदें हैं। 

जब इस प्रतिमान में देखा जाता है तो तालिबान के प्रभुत्व वाले अफगानिस्तान में भारत ने अस्थायी रूप से प्रत्यक्ष प्रभाव खो दिया है। हालांकि, व्यापक आशंका यह भी है कि तालिबान लड़ाके कश्मीर में एक बार फिर तबाही मचा सकते हैं, जैसा कि 90 के दशक में हुआ था। चूंकि इस खतरे की आशंका है, इसलिए भारत को पाकिस्तान और चीन को कुछ भी करने का प्रयास करने से रोकने के लिए उचित कार्रवाई करनी चाहिए। 

तालिबान के लिए प्रतिस्पर्धा है। पंजशीर घाटी का प्रतिरोध सख्त होता जा रहा है। आई.एम.एफ. और विश्व बैंक ने वित्तीय सहायता बंद कर दी है। मुसलमान एक वादा किए गए इस्लामी राज्य से भाग रहे हैं। बुद्धिमान, शिक्षित और प्रभावशाली अफगान देश छोड़ चुके हैं या जा रहे हैं। खाद्य संकट स्पष्ट दिखाई दे रहा है। तालिबान अपने सत्ता के भूखे नेताओं और ङ्क्षहसा, बलात्कार, जबरन शादी, प्रतिशोध आदि में लिप्त कट्टरपंथी कैडरों के बीच मतभेदों के साथ एकजुट नहीं है। सत्ता के बंटवारे के ढांचे में शूराओं के बीच मतभेद उभर रहे हैं। अफगानिस्तान अस्थिर रहेगा, चाहे वह एक शुद्ध तालिबान सरकार हो या सभी अफगान गुटों और हित समूहों के साथ समावेशी प्रतीत हो। इन परिस्थितियों में भारत क्या करे?

इसे समझने के लिए हमें 90 के दशक में वापस जाना होगा, जब पाकिस्तान द्वारा मुजाहिद्दीन को जम्मू-कश्मीर में भेजा गया था। भारत तैयार नहीं था। हमें सीमा पार आतंकवाद या हाइब्रिड युद्ध-राजनीतिक या सैन्य, से निपटने का अनुभव नहीं था। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अमरीका पर निर्भर है और वहां अमरीकी उपस्थिति ने भारत को रोक दिया। चीजें बदल गई हैं। अब हम किसी भी आतंकी हमले से निपटने के लिए बेहतर प्रशिक्षित और संगठित हैं। एल.ओ.सी. पर बाड़ प्रणाली पार करने के लिए एक दुर्जेय बाधा है। आॢथक रूप से हम एक दिवालिया पाकिस्तान से कहीं बेहतर हैं। हमने पाकिस्तान के परमाणु झांसे को ठेंगा दिखाया है और वे जानते हैं कि हम एल.ओ.सी. के पार हमला कर सकते हैं। धारा 370 के हटने के साथ ही घाटी में राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है।

घाटी में लोगों ने शांति का अनुभव किया है और हो सकता है कि वे घड़ी को पीछे करना पसंद न करें। आनुपातिक रूप से हमारे पास कई स्तरों में सैनिकों की संख्या अधिक है जो सी.आई./सी.टी./सी.वी.ई. भूमिका के लिए अनुभवी और अच्छी तरह से सुसज्जित हैं। गौरतलब है कि हम अपनी मातृभूमि के लिए लड़ रहे हैं, जबकि अमरीकी नहीं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया पाकिस्तान के गेमप्लान और दोहरेपन के बारे में जानती है। 

क्या इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में अतिरिक्त विदेशी आतंकवादियों को एल.ओ.सी. के पार कश्मीर घाटी में भेजने का प्रयास नहीं करेगा? बेशक करेगा। सवाल यह है कि कितने और कब? भारत में पहली बार किसी अफगानी या तालिब लड़ाके के आने पर हमें आक्रामक होना चाहिए। पाकिस्तान को किसी भी संदेह में नहीं छोड़ा जाना चाहिए, यही भाषा पाकिस्तान समझता है।सत्ता पर कब्जा करने और इसे बनाए रखने के लिए तालिबान की बोली, उसकी सैन्य शक्ति पर आधारित है। जब तक वे सत्ता को मजबूत नहीं कर लेते, किसी की लड़ाई में भाग नहीं लेंगे। उसके बाद भी उन्हें पुलिस और देश पर शासन करने के लिए अपने लड़ाकों के एक महत्वपूर्ण हिस्से की आवश्यकता होगी। 

उन्हें आई.एस. और अल कायदा या किसी से भी मुकाबला करने के लिए बड़ी संख्या की जरूरत होगी। उन्हें ईरान, पाकिस्तान, चीन और मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ अपनी सीमाओं को सुरक्षित करना होगा। साथ ही अगर चीन या किसी और को इन्फ्रास्ट्रक्चर का निवेश और विकास करना है तो उन्हें सुरक्षा मुहैया करानी होगी। जिस तरह से मुद्दे सामने आ रहे हैं- राजनयिक, अॢथक और राजनीतिक, इनके कम से कम दो साल और होने की संभावना है। यह हमें जल्दबाजी में प्रतिक्रिया करने की बजाय स्थिति की निगरानी का एक बड़ा मौका देता है। भारत-चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान चतुर्भुज के गुरुत्वाकर्षण का केंद्र गिलगित-बाल्टिस्तान है। यह हमारा क्षेत्र है जिस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। हमें इसे वापस पाने के लिए औपचारिक रूप से राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है। एक बार जब हम इसे गंभीरता से लेना शुरू कर देंगे तो पाकिस्तान और चीन बातचीत आरंभ कर देंगे। भारत को स्थिति को बाहरी बनाना चाहिए। साथ ही तिब्बत और ताइवान पर राजनीतिक संकेत देने की जरूरत है। चीन राजनीतिक संकेतों को पाकिस्तान से बेहतर समझता है।

पाकिस्तान के पंख कतरने का समय आ गया है। भारत को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में इस पर ध्यान देने की जरूरत है। शुरूआत के लिए, दुनिया को यह समझाने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए कि पाकिस्तान को दी जाने वाली किसी भी धनराशि का उपयोग दाता के खिलाफ ही किया जाएगा। इसके अलावा, पश्चिम को आश्वस्त होने की जरूरत है कि शांति और स्थिरता के लिए पाकिस्तान के खिलाफ प्रतिबंध जरूरी हैं। बहुत महत्वपूर्ण यह है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की परमाणु सुविधाओं पर कड़ी निगरानी रखने का रास्ता खोजना चाहिए। 

अफगान लोग भारत पर भरोसा करते हैं। वह सद्भावना फीकी नहीं पड़ेगी। इसके अलावा यह स्पष्ट है कि अमरीका और रूस भारत को मंच पर चाहते हैं, जो चीन-पाकिस्तान-तालिबान गठजोड़ के खिलाफ संतुलन बनाएगा। उस हद तक, अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव का नुक्सान अस्थायी है। हो सकता है कि हमारे पास ‘फ्री रन’ न हो लेकिन हम इससे बाहर नहीं होंगे। भारत को जो वास्तविक निर्णय लेना होगा वह उभरती सरकार की मान्यता है, जो सरकार के स्वरूप, चरित्र और संरचना और अंतर्राष्ट्रीय राय पर निर्भर करेगा।-लै.जन. पी.आर. शंकर (रिटा.)

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