राजनीति और धर्म का संगम है भारत

Edited By ,Updated: 20 Jan, 2024 06:39 AM

india is a confluence of politics and religion

भारत एक बहुआयामी सामाजिक और धार्मिक राज्य व्यवस्था है जिसमें आध्यात्मिक पहलू और भौतिकवाद की लालसा है। इस जटिल परिवेश में, कोई भी भारत के भविष्य के बारे में कभी भी आश्वस्त नहीं हो सकता।

भारत एक बहुआयामी सामाजिक और धार्मिक राज्य व्यवस्था है जिसमें आध्यात्मिक पहलू और भौतिकवाद की लालसा है। इस जटिल परिवेश में, कोई भी भारत के भविष्य के बारे में कभी भी आश्वस्त नहीं हो सकता। राजनीति और धार्मिक उत्साह आपस में मिल गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी खुद को राजनीतिक-धार्मिक जगतगुरु के रूप में स्थापित करने के लिए अपना राजनीतिक खेल खेल रहे हैं। वह अपने लक्ष्यों को हासिल करने में सफल होंगे या नहीं, इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा स्पष्ट है क्योंकि वह 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राममंदिर का उद्घाटन करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। उनसे अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह  करने की भी उम्मीद है। 

भाजपा इस समारोह को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में जोर-शोर से प्रचारित कर रही है। उस दिन अयोध्या में 2 लाख से अधिक लोगों के इकट्ठा होने की संभावना है। इस कार्यक्रम को देशभर में विश्व स्तर पर भारतीय दूतावासों में और न्यूयार्क के टाइम्स स्क्वायर में एक प्रायोजित स्क्रीन पर प्रदॢशत किए जाने की भी उम्मीद है। यह समझ में आता है क्योंकि हिन्दू विश्व स्तर पर दिखाई देने वाला समुदाय है। मंदिर के लिए दान दुनिया का सबसे बड़ा दान होने का अनुमान है। निर्माण की देखरेख करने वाले ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार इसके 4 ट्रिलियन रुपए (48 मिलियन अमरीकी डॉलर) को पार करने की उम्मीद है। 

नेपाल से फलों की टोकरियां और दुनिया की सबसे विशाल अगरबत्ती, जिसकी ऊंचाई 108 फुट है और जो 1470 किलोग्राम गाय के गोबर, 190 किलोग्राम घी और 420 किलोग्राम जड़ी-बूटियों से बनी है, सहित कई उपहार आ रहे हैं। द्वारिका (गुजरात), जोशी मठ (उत्तराखंड), पुरी (ओडिशा) और शृंगेरी (कर्नाटक) स्थित 4 हिन्दू मठों के शंकराचार्य राम मंदिर के उद्घाटन में शामिल नहीं होंगे। माना जाता है कि ये मठ आठवीं शताब्दी के धार्मिक विद्वान और दार्शनिक आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किए गए थे, जो हिन्दू धर्म के भीतर आध्यात्मिक और धार्मिक नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

हालांकि द्वारिका और शृंगेरी के शंकराचार्यों ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है लेकिन पुरी मठ के शंकराचार्य अपने निर्णय के बारे में मुखर रहे हैं। शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ओडिशा के जगन्नाथपुरी में पूर्वाम्नाय गोवद्र्धन मठ पीठ के 145वें शंकराचार्य ने हाल ही में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने से इंकार कर दिया है। राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में उनकी आपत्ति का कारण उनका यह मानना है कि यह आयोजन राजनीतिक हो गया है। राम मंदिर उद्घाटन का निमंत्रण मिलने पर निश्चलानंद सरस्वती ने चिंता व्यक्त की कि यह समारोह एक राजनीतिक तमाशे में बदल गया है। 

उन्होंने कहा, ‘‘देश के प्रधानमंत्री गर्भगृह में रहेंगे, मूर्ति को छुएंगे और प्राण प्रतिष्ठा समारोह करेंगे। इसे राजनीतिक रूप दे दिया गया है। अगर भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होती है तो शास्त्रों के रीति-रिवाजों से होनी चाहिए। मैं इसका विरोध नहीं करूंगा और न ही इसमें शामिल होऊंगा। मैंने अपना रुख अख्तियार कर लिया है। आइए आधे सच और आधे झूठ को न मिलाएं। हर चीज को शास्त्रीय ज्ञान के अनुरूप होना चाहिए।’’ 

उत्तराखंड में ज्योति मठ पीठ की अध्यक्षता करने वाले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने राम मंदिर समारोह में भाग नहीं लेने का फैसला किया है। वह बताते हैं कि मंदिर का निर्माण सनातन धर्म की जीत का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। उनके अनुसार अयोध्या में पहले से ही एक राम मंदिर था और मंदिर का निर्माण धर्म के लिए कोई उपहार या विजय नहीं है। मंदिर निर्माण दशकों से एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, जिसका सामाजिक और राजनीतिक महत्व है जबकि कई हिन्दू इसे सांस्कृतिक और धार्मिक पुनरुत्थान के प्रतीक के रूप में देखते हैं। अन्य लोग बहिष्कार और विभाजन की संभावना के बारे में चिंता जताते हैं। 

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक वायदा है जिसे पूरा करने का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी लेने को तैयार हैं। हालांकि मंदिर के रूप में देशभर में ‘‘राम राज्य’’ की प्राप्ति का अनुमान नहीं लगाया गया है। इसके बजाय इसका प्राथमिक परिणाम आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा की राजनीतिक जीत होने की उम्मीद है। द इकोनॉमिस्ट ने खुलासा किया है कि उत्तर प्रदेश में 2022 के मतदाताओं के सर्वेक्षण से पता चला है कि 74 प्रतिशत मतदाताओं ने मुद्रास्फीति और विकास को अत्यधिक महत्वपूर्ण मुद्दों के रूप में माना जबकि केवल 40 प्रतिशत ने राम मंदिर को समान महत्व दिया। यदि मोदी इन आर्थिक मुद्दों को निर्णायक रूप से संबोधित करते हैं तो उनके पास महत्वपूर्ण सफलता की संभावना है। दुर्भाग्य से प्रधानमंत्री मोदी के लिए व्यापक आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने की तुलना में मंदिर बनाना आसान प्रतीत होता है।-हरि जयसिंह 
 

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