इतिहास के आईने में-भारतीय और हिन्दू एक ही हैं

Edited By ,Updated: 03 Dec, 2021 05:09 AM

in the mirror of history  indians and hindus are one

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख आदरणीय श्री मोहन भागवत जी की हिन्दुत्व के संबंध में टिप्पणी अत्यन्त महत्वपूर्ण और विचारणीय है। यदि सब उनके इस परामर्श पर व्यवहार करने का निर्णय कर लें तो इस देश की बहुत बड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा। मुझे प्रसन्नता...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख आदरणीय श्री मोहन भागवत जी की हिन्दुत्व के संबंध में टिप्पणी अत्यन्त महत्वपूर्ण और विचारणीय है। यदि सब उनके इस परामर्श पर व्यवहार करने का निर्णय कर लें तो इस देश की बहुत बड़ी समस्या का समाधान हो जाएगा। मुझे प्रसन्नता है कि इस महत्वपूर्ण टिप्पणी पर बहुत चर्चा हो रही है और विरोध भी हो रहा है। इस विषय पर खूब मंथन करके इस सत्य को स्वीकार किया जा सकता है कि हिन्दुत्व और भारतीयता में कोई भी अंतर नहीं है। 

इतिहास की कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं और किन्हीं निहित स्वार्थों के कारण गलतफहमियां बढ़ती गईं। निराकरण करने की कोई गंभीर कोशिश नहीं हुई और एक ही डी.एन.ए. वाले भारत माता के पुत्र कई जगह, कई बार आमने-सामने खड़े हो गए। भारत ऐसा भाग्यशाली देश है कि इसकी भौगोलिक सीमाओं का वर्णन हमारे वेद और पुराणों में भी मिलता है। उपनिषद का एक वाक्य है :

‘प्रथिव्यै समुद्र पर्यन्ताय एक राष्ट्र’
अर्थात पृथ्वी से लेकर समुद्र तक यह भारत एक राष्ट्र है। इससे स्पष्ट वर्णन पुराण के इस श्लोक में है :
उतरम् यत् समुद्रश्च हिमाद्रे चैव दक्षिणम,
वर्ष तद् भारतम नाम भारती यत्र संतति।
अर्थात जिस भू-भाग के उत्तर में हिमालय पर्वत है और दक्षिण में समुद्र है, उसका नाम भारत है और उसमें रहने वाले भारतीय हैं। इतना ही नहीं, एक पुराण में हिन्दुत्व की व्याख्या विचारणीय है :
आसिन्धु सिन्धु पर्यन्त: यस्य भारत भूमिका,
पितृभू पुष्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृत:। 

अर्थात हिमालय पर्वत से लेकर समुद्र तक जो भारत भूमि है, उसे जो भी अपनी पितृ भूमि और पुण्य भूमि समझता है, वह हिन्दू है। भारतीय संस्कृति के इन प्रमाणों के बाद कौन कह सकता है कि भारतीय और हिन्दुत्व दो हैं-हिन्दू होने की शर्त केवल यह है कि जो इस देश को अपनी पुण्य भूमि और पितृ भूमि समझता है वह हिन्दू है। 

भारतीय शास्त्रों में कहीं पर यह नहीं कहा गया कि मंदिर जाने वाला ही हिन्दू होता है। यह भारत का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि जानबूझ कर फैलाई गई एक गलत धारणा के कारण देश का बंटवारा भी हुआ और अभी तक भाइयों में संघर्ष चल रहा है। भारतीय संस्कृति के मूल आध्यात्मिक ज्ञान का चिंतन-मनन जब हुआ तब वे अधिकतर ऋषि आश्रमों में रहते थे। भारतीय तत्वज्ञान हिमालय के शान्त प्राकृतिक एकांत में खोजा गया।  मन्दिर तो हजारों साल बाद में बने। इसलिए भारतीय अध्यात्म का संबंध मन्दिरों से ही नहीं है। 

आदरणीय मोहन भागवत जी का यह कहना ऐतिहासिक सत्य है कि हिन्दू और भारतीय में कोई अंतर नहीं है।  डी.एन.ए. एक है। यदि किसी को हिन्दू शब्द पर ही एतराज हो तो वह केवल भारतीय कहे। दोनों का एक ही अर्थ है। हिन्दुत्व कोई पूजा पद्धति नहीं है। हिन्दुत्व सभी पूजा पद्धतियों की नदियों का एक महासमुद्र है। यदि कोई किसी प्रकार की भी पूजा नहीं करता, परन्तु भारत भूमि को अपनी पितृ भूमि और पुण्य भूमि कहता है तो वह भी हिन्दू है।

भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा कि यहां इस्लाम केवल पूजा पद्धति बन कर ही नहीं आया। किन्हीं ऐतिहासिक कारणों से वह एक अलग राष्ट्र बनता रहा। इस्लाम दुनिया के बहुत से देशों में गया। परशिया मुस्लिम हो गया परन्तु संस्कृति और राष्ट्रीयता वही रही। आज भी पूर्वज रुस्तम की पूजा की जाती है, जो मुस्लिम नहीं था। इंडोनेशिया बहुत अधिक मुस्लिम हो गया परन्तु सरस्वती, गणेश और रामायण आज भी वहां पूजी और पढ़ी जाती है। उनकी हवाई सेवा का नाम भी गरुड़ एयरवेज है। 

एक बार भारत के मंत्री इंडोनेशिया गए। यह देख कर हैरान हुए कि मुस्लिम होते हुए भी वहां राम-लीला की जाती है। उन्होंने वहां एक मंत्री से पूछा-आप मुस्लिम हो फिर भी राम लीला क्यों होती है? उसने कहा था, ‘‘हमारे पूर्वर्जों ने पूजा पद्धति बदली थी अपने बाप-दादा नहीं बदले थे।’’ भारतीय जनता पार्टी का प्रथम अधिवेशन मुम्बई में हुआ था। सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश मुहम्मद करीम छागला वहां आए थे। उन्होंने वहां कहा था- ‘‘मेरी रगों में आज भी ऋषि-मुनियों का खून दौड़ता है।’’ उनके कथन की उस समय बड़ी चर्चा हुई थी। उन्होंने कहा था हमारे पुरखों ने केवल पूजा पद्धति बदली, हमारी संस्कृति नहीं बदली। 

यही कहा था स्वामी विवेकानन्द जी ने शिकागो की धर्म सभा में। उन्होंने कहा था- ‘‘जिस प्रकार नदियां अपने अपने रास्ते से बहती हुईं एक ही समुद्र में मिलती हैं, उसी प्रकार हर धर्म के रास्ते से हम एक ही भगवान के पास पहुंचते हैं। रास्ते अनेक हैं परन्तु मंजिल एक है। रास्तों का आपस में कोई झगड़ा नहीं है।’’ वेदांत की इसी बात पर दुनिया भर के विद्वानों ने स्वामी जी को अभूतपूर्व सम्मान दिया था। आदरणीय मोहन भागवत जी भारत के धार्मिक गुरुओं को एक साथ बिठा कर उस विषय पर सहमति बनाएं तो भारत का सबसे बड़ा संकट समाप्त हो जाए।-शांता कुमार (पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)

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